मुरैना: कलेक्टर के प्रयास से प्रारंभ हुआ पिंजरे में मछली पालन प्रयोग
मुरैना, मध्यप्रदेश। पिंजरा में मछली पालन, सुनने में अजीब लगता है लेकिन मछली पालन का यह अनूठा प्रयास मुरैना में प्रारंभ हो गया है। यह नवीन तकनीक कलेक्टर प्रियंका दास के प्रयासों से अमल में आई है। केज कल्चर का पहला प्रोजेक्ट कोतवाल डेम पर बनाया गया है। किशनपुर गांव में केज (पिंजरा) कल्चर पद्धति से मछलियों का पालन 23 मई से प्रारंभ हो गया है। नीलक्रांति योजना के तहत डेम के पानी में स्ट्रक्चर तैयार करने के बाद मछली पालन का यह काम मछुआ सहकारी समिति मर्यादित किशनपुर ने शुरू किया है। समिति के संचालक सेवक बाथम व तिलक सिंह बाथम ने सरकार की मदद से 48 लाख के इस प्रोजेक्ट को लगाया है।
तकरीबन एक साल पहले कलेक्टर प्रियंकादास को मछली पालन के लिए केज कल्चर पद्धति की जानकारी मिलीं तो उन्होंने जिले के युवाओं को रोजगार से जोड़ऩे व मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए यह प्रोजेक्ट मुरैना में प्रारंभ कराने का मन बना लिया। मछली पालन की इस नई पद्धति के लिए सरकार से अनुदान भी दिए जाने का प्रावधान है इसलिए बरसों से परंपरागत तरीके से मछली पालन का कार्य कर रहे सेवक बाथम ने प्रशासन की पहल पर यह प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए अपनी समिति का नाम सामने रख दिया। प्रशासनिक खानापूर्ति के बाद यह डिमांड शासन तक पहुंची जहां से सेवक बाथम की समिति को 48 लाख का यह प्रोजेक्ट लगाने की अनुमति मिल गई।
48 लाख के इस प्रोजेक्ट में उन्हें तकरीबन 20लाख का अनुदान मिला है। राशि हाथ में आने के बाद मछुआ सहकारी समिति ने कोतवाल डेम पर स्ट्रक्चर खड़ा करने का काम शुरू कर दिया। मछली पालन के लिए कोतवाल डेम इस समिति ने पहले से ही लीज पर ले रखा है इसलिए उन्होंने यहीं केज कल्चर पद्धति से मछली पालन करने का प्लान बनाया था। एक साल की मेहनत के बाद स्ट्रक्चर तैयार हो गया। लेकिन बीच में कोरोना आपदा के कारण हुए लॉकडाउन से इसमें मछली पालन शुरू नहीं हो पा रहा था। 23 मई को कोतवाली डेम पर बनाए गए केज में छोटी मछलियां छोड़ दी गई हैं। छह महीने बाद यहां से मछलियों का आकार बढ़ेगा और इनकी बिक्री शुरू हो जाएगी। सेवक बाथम ने बताया कि यहां अभी पांच हजार पंगेशियस मछली बीज डाला गया है जिससे 6-7महीने में 60 मैट्रिक टन मछली का उत्पादन होगा और इससे संस्था को 27 लाख का शुद्ध मुनाफा मिलेगा।
ऐसे समझें केज कल्चर पद्धति :
केज कल्चर वह कल्चर है जिसमें जलाशयों में निर्धारित जगह पर फ्लोटिंग ब्लॉक बनाए जाते हैं। सभी ब्लॉक इंटरलॉकिंग होते हैं। इसे केज (पिंजरा) कहा जाता है। इसमें जाल लगा दिया जाता है। यह जाल पानी की गहराई में चार मीटर तक डूबा रहता है। यह जाल केज पर ही बंधा रहता है। इस जाल में सौ ग्राम की मछलियां छोड़ दी जाती हैं और छह महीने में यह मछलियां आकार लेकर एक से सवा किलो की हो जाती हैं। उसके बाद इन्हें केज से निकालकर बाजार में बिक्री किया जाता है।
पंगेसियस मछली का हो रहा पालन :
कोतवाल डेम पर केज कल्चर के माध्यम से पंगेसियस मछली का पालन किया जा रहा है। मछुआ सहकारी समिति मर्यादित किशनपुर द्वारा यहां 16 केज बनाए गए हैं। लेकिन सभी में अभी पंगेसियस मछली ही पाली जा रही है। लेकिन इन सभी केजों में मछलियों की अलग-अलग प्रजाति भी रखी जा सकती है। समिति संचालक सेवक बाथम ने बताया कि वह भविष्य में जरूरत के अनुसार यहां मछलियों की वैरायटी बढ़ाएंगे।
केज कल्चर से मछली पालन में यह फायदा :
- परंपरागत तरीके से मछली पालन करने पर जलाशय के बड़े हिस्से में मछलियों को दाना डालना पड़ता है। जबकि केज बनाने पर दाना डालने के लिए चार मीटर चौड़ा व छह मीटर लंबा सीमित इलाका होता है। इसलिए मछलियों के लिए ज्यादा दाने की खपत नहीं होती।
- मछलियों को निकालने के लिए नदी में जाल डालकर मेहनत करने की जरूरत नहीं होती। केज से मछलियां निकालने के लिए केज में पडे जाल को बाहर की ओर खींचा जाता है और जरूरत के अनुसार मछलियां निकालकर जाल को फिर से पानी में ही छोड़ दिया जाता है। इसके साथ ही इस पद्धति से मछली पालन करने पर काफी तादाद में मछलियां मिल जाती हैं।
युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने अन्य बांधों पर भी यह प्रोजेक्ट लगाने की तैयारी :
जिले के कोतवाली डेम पर पहला केज कल्चर प्रोजेक्टर चालू होने के बाद कलेक्टर प्रियंका दास ने अन्य बांधों पर भी यह प्रोजेक्टर शुरू कराने का मन बना लिया है। बीते रोज उन्होंने कोतवाल जाकर इस प्रोजेक्टर मुआयना किया। जहां सारी व्यवस्थाएं ठीक नजर आईं। कलेक्टर प्रियंका दास का कहना है कि अन्य बांधों पर भी केज कल्चर प्रोजेक्ट शुरू हो सकता है। इससे युवाओं को रोजगार मिलेगा जिससे वह आत्मनिर्भर बनेंगे और उनकी अच्छी आय हो सकेगी।
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