बारिश से मूंग की फसल अंकुरित होने लगी, उड़द में लगा रोग

मूंग पकने पर किसानों ने किया था दवा का छिड़काव, लगातार बरसात के कारण फिरा मेहनत पर पानी, 18 हजार हैक्टेयर में बोई उड़द की फसल भी अब रोगों से ग्रसित हो चुकी है, जिससे किसान चिंतित हैं।
18 हजार हैक्टेयर में बोई उड़द की फसल भी अब रोगों से ग्रसित हो चुकी है
18 हजार हैक्टेयर में बोई उड़द की फसल भी अब रोगों से ग्रसित हो चुकी हैRaj Express

नसरुल्लागंज, मध्यप्रदेश। इस वर्ष मानसून ने शुुरू से ही किसानों को परेशानी में डाल रखा है। पिछले वर्ष प्राकृतिक आपदा अतिवृष्टि के चलते संपूर्ण क्षेत्र में बोई गई फसल बर्बाद हो गई थी। इसी कारण इस वर्ष किसानों द्वारा केवल सोयाबीन फसल पर निर्भर न रहते हुए धान, मक्का, उड़द, ज्वार, तिल्ली व मूंग की बुआई सर्वाधिक मात्रा में की। पिछले वर्ष सोयाबीन का उत्पादन नहीं हो पाया था और पूरी फसल बर्बाद हो गई थी। जिसके कारण इस वर्ष केवल सक्षम किसानों ने ही मंहगे दामों पर सोयाबीन खरीदकर बोया था। सीजन के दौरान सोयाबीन बीज के भाव 9.10 हजार प्रति क्विंटल तक पहुंच गए थे। इस वर्ष भी सोयाबीन की फसल ने किसानों ने धोखा दे दिया और मानसून की बेरुखी के चलते सोयाबीन की फसल बांझ रह गई, जिससे फलियों का अंकुरण नहीं हो सका। लेकिन वह किसान इस वर्ष फायदे में रहे जिन्होंने परम्परागत खेती से तौबा कर मक्का ज्वार व तिल की बुआई सर्वाधिक मात्रा में की थी।

पकी फसल की फलियां होने लगीं अंकुरित:

इस वर्ष 10 हजार हेक्टेयर में किसानों द्वारा मूंग की बुआई की थी। लेकिन इसमें से लगभग 1 हजार हेक्टेयर की फसल पहले ही बारिश न होने व रोग लगने से अंकुरित नहीं हो सकी। वहीं शेष रकबे में बोई गई फसल आधी ही पकी थी कि सिंतबर माह में अचानक से मानसून सक्रिय होने से किसानों के मंसूबों पर पानी फिर गया। बारिश होने से पकी मूंग की फलियां अंकुरित होने लगी हैं। किसानों ने बारिश से पूर्व फसल काटने के लिए फसल सूखने की दवा का छिड़काव किया ही था कि अचानक से बारिश मूंग के खेत पानी से डबरा गए। ऐसे में मूंग का उत्पादन लेना भी किसानों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। इसी प्रकार 18 हजार हैक्टेयर में बोई उड़द की फसल भी अब रोगों से ग्रसित हो चुकी है, जिससे भी किसान चिंतित हैं। उड़द फसल भी पक चुकी है, यदि एक सप्ताह बारिश का दौर थमता है तो किसान अपनी फसल को सुरक्षित कर लेगा।

इस वर्ष होगा मक्का, ज्वार व तिल का उत्पादन:

लगातार तीसरे वर्ष सोयाबीन का उत्पादन ना होने से किसानों द्वारा इस वर्ष सर्वाधिक रकबे में मक्का, ज्वार व तिल की बुआई की। किसानों का मानना था कि यदि बारिश अधिक होती हैं तो उक्त जिंसों का उत्पादन अच्छा होगा। लेकिन बारिश कम होने से मक्का, ज्वार व तिल क्षेत्र में लहलहा रही है। इस वर्ष मक्का 6742, ज्वार 3880 व तिल की बुआई 750 हैक्टेयर में की गई हैं, जो किसानों के लिए इस वर्ष फायदे का सौदा साबित होती नजर आ रही है।

खरीफ सीजन के रकबे में हुआ बड़ा फेरबदल:

इस वर्ष कृषि विभाग द्वारा खरीफ सीजन का रकबा 76 हजार 45 हेक्टेयर निर्धारित किया गया था। जिसमें इस वर्ष किसानों द्वारा परम्परागत खेती सोयाबीन को छोड़कर सर्वाधिक मात्रा में अन्य जिंसों की बुआई की। इसमें प्रमुख रूप से धान 8015 ज्वार 3880, मक्का 6742, अरहर 1830, मूंग 8225, उड़द 18065, तिल 750, सोयाबीन मात्र 28045 हेक्टेयर में ही बोई गई। इसमें भी प्रथम चरण में जिन किसानों के खेत तैयार थे। ऐसे किसानों द्वारा मूंग, उड़द व सोयाबीन की बुआई की थी, जो कि पूरी तरह से मौसम की बेरूखी के चलते अंकुरित नहीं हो सकी। इस प्रकार क्षेत्र में लगभग 5 हजार हेक्टेयर में बोई गई फसल किसानों को पलटना पड़ी।

बारिश से धान फसल को फायदा:

ऐसे किसानों के लिए बारिश वरदान बनी है जिन्होंने धान की बुआई की है। बारिश होने से धान की फसल में रौनक लौट आई है। किसानों द्वारा अब धान की पैदावार लेने के लिए धान के खेतो में लिक्विट यूरिया का छिड़काव किया जा रहा है। वहीं कई किसान अभी भी धान के खेतों में खरपतवार करा रहे हैं, जिससे कि धान के भुट्टे अधिक आ सके।

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