एमसीयू: जातिगत टिप्प्णी का विरोध, 10 छात्र हिरासत में

12 दिसंबर से दो प्रोफेसर्स को निलंबत करने की मांग को लेकर धरना दे रहे एमसीयू के छात्रों को शुक्रवार की शाम पुलिस ने कैम्पस से बाहर किया, 10 के खिलाफ दर्ज़ हुई एफआईआर।
छात्रों के विरोध प्रदर्शन की तस्वीर
छात्रों के विरोध प्रदर्शन की तस्वीरऋषभ जाट

राज एक्सप्रेस। भोपाल के माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में शुक्रवार, 13 दिसंबर 2019 को पुलिस ने 10 छात्रों को गिरफ्तार कर लिया। कई छात्रों को कैम्पस से बाहर भी किया गया। यह छात्र दो प्रोफेसर्स के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इनका आरोप है कि, एमसीयू में अतिथि शिक्षक के तौर पर पढ़ाने वाले प्रोफेसर दिलीप मण्डल और मुकेश कुमार ने जातिगत टिप्पणी कर उनकी भावनाओं को चोट पहुंचाई है। छात्रों ने दोनों प्रोफेसर्स को बर्खास्त करने की मांग की है।

छात्र गुरुवार 12 दिसंबर से यह विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। शुक्रवार को उप कुलपति कार्यालय के बाहर धरने पर बैठे छात्रों का कहना है कि, हमारे शांतिपूर्ण प्रदर्शन को रोकने के लिए पुलिस ने हमें घसीटकर पांचवीं मंजिल से तीसरी मंजिल पर उतारा। पुलिस के आने से विश्वविद्यालय में हंगामे की स्थिति बन गई। इस दौरान 3 छात्र बेहोश हो गए, जिन्हें अस्पताल ले जाया गया।

पुलिस ने बताया कि, 10 छात्रों और अज्ञात लोगों के खिलाफ कैम्पस में हिंसा भड़काने और प्रशासन को अपना काम नहीं करने देने के लिए एफआईआर दर्ज़ की गई है।

प्रोफेसर दिलीप मण्डल समुदाय विशेष के समर्थन में अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स पर लिखते रहे हैं। उनके ट्वीट्स पर आपत्ति जताते हुए विद्यार्थियों ने कहा कि, वे जाति आधारित भेदभाव करते हैं। साथ ही प्रोफेसर पर कक्षाओं में विद्यार्थियों के साथ जातिगत भेदभाव करने का भी आरोप है।

बच्चों का कहना है कि, प्रोफेसर लोगों के कलावा पहनने और तिलक लगाने पर सवाल करते हैं। उनसे बात करने से पहले उनका सरनेम पूछते हैं और जाति विशेष के खिलाफ अपने पद का फायदा उठाकर उन्हें उकसाने के लिए ट्विटर पर दुष्प्रचार करते हैं।

प्रोफेसर दिलीप मण्डल ने हाल ही में नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में ट्वीट करते हुए लिखा था कि, 'इस विधेयक के पीछे सरकार की असल मंशा धर्म विशेष में डर दिखाकर कुछ जातिगत समुदायों को सवर्णों के नियंत्रण में लाना है।'

छात्रों ने उप कुलपति और विश्वविद्यालय प्रशासन को पत्र लिखकर इस मामले में उचित कार्रवाई की मांग की है। दोनों प्रोफेसर्स को बर्खास्त करने की मांग को लेकर वे धरना भी दे रहे हैं।

वहीं प्रोफेसर मण्डल ने ट्वीट कर कहा कि, "विश्वविद्यालय प्रणाली का अर्थ यह है कि, प्रत्येक विचार, भले ही वह तुच्छ लगता हो या आपकी भावनाओं को आहत करता हो, सुना जाना चाहिए और विभिन्न विचारधाराओं का संश्लेषण होना चाहिए। मैं किसी भी विचार से नहीं डरता। किसी को भी किसी चीज़ से नहीं डरना चाहिए।"

विश्वविद्यालय ने इस मामले की जांच के लिए एक समिति का गठन किया है। समिति 15 दिनों के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी। विद्यार्थियों की मांग थी कि, उनको लिखित तौर पर शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई का आश्वासन दिया जाए। साथ ही विश्वविद्यालय द्वारा बनाई गई कमेटी में उन्हें शामिल किया जाए। प्रशासन ने उनकी मांग मान ली है और पांच विद्यार्थियों को समिति में जगह देने की बात कही है।

विरोध प्रदर्शन के दौरान विश्वविद्यालय प्रशासन का रवैया छात्र विरोधी रहा। जहां उप कुलपति ने छात्रों से बात तक करना ज़रूरी नहीं समझा, वहीं पुलिस की जोर-जबरदस्ती ने माहौल को और खराब बना दिया।

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