गरीब बच्चों को पढ़ाने वाले भोपाल के युवा, 2 से 400 पार होने की कहानी...

2 लोगों द्वारा शुरू की गई एक स्वयं सेवी संस्था आज 400 से ज्यादा वॉलेंटियर्स की मदद से भोपाल के 700 से अधिक गरीब बच्चों को न सिर्फ पढ़ा चुकी है बल्कि उनके सर्वांगीण विकास के लिए भी काम कर रही है।
आरोह की टीम और बच्चे
आरोह की टीम और बच्चेआरोह

राज एक्सप्रेस।

"अपने लिए तो सब जीते हैं, यहां आत्मसंतुष्टि मिलती है कि हम किसी की मदद कर रहे हैं, बच्चों की मदद कर रहे हैं।"

पंकज बकोड़े

मैनिट के विद्यार्थी पंकज बकोड़े आरोह संस्था के बारे में ऐसा बताते हैं। वे इस संस्था से लगभग एक साल से जुड़े हुए हैं और अपनी पढ़ाई के साथ-साथ गरीब बच्चों को पढ़ाकर उनकी मदद करते हैं।

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में एक स्वयं सेवी संस्था, झुग्गी-झोपड़ी के गरीब बच्चों पर काम करती है। साल 2016 से शुरू हुई ये संस्था अन्ना नगर और राहुल नगर में अपने सेंटर्स के माध्यम से बच्चों को न सिर्फ पढ़ाती है बल्कि उनके सर्वांगीण विकास के लिए काम करती है। संस्था के अंतर्गत अभी तक 700 से अधिक बच्चे लाभान्वित हो चुके हैं। साथ ही तात्कालिक स्थिति देखी जाए तो आरोह ने 15 बच्चों का दाखिला शहर के प्रतिष्ठित विद्यालयों में कराया है। इन बच्चों की फीस से लेकर पढ़ाई का सारा खर्च संस्था के माध्यम से ही किया जाता है।

इस संस्था की खासियत ये है कि इसके सभी वॉलेंटियर्स लगभग 20 से 30 वर्ष के युवा हैं। युवाओं को लापरवाह समझने वाले दौर में इन युवा चहरों ने समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी निभाते हुए एक उदाहरण पेश किया है।

आरोह न सिर्फ छोटे बच्चों को पढ़ाने का काम करता है बल्कि जो वॉलेंटियर्स इससे जुड़ते हैं उनके विकास के लिए भी काम करता है।

आरोह की एक टीम बच्चों को पढ़ाती है तो वहीं दूसरी टीम बाकी के काम देखती है। जैसे कि, बच्चों के लिए समय-समय पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों की रूपरेखा बनाना, उस कार्यक्रम का पूरा प्रबंधन। वॉलेंटियर्स कार्यक्रम प्रबंधन के साथ-साथ फोटोग्राफी, जनसम्पर्क, कंटेंट राईटिंग जैसे क्षेत्रों में भी अपनी योग्यता के आधार पर काम कर, खुद को बेहतर कर सकते हैं।

संस्था के साथ कार्यक्रम प्रबंधन वॉलेंटियर नंदिनी प्रिया कहती हैं कि, 'यहां आकर सबसे अच्छी बात जो लगी वो यह कि हमें अपनी पसन्द का क्षेत्र चुनने की आज़ादी थी। समाज सेवा के साथ-साथ हम जो भी करना चाहते हैं या जिस भी क्षेत्र में हमारी दिलचस्पी है, वो इस संस्था के माध्यम से कर सकते हैं।'

मैनिट और शहर के कई colleges के साथ काम करने बाद इस संस्था ने Institute of Hotel Management, भोपाल के साथ कोलैबोरेशन किया है। IHM के साथ मिलकर ये गरीब बच्चों को कौशल विकास संबंधित ट्रेनिंग देंगे ताकि उन्हें बेहतर नौकरियां मिल सकें। इससे एक तरफ तो ज़रूरतमंद बच्चों तक शिक्षा की पहुंच हो रही है वहीं कॉलेज के बच्चे अपने सामाजिक कर्तव्यों के प्रति सजग हो रहे हैं।

अक्टूबर 2018 से आरोह की वॉलेंटियर ऋचा सोनी बताती हैं कि, 'हम बच्चों को पढ़ाकर खुद के निजी जीवन के बारे में भी बहुत कुछ सीखते हैं। वो बच्चे जिनके पास मूलभूत सुविधाओं का भी अभाव है, पढ़ने के लिए बहुत मेहनत करते हैं और हमारे लिए ये प्रेरणा का काम करता है।'

"मनीष नाम का एक बच्चा जब हमारी संस्था से जुड़ा था तो काफी शैतान था। इस एक साल में उसमें काफी सुधार देखने में आया है। वो पढ़ाई में इतना अच्छा था कि हमने मॉडल स्कूल में उसे दाखिला दिलाया है। अभी वो काफी अनुशासित हो गया है। पिछले साल तक वो हिन्दी माध्यम में पढ़ता था और अब अंग्रेज़ी माध्यम विद्यालय में पढ़ रहा है। ये उसकी इच्छाशक्ति ही है कि वो इस तरह बदल पाया।"

ऋचा सोनी

संस्था में फोटोग्राफी करने वाले सात्विक शर्मा कहते हैं कि, "हफ्ते के पांच दिन हम बच्चों को उनके पाठ्यक्रम के अनुसार पढ़ाते हैं। हर शनिवार उनको कुछ नया सिखाने की हमारी कोशिश रहती है। जैसे, लैपटॉप पर काम करना, भाषण देना, कविता पाठ, कागज़ से कलाकारी, कैमरे से फोटोग्राफी, कभी उन्हें फिल्में दिखाते हैं तो कभी किसी और गतिविधि के माध्यम से उन्हें कुछ न कुछ नया सिखाने का प्रयास रहता है।"

इसके लिए अलग से एक प्रोजेक्ट चलता है, जिसका नाम है 'आकार'। इसके तहत बच्चों को अलग-अलग तरह की चीज़ें सिखाई जाती हैं। इसके लिए सालभर की गतिविधियाँ तय की गई हैं। आप उन्हें यहां देख सकते हैं-

कैसे हुई आरोह की शुरूआत?

"मैं एक दिन यूं ही किसी सड़क से जा रहा था। रेड लाइट पर रुका तो एक अखबार बेचने वाला बच्चा आकर अखबार खरीद लेने की ज़िद करने लगा। मैंने उससे बात करने की कोशिश की तो कुछ लोग कहीं से आ गए और मुझसे लड़ने लगे। तब समझ नहीं आया कि क्या चल रहा है लेकिन तय किया कि इन बच्चों के लिए कुछ तो करना है। यहीं से शुरू हुई 'आरोह' की यात्रा।"

श्रीनिवास, संस्थापक एवं अध्यक्ष (आरोह)

स्वयं सेवी संस्था 'आरोह' के संस्थापक और अध्यक्ष श्रीनिवास बताते हैं कि इस तरह 'आरोह' की शुरूआत हुई। जब उन्होंने अपने दोस्तों को इस घटना के बारे में बताया तो कुछ लोगों ने ध्यान दिया पर कुछ लोगों ने यूं ही टाल दिया। इनमें से केवल राहुल अग्रवाल ने अधिक दिलचस्पी दिखायी। जिसके बाद श्रीनिवास और राहुल ने और लोगों को जोड़ने की कोशिश की लेकिन समूह बड़ा और प्रसिद्ध न होने के कारण किसी ने खास ध्यान नहीं दिया।

सहयोग न मिलने पर दोनों ने अकेले ही शुरूआत करने की ठानी। अन्ना नगर झुग्गी बस्ती जाना शुरू किया, बच्चों से बात की, हफ़्ते में 2-3 बार निरंतर जाकर मिलने लगे और उनके साथ समय बिताने लगे। ये दोनों जानते थे कि एक संस्था के लिए अच्छी टीम होना बहुत आवश्यक है। श्रीनिवास और राहुल ने कॉलेजे के बच्चों से बात करना शुरू किया। राहुल मैनिट से थे तो उन्होंने सबसे पहले मैनिट में ही इसकी शुरूआत की। यहां से शुरू हुई ये संस्था आज 400 से अधिक वालंटियर्स का विशाल समूह बन चुकी है।

आरोह संस्था का लोगो
आरोह संस्था का लोगोआरोह

श्रीनिवास कहते हैं, 'आरोह को इस मुकाम तक पहुंचाने के पीछे आरोह के पहली टीम का बड़ा योगदान है, जिसमें लोहिथ, त्रिवेणी, श्रेयांश, आशीष, लहरी, धीरज, श्रुति, निखिल और अलका शामिल थे।'

इससे पहले श्रीनिवास और उनके कुछ साथी एक स्वयं सेवी संस्था के माध्यम से बच्चों को पढ़ाते थे। वे बच्चों को पढ़ाना चाहते थे और संस्था उसके साथ-साथ और भी बहुत कुछ करना चाहती थी। सिद्धांत बदले और श्रीनिवास ने इस्तीफा दे दिया। उनके साथ ही और लोगों ने भी उस संस्था को छोड़ दिया। इसके बाद "आरोह" का आरम्भ हुआ और आज ये संस्था सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े बच्चों को न सिर्फ राजधानी भोपाल के सबसे बेहतर विद्यालयों में पढ़ा रही है बल्कि उनके सर्वांगीण विकास पर भी तेज़ी से काम कर रही है।

चयन प्रक्रिया-

साल 2016 में आरोह से 100 से अधिक लोग जुड़ गए। इसके बाद से ये निर्णय लिया गया कि समूह में वॉलेंटियर्स को चयन प्रक्रिया के तहत लिया जाए ताकि यह सुनिश्चित हो कि जो बच्चों को पढ़ा रहे हैं वह गुणवत्तापूर्ण हो। चयन प्रक्रिया में लिखित परीक्षा, समूह चर्चा(Group Discussion) और निजी साक्षात्कार लिया जाता है। जो इन तीनों को पास करते हैं उन्हें आरोह में वॉलेंटियर बनने का मौका मिलता है। आप भी इस संस्था के साथ जुड़कर बच्चों को पढ़ाने में अपना सहयोग दे सकते हैं, इसके लिए समय-समय पर आरोह में रिक्रूटमेंट ड्राइव होते रहते हैं। इनकी जानकारी आरोह के फेसबुक और इंस्टाग्राम पेज के माध्यम से मिल सकती है।

शुरुआती दौर को याद करते हुए आरोह के वर्तमान एचआर आशीष शर्मा कहते हैं कि, 'पहले बुलाने पर भी गिन के 10-12 लोग आते थे और हमें संख्या कम होने की वजह से सबको लेना पड़ता था लेकिन आज के समय में हमारे एक रिक्रूटमेंट में 400 से अधिक रजिस्ट्रेशंस होते हैं। हम इनमें से अधिक से अधिक 100 लोगों को ही ले पाते हैं।'

आरोह की योजनाएं-

  1. प्रोजेक्ट अक्षर-

    इस योजना के अंतर्गत भोपाल की अलग-अलग झुग्गी बस्तियों में सर्वेक्षण किया जाता है। यहां के बच्चों से बात की जाती है, वे क्या करते हैं, उनके माता-पिता क्या करते हैं, इत्यादि। इसके बाद इंटरेक्शन प्रोग्राम के माध्यम से 2-3 बार बच्चों के बात की जाती है। जो भी बच्चे आते हैं उनमें से 50 बच्चों को चुना जाता है।

    इन 50 बच्चों को आरोह के शिक्षा एवं सर्वांगीण विकास क्षेत्र (Academic and Overall development vertical) के वॉलेंटियर सोमवार से शुक्रवार हर दिन शाम 5.30 से 7.30 बजे तक पढ़ाते हैं। आरोह प्रोजेक्ट अक्षर के अंतर्गत अभी तक 200 से अधिक वांचित बच्चों को शिक्षित कर चुका है।

  2. प्रोजेक्ट पाठशाला-

    जो बच्चे प्रोजेक्ट अक्षर में अच्छा प्रदर्शन करते हैं और संस्था द्वारा स्थापित सेंटर्स पर होने वाली मासिक और वार्षिक परीक्षाओं में अच्छे अंक लाते हैं, उन्हें आरोह शहर के प्रतिष्ठित विद्यालयों में दाखिला दिलाता है। विद्यालय की फीस से लेकर पढ़ाई का पूरा खर्च स्पॉन्सर्स के माध्यम से आरोह ही उठाता है।

    स्पॉन्सर्स न मिलने की स्थिति में वॉलेंटियर्स अपने बचाए हुए पैसों से बच्चों की फीस भरते हैं। जैसे कि अगर तय हुआ कि इस महीने फिल्म नहीं देखेंगे, उसके पैसे संस्था में देते हैं।

    बच्चों के विद्यालयों में होने वाली पेरन्ट्स टीचर मीटिंग से लेकर वार्षिक सम्मेलनों में तक आरोह के वॉलेंटियर्स जाते हैं। प्रोजेक्ट पाठशाला के अंतर्गत अभी 15 बच्चे कार्मल कॉन्वेंट, हेमा हाइयर सेकंडरी स्कूल और मॉडल स्कूल जैसे विद्यालयों में पढ़ रहे हैं।

    दुबई में दांतों की डॉक्टर प्रिया ऋचा और गेट अकादमी इसमें आरोह की मदद करते हैं। उन्होंने कुछ बच्चों को पढ़ाने की ज़िम्मेदारी ली है।

  3. प्रोजेक्ट आकार -

    इस योजना के तहत आरोह 200 गरीब बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए काम करता है। इसके लिए साप्ताहिक आधार पर विभिन्न गतिविधियाँ और कार्यशालाएँ आयोजित की जाती हैं।

  4. प्रोजेक्ट आनन्द-

    आनन्द योजना के तहत, पांच सौ बच्चों के लिए शैक्षिक और मजेदार यात्राएं आयोजित की जाती हैं। ऐसा इसलिए भी कि बच्चे सीखने की प्रक्रिया जुड़े रहें। इसके अलावा, यह उन्हें बाहरी गतिविधियों में अपने स्वभाव को बढ़ाने और दिखाने के लिए एक मंच प्रदान करने की कोशिश है। बच्चों को शहर की किसी नई जगह पर भी इसके तहत घुमाने ले जाया जाता है।

  5. प्रोजेक्ट प्रदान -

    इस योजना के अंतर्गत आरोह गरीब बच्चों को कॉपी-किताब, पेन-पेंसिल, कपड़े, भोजन समय के अंतराल पे देते रहती है ।

'अ से अः' कार्यक्रम

इस कार्यक्रम में किसी भी एक निजी विद्यालय में बच्चों को सुबह से लेकर शाम तक ले जाया जाता है। ये बच्चे इस स्कूल में पढ़ने वाले आम बच्चों की तरह पूरा दिन बिता सकें और जान सकें कि बड़े विद्यालयों में किस तरह पढ़ाई होती है, इसलिए हर साल इस कार्यक्रम का आयोजन होता है। कार्यक्रम के आखिर में एक 'ड्रीम ट्री' (सपनों का पेड़) की स्थापना होती है। इसमें बच्चों को अपने सपने लिख कर लटकाने होते हैं। आरोह कोशिश करता है कि बच्चों की इन मासूम आकांक्षाओं को पूरा कर सके।

ताज़ा समाचार और रोचक जानकारियों के लिए आप हमारे राज एक्सप्रेस वाट्सऐप चैनल को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। वाट्सऐप पर Raj Express के नाम से सर्च कर, सब्स्क्राइब करें।

और खबरें

No stories found.
logo
Raj Express | Top Hindi News, Trending, Latest Viral News, Breaking News
www.rajexpress.com