बच्चों के भविष्य से खिलवाड़
बच्चों के भविष्य से खिलवाड़Ganesh Dunge

बुरहानपुर: स्‍कूल के नाम पर बच्चों के भविष्य से हो रहा खिलवाड़

बुरहानपुर: ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ किया जा रहा, यहां निजी स्कूल दुकानों में संचालित हैं और शिक्षा विभाग के अधिकारी नियम विरूद्ध चल रहे इन स्कूलों को अनदेखा कर कर रहे हैं।

हाइलाइट्स:

  • बुरहानपुर जिले में नौनिहाल बच्‍चों के भविष्य से हो रहा खिलवाड़।

  • नियम विरूद्ध चल रहे निजी स्कूलों पर शिक्षा विभाग नहीं कर रहा कार्रवाई।

  • दुकानों में संचालित हो रहे निजी स्कूल।

  • बिना डीएड, बीएड के शिक्षक, बच्चों को पढ़ाते हैं।

राज एक्‍सप्रेस। बुरहानपुर जिले के धुलकोट में शासन के नियम विरूद्ध संचालित हो रहे निजी स्कूलों पर जिला शिक्षा विभाग कार्यवाही करने में क्यों कतरा रहा है या फिर ऐसा मान लिया जाये कि, निजी स्कूलों के संचालकों और जिले में बैठे शिक्षा विभाग के अधिकारीयों के बीच अच्छा खासा कमीशन का खेल चल रहा है, जिसके चलते क्षेत्र में नियम विरूद्ध संचालित हो रहे निजी स्कूल पर कार्यवाही नहीं होती और ऐसा भी नहीं है कि, जिले में बैठे शिक्षा विभाग के अधिकारियों को इन निजी स्कूलों की जानकारी नहीं है।

शिक्षा विभाग के अधिकारी कर रहे अनदेखा :

जानकारी होने के बावजूद भी शिक्षा विभाग के अधिकारी इन निजी स्कूलों के नियम विरूद्ध संचालन को अनदेखा कर रहे हैं। धुलकोट क्षेत्र में वर्ष दर वर्ष निजी स्कूलों की संख्या में वृद्धी होती जा रही और शिक्षा विभाग भी इन निजी स्कूलों को देखे बगैर मान्यता देने में परहेज नहीं करते, भले ही इन निजी स्कूलों में कोई व्यवस्था न हो अगर लिफाफे में वजन है, तो आपको स्कूल की मान्यता झट से मिल जायेगी। शहरों को छोड़ आदिवासियों में सेंध लगा रहे, निजी स्कूल संचालक कुछ समय से निजी स्कूल संचालकों ने शहरी क्षेत्रों में स्कूले न खोल आदिवासी ग्रामीण क्षेत्रो में स्कूलों का संचालन किया जा रहा है।

इसके कुछ कारण है :

शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में इन निजी स्कूल संचालकों को कम दामोंं पर किराये के मकान मिल जाते हैं, जिनमें स्कूल संचालित करते हैं। कम किराये के वाहन मिल जाते हैं, जिनसे विद्यार्थियों को लाने छोड़ने का काम किया जाता है। इस समय बुरहानपुर जिले के आदिवासी बाहुल्य धुलकोट क्षेत्र में भी निजी स्कूलों का संचालन शासन के नियमों का तांक पर रख कर धड़ल्ले से किया जा रहा है, क्योंकि इन निजी स्कूल संचालकों को जिले में बैठे शिक्षा विभाग के अधिकारियों का संरक्षण मिल गया है, तब जाकर यह लोग स्कूलों का संचालन बेखौफ होकर कर रहे। शिक्षा विभाग के अधिकारी आये दिन क्षेत्र में शासकीय स्कूलों के भ्रमण पर आते हैं, लेकिन क्या इन अधिकारियों को क्षेत्र में नियम विरूद्ध चल रहे निजी स्कूलों की खामियां नजर नहीं आती, यह एक विचारणीय बिन्दु है।

किस आधार पर इन स्कूलों को दे दी जाती मान्यता :

धुलकोट क्षेत्र में संचालित हो रहे निजी स्कूलों का एक भी भवन स्वयं का नहीं है, कुछ निजी स्कूल प्रधान मंत्री आवासों में संचालित हो रही, तो कुछ स्कूल घरेलू मकानों एवं शटर नुमा दुकानों में संचालित हो रही और न ही इन स्कूलों के पास बच्चों के लिए खेलने के मैदान है। न ही किसी भी निजी स्कूल में बच्चों को बैठने के लिए फर्नीचर है, दिनभर जमीन पर बैठने से बच्चों की कमर भी जवाब दे जाती है। अब भला इन हालातों में नौनिहाल बच्चे कैसे पढ़ाई कर पायेंगे? कुछ स्कूल तो मुख्य मार्गों पर संचालित हो रही शटर नुमा दुकानों में हैं। वहीं इन मुख्य मार्गों से रोजाना छोटे-बड़े सैकड़ों वाहन गुजरते हैं, इन बच्चों को बाहर जाने से रोकने के लिए स्कूलों में मेनगेट भी नहीं है, जिसके कारण दौड़कर सडक मार्गो पर निकल जाते है, जिससे की हमेशा दुर्घटना का अंदेशा बना रहता है और इन निजी स्कूलों के संचालन में यह भी देखा गया है।

बच्चों को बिना डीएड, बीएड के शिक्षक पढ़ाते है :

इन स्कूलों में बिना डीएड, बीएड के शिक्षक ही बच्चों को पढ़ा रहे है और ग्रामीण क्षेत्रो में निजी स्कूल संचालकों को कम तनख्वाह में ऐसे कई 10वीं 12वीं पास शिक्षक मिल जाते है। संचालकों द्वारा स्कूली बच्चों के परिवहन के लिए सस्ते दामों पर किराये के वाहन भी अटैच कर रखे है, वाहनों में बच्चों को ठूस-ठूस कर बिठाया जाता है। अधिकांश वाहनों के तो बीमा, फिटनेस एवं कई महत्वपूर्ण कागजात भी नहीं होते, साथ ही इन स्कूल वाहनों को ऐसे ड्रायवर चलाते हैं, जिनके पास लायसेंस भी नहीं होते, जबकि इन निजी स्कूल संचालकों द्वारा बच्चों के अभिभावकों से फीस के रूप में मोटी रकम वसूली जाती है और स्कूलों में सर्व सुविधा की बात की जाती है, लेकिन इन निजी स्कूलों की जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है। ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित होने वाले निजी स्कूलों में और भी कई प्रकार की खामिया हैं। उसके बावजूद भी शिक्षा विभाग द्वारा इन निजी स्कूलों को मान्यता किस आधार पर दी जाती है, यह बात समझ से परे है।

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