10 वर्ष की उम्र से स्त्री रूप धर लौंडा नाच कर रहे पद्मश्री रामचंद्र मांझी

भोपाल, मध्य प्रदेश : मैं आज भी खपरेल वाले कच्चे घर में रहता हूं और पद्मश्री तक पहुंचने का सफर आसान नहीं था। मेरी तरह ही मजदूर से कलाकार बनीं भूरी बाई का सम्मान देखकर खुशी हुई।
पद्मश्री रामचंद्र मांझी
पद्मश्री रामचंद्र मांझीSocial Media

भोपाल, मध्य प्रदेश। हाल ही में पद्मश्री और लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित हुए 95 वर्षीय कलाकार रामचंद्र मांझी गमक श्रृंखला के अंर्तगत नाटक का मंचन करने भोपाल पहुंचे। लौंडा नाच की परंपरा को आगे बढ़ाने वाले रामचंद्र मांझी ने राज एक्सप्रेस से बातचीत में बताया कि मैं अपनी कला को ही पूजा मानता हूं। मैं 10 साल की उम्र से स्त्री की वेशभूषा धर नृत्य, गायन और नाटक का मंचन कर रहा हूं। मैं दलित परिवार से हूं और पुरूष प्रधान समाज में स्त्री का वेश धर नाच गाना कर रहा हूं , जीवन में ऐसे बहुत से पल आए जब समाज ने मुझे व मेरी कला को नकारा और निंदा की। लेकिन मैं मानता हूं कि एक कलाकार के लिए उसकी कला को जिंदा रखना सबसे बड़ा धर्म है। मेरा नाम पद्मश्री के लिए चुना गया, मुझे खबर मिली तो आश्चर्य हुआ, लेकिन खुश हूं कि मेरी कला को आखिरकार सम्मान मिला।

भूरी बाई जैसेे असली कलाकारों के सम्मान से हूं खुश :

मैं आज भी खपरेल वाले कच्चे घर में रहता हूं और पद्मश्री तक पहुंचने का सफर आसान नहीं था। मेरी तरह ही मजदूर से कलाकार बनीं भूरी बाई का सम्मान देखकर खुशी हुई। उम्र के इस पड़ाव पर आकर ही सही लेकिन असली कलाकार हैं, उन्हें पुरस्कार मिल रहे हैं, इस बात से खुश हूं।

कला का कोई मजहब धर्म नहीं होता :

कला का कोई मजहब, धर्म नहीं होता। कलाकार के लिए कला ही धर्म है यह कहना है रामचंद्र मांझी का। कलाकार का सम्मान उसकी कला की पहचान है। मैंने देश भर में गरीब- अमीर,सभी जाति वर्ग के लोगों के बीच में परफॉर्म किया है, लेकिन मेरे लिए सभी दशर्क ही होते हैं। अपनी नाचा कला और परंपरा का सम्मान जनक स्थान दिला पाया, यह मेरे लिए गर्व की बात है। मैं बीते 85 सालों से साड़ी पहनती हूं और मेकअप करती हूं, इसलिए अगर मुझे नचनिया कहा जाए तो मुझे क्यों बुरा लगेगा, इन वर्षों में हमने सीखा है कि इन चीजों से कैसे निपटा जाए।

मैंने भी देखी भोपाल की गैस त्रासदी :

मैंने मशहूर डांसर हैलन और भोपाल की कलाकार गुलाब बाई के साथ भी परफॉर्म किया है। मैं गुलाब बाई के साथ नाटक का मंचन करने भोपाल आया था मेरे कार्यक्रम के अगले दिन पता लगाा कि भोपाल में कोई गैस छूट गई है, तो हम भी घबरा गए थे लेकिन ऐसे कठिन समय मेें भोपाल के लोगों का जज्बा देखकर हैरान रह गया था।

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