शहडोल : सिंघानिया ने करोड़ों की सरकारी भूमि पर किया कब्जा!

पवित्र तीर्थ एवं पर्यटन स्थल अमरकंटक की करोड़ो की सरकारी भूमि पर भू-माफिया की नजर लगी हुई है, कपिल धारा रोड में पाल बंगला के बगल की बेशकीमती भूमि पर बुढ़ार के समाजसेवी ने कब्जा कर लिया है।
सिंघानिया ने करोड़ों की सरकारी भूमि पर किया कब्जा!
सिंघानिया ने करोड़ों की सरकारी भूमि पर किया कब्जा!Raj Express

शहडोल, मध्यप्रदेश। पवित्र तीर्थ एवं पर्यटन स्थल अमरकंटक की करोड़ों की सरकारी भूमि पर भू-माफिया की नजर लगी हुई है, कपिल धारा रोड में पाल बंगला के बगल की बेशकीमती भूमि पर बुढ़ार के समाजसेवी ने कब्जा कर लिया है। सरकारी रिकार्ड में म. प्र. नजूल नवइत जंगल दर्ज है, फिर भी राजस्व विभाग के पटवारी, तहसीलदार एवं एसडीएम ने कैसे इस जमीन को किसी के नाम लिख दिया यह बड़ा सवाल है।

एक तरफ प्रदेश के संवेदनशील मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान नर्मदा उद्गम स्थल पवित्र तीर्थ क्षेत्र अमरकंटक के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु सतत् प्रयासरत हैं। वहीं दूसरी ओर चांदी के चंद सिक्कों की खनन के आगे नतमस्तक होकर राजस्व विभाग के कर्मचारी, अधिकारी सरकारी रिकार्ड में छेड़छाड़ कर के करोड़ों की सरकारी जमीन को कारोबारी को सौंपने का काम कर रहे हैं। तिरूपति कंस्ट्रक्शन के मालिक पद्म सिंघानिया के रिश्ते सत्ता तथा विपक्ष के जिम्मेदारों के साथ कितने मधुर हैं और शहडोल संभाग ही नहीं बल्कि मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ सहित अन्य रा'यों में फैले उनके करोड़ों के कारोबार को देखकर नौकरशाहों से उनके रिश्तों व रसूख का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।

क्या है मामला :

पटवारी हलका अमरकंटक की खसरा नंबर 307/1क रकबा 11.258 हे. की जमीन में म.प्र. नजूल नवइत जंगल जिसके अंश भाग 0.405 हे. सड़क वन विद्यालय, पाल बंगला, स्काडट गाइड, नगर पंचायत का पर्यटक गेस्ट हाउस, नगर पंचायत का प्रिंस गेस्ट हाउस एवं खाली भूमि पद्म सिंघानिया पिता श्रवण कुमार सिंघानिया का पोल से घिरा हुआ भू-भाग 100X200 वर्गफिट कुल 20 हजार वर्गफिट है। श्री सिंघानिया के अनुसार खसरा नं. 307 अंतर्गत स्थित प्लाट क्रमांक 10 रकवा 20 हजार वर्गफिट भूमि वर्ष 1954 में राम नरेश सिंह पिता तहेदिल सिंह डायरेक्टर ऑफ प्रोडेक्शन नेशनल कोल डेव्हलपमेंट कार्पोरेशन ऑफ इंडिया निवासी रांची बिहार के नाम से आवंटित थी, जिसके द्वारा 19 फरवरी 1963 को पद्म सिंघानिया के पितामह के नाम विक्रय पत्र का निष्पादन कराया जाकर कब्जा सौंप दिया गया था, जिसका नामांतरण आदेश पंजी क्रमांक 33 दिनांक 30 अगस्त 1978 से तहसीलदार पुष्पराजगढ़ द्वारा स्वीकृत किया गया, जिसका अमल राजस्व अभिलेख में वर्ष 1978 से लगातार वर्तमान वर्ष 2020 तक नहीं हो पाया और वर्तमान राजस्व अभिलेख में म.प्र. शासन निरंतर दर्ज होता चला गया।

यह है पटवारी का प्रतिवेदन :

अनुविभागीय अधिकारी पुष्पराजगढ़ को दिए गए प्रतिवेदन में पटवारी हल्का अमरकंटक ने अपने प्रतिवेदन में लेख किया है कि टाउनशिप डेव्हलपमेंट बोर्ड अमरकंटक का वाद भूमि प्लाट खण्डन के संबंध में अभिलेख उपलब्ध न होना और प्लाट खण्ड का भी उल्लेख मूल खसरा व नक्शे में नहीं होना लेस किया है। एक प्रकरण की कार्यवाही में अनुविभागीय अधिकारी ने स्वयं लेख किया है कि आवेदित भूमि के संबंध में टाउनशिप डेव्हलपमेंट बोर्ड अमरकंटक का अभिलेख बुलाना आवश्यक है। इसके बावजूद बिना पुराने अभिलेख की उपलब्धता के यह जमीन पद्म सिंघानिया के नाम कैसे दर्ज कर दी गई जांच का विषय है।

42 साल बाद कैसे दे दी भूमि :

सरकारी दस्तावेजों के मुताबिक वर्ष 1978 से 2020 तक अर्थात 42 साल तक उक्त भूमि पद्म कुमार सिंघानिया के नाम पर नामांतरण नहीं हुई थी, बल्कि उक्त भूमि में म.प्र. नजूल नवइत जंगल दर्ज था, बावजूद इसके किस नियम और किस कानून के तहत 42 साल बाद 2020 में पद्म कुमार सिंघानिया के नाम पर उक्त करोड़ों की भूमि दर्ज कर दी गई, यह बड़ा सवाल है और जांच का विषय है। भू-राजस्व संहिता के मुताबिक 12 साल तक यदि किसी भूमि का नामांतरण नहीं हुआ, तो वह भूमि म.प्र. शासन के नाम पर ही दर्ज होगी।

इनका कहना है :

वर्ष 1963 में मेरे दादा के नाम पर रजिस्ट्री हुई थी और वर्ष 1978 में मेरे नाम नामांतरण कर दिया गया, लेकिन खसरे में विभागीय त्रुटि के कारण दर्ज नहीं हो पाया। उस जमीन में मेरा मकान भी बना है, जिसका सत्यापन 2004 में नगर निवेश ने किया है। मैनें रिकार्ड दुरूस्त करने हेतु आवेदन लगाया, पटवारी, तहसीलदार की जांच के बाद मेरे पक्ष में पट्टा बनाया गया है।

पद्म कुमार सिंघानिया, बुढ़ार

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