600 छात्रावासों का संचालन राज्य शिक्षा केन्द्र के लिए बना सिरदर्दी का कारण

भोपाल, मध्यप्रदेश : 20 जिलों में कलेक्टर भी नहीं हटा पाए तीन साल से ज्यादा समय झेल चुके वार्डन को। स्थानीय राजनैतिक दबाव के कारण नियम का पालन कराने में दिक्कतें, कई पहुंचे कोर्ट में।
600 छात्रावासों का संचालन राज्य शिक्षा केन्द्र के लिए बना सिरदर्दी का कारण
600 छात्रावासों का संचालन राज्य शिक्षा केन्द्र के लिए बना सिरदर्दी का कारणSyed Dabeer Hussain - RE

भोपाल, मध्यप्रदेश। प्रदेश में राज्य शिक्षा केंद्र के लिए शिक्षकों को वार्डन के रूप में छात्रावासों का प्रभार देना सिरदर्दी का कारण बन गया है। 20 जिले ऐसे हैं जहां पर प्रभार की अवधि गुजर जाने के बाद भी वार्डन हटने को तैयार नहीं है। केन्द्र के मुताबिक कई ने तो कोर्ट की शरण भी ले रखी है।

प्रदेश में बालिका कस्तूरबा गांधी बालिका और बालक छात्रावासों को मिलाकर तकरीबन 600 हॉस्टल चल रहे हैं। नियम के अनुसार शिक्षक को वार्डन के रूप में तीन साल के लिए प्रभार दिया जाता है। इस नियम के मुताबिक शिक्षक स्कूलों में पढ़ाई करवाएगा और छात्रावास की अकादमिक एवं प्रशासनिक निगरानी भी रखेगा। सर्वशिक्षा अभियान में कलेक्टरों के अधीन यह पूरी व्यवस्था है। जिलाधिकारी को ही मिशन संचालक बनाया जाता है। राज्य शिक्षा केन्द्र के पास जो रिपोर्ट आई है। उसके मुताबिक वार्डन का कार्यकाल से 6 से लेकर 7 वर्ष हो गया है। 20 जिले ऐसे हैं, जहां पर वार्डन यह प्रभार छोडऩे को तैयार नहीं है। इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर, सागर, छतरपुर, दमोह, टीकमगढ़, दतिया, भिंड, मुरैना, रतलाम, देवास, सतना, रीवा, उज्जैन, मंदसौर, नीमच, कटनी जैसे जिलों में कई वार्डन का कार्यकाल अवधि से अधिक हो गया है।

कलेक्टरों पर स्थानीय राजनैतिक दबाव :

कलेक्टर अगर जिलों में कार्रवाई करते हैं तो स्थानीय राजनीति आड़े आ रही है। विधायक से लेकर मंत्री तक इन वार्डन को यथावत रखने के लिए कलेक्टर पर दबाव बना रहे हैं। राज्य शिक्षा केंद्र का कहना है कि पहले भी पत्र लिखे जा चुके हैं कि जिसका तीन साल से अधिक कार्यकाल हो गया हो, उसे तत्काल हटाया जाए। उसके बाद भी इस नियम का पालन कलेक्टर राजनीतिक दबाव में नहीं करवा पा रहे हैं। राज्य शिक्षा केंद्र का कहना है कि वार्डन का लगातार छात्रावास में बने रहना उनकी मंशाओं को दर्शा रहा है। कोरोना के कारण पिछले दो साल से छात्रावास बंद रहे हैं। उसके बाद भी वार्डन को वेतन के रूप में धनराशि का भुगतान हुआ है। नियम का पालन करवाना है। इस कारण नवीन शिक्षण सत्र में जिन वार्डन का कार्यकाल तीन साल से ज्यादा हो गया है उन्हें हटाने के लिए शक्ति अपनाई जाएगी।

प्रति विद्यार्थी मासिक 1500 रूपये :

केन्द्र के अनुसार छात्रावास सौ अथवा 50 सीटर हो। वहां पर प्रत्येक छात्र के मान से मासिक 1500 रूपये की धनराशि भोजन के रूप में दी जाती है। यानि कि 100 सीटर छात्रावास को वर्ष में 40 लाख रूपये का भुगतान होता है। अकादमिक एवं अन्य व्यवस्थाएं बनाने के लिए अलग से प्रावधान है। इसका पूरा लेखा-जोखा भी वार्डन को करना होता है। कोरोना वायरस के कारण छात्रावासों में पढऩे वाले बच्चों का शैक्षणिक स्तर भी प्रभावित हुआ है। इस बात को राज्य शिक्षा केंद्र ने स्वीकार किया है। केंद्र का कहना है कि जून में नवीन शिक्षण सत्र प्रारंभ हो रहा है। सत्र के पहले दिन से ही छात्रावास में बच्चों की अकादमिक व्यवस्था को सुधारने पर पूरा फोकस होगा। इसके लिए अभी से नई प्लानिंग के तहत कार्य हो रहा है।

इनका कहना :

नियम यही है कि वार्डन का प्रभार तीन साल का होगा। अनेक जिलों से शिकायतें आई हैं कि कई वार्डन का कार्यकाल ज्यादा हो गया है। उसके बाद भी वह हटे नहीं है। कई तो कोर्ट में भी चले गये हैं। यह पूरी व्यवस्था बनाने की जवाबदारी कलेक्टरों की है।

आरके पांडेय, समन्वयक, बालिका शिक्षा, राज्य शिक्षा केन्द्र

फैक्ट फाइल :

  • टोटल छात्रावास : 598

  • बालिका छात्रावास : 207

  • कस्तूरबा गांधी छात्रावास : 207

  • बालक छात्रावास : 66

  • प्रति छात्र-छात्रा मासिक राशि : 1500

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