SHAJAPUR: शाजापुर में ईंट कारोबार पर मावठे का लॉकडाउन, संचालकों का बैठा भट्ठा

शाजापुर के पारंपरिक ईंट निर्माण कारोबार पर प्राकृतिक आपदा भी लगभग हर साल संकट की परंपरा निभाती है। कमोबेश इस साल भी कुछ ऐसा ही हो रहा है।
कच्ची ईंट पर पानी गिरने से ईंट कारोबार का बैठा भट्ठा।
कच्ची ईंट पर पानी गिरने से ईंट कारोबार का बैठा भट्ठा। Jitendra Prajapati

हाइलाइट्स

  • कच्ची ईंट पर पानी गिरा

  • ईंट कारोबार का बैठा भट्ठा

  • दो दिन के मावठे की सजा 10 दिन

राज एक्सप्रेस। शाजापुर में मावठे के कारण ईंट निर्माण के पारंपरिक कारोबार को बड़ा नुकसान हुआ है। मावठे के कारण जिले के शुजालपुर, मक्सी, मोहन बड़ोदिया समेत आसपास के कई ग्रामीण इलाकों में कच्ची ईंटों के पथार घुलकर खराब हो गए। ईंट भट्ठा संचालकों के सामने अब लाखों की संख्या में खराब हुई कच्ची ईंटों के पथार को फिर से थापने के सिवाय अब कोई और चारा नहीं रह गया है।

शाजापुरी ईंट की मांग -

वजन, रंग, आकार, फिनिशिंग से लेकर अच्छी तरह से पककर तैयार शाजापुर की ईंटों की डिमांड नजदीकी जिलों से लेकर इंदौर के भवन निर्माण कारोबारियों के बीच ऑफ सीजन में भी रहती है।

बारिश के महीनों को छोड़कर लगभग आठ महीने तक बनाई जाने वाली शाजापुर की ईंटों की मांग का आलम यह है कि इनके बनने के पहले ही खरीदने वाले ईंट भट्ठों पर अपनी जरूरत के हिसाब से एडवांस बुकिंग कर देते हैं।

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मावठे की मार –

वर्ष 2022 के शुरुआती सप्ताह में धुंध के साथ हो रही बारिश के कारण ईंट कारोबारियों के लिए नए साल का आगाज उम्मीद के लिहाज से ठीक नहीं रहा। यहां ईंट बनाने वालों ने मेहनत पर पानी फिरने के कारण बिजनेस में लगा पैसा पानी की तरह बहने से ईंट कारोबार का भट्ठा बैठने की निराशा जताई है। ईंट भट्ठा संचालकों ने दो दिन से जारी मावठे की मार के कारण आर्थिक नुकसान होना बताया है।

लॉकडाउन की स्थिति -

ईंट बनाने वाले राहुल मालवीय का कहना है कि पिछले साल कोरोना के कारण लगे लॉक डाउन के कारण कामकाज ठप्प रहा। नये साल पर नई उम्मीद के साथ कामकाज शुरू तो हुआ लेकिन अब मावठे के कारण ईंट भट्ठों पर कामकाज रुकने से फिर एक तरह से लॉकडाउन के दिनों जैसी स्थिति महसूस होने लगी है।

शाजापुर शहर में ही तकरीबन 180 से 200 ईंटो के भट्ठे संचालित हैं। हर एक भट्ठे के मालिक को ढ़ाई से 3 लाख रुपये का नुकसान हुआ है। प्राकृतिक आपदा का सरकार द्वारा कोई मुआवजा भी नहीं दिया जाता। इसलिए पारंपरिक काम की परंपरा को कायम रखना अब कठिन हो रहा है।
धर्मेंद्र प्रजापति, अध्यक्ष, शाजापुर ईंट भट्टा एसोसियन एवं नवयुवक प्रजापति समाज

प्रेसिडेंट धर्मेंद्र बताते हैं कि उनका परिवार 30 साल से भी अधिक समय से ईंट कारोबार में रत है। पहले की अपेक्षा ईंट बनाने में लगने वाली चुरी, भूसा, कोयला सरीखा कच्चा माल अब काफी महंगा हो गया है। ईंट बनाने वाले मजदूरों को भी एडवांस में पैसा देना पड़ता है। ऐसे में प्राकृतिक आपदा की वजह से होने वाला आर्थिक नुकसान भट्ठा कारोबारी को भुगतना पड़ता है।

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दो दिन का खामियाजा 10 दिन -

ईंट भट्ठा सुपरवाईजर नरेंद्र प्रजापति बताते हैं कि; बड़े पैमाने पर ईंट बनाने वाले व्यवसाइयों को इस बार ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा है। दो दिन के मावठे की मार 10 दिन के कामकाज पर पड़ेगी क्योंकि जब तक जगह सूखेगी नहीं ईंट बनाने का कामकाज प्रभावित होता रहेगा।

शहरवासियों को गुरुवार से ही सूर्यदेव के दर्शन नहीं हुए हैं। गुरुवार शाम एवं देर रात के बाद बने बारिश के मौसम के बाद शुक्रवार को दिन में ठंड के साथ तेज बारिश हुई। लोग दिनभर कड़ाके की ठंड के कारण ठिठुरे दिखे। बारिश इतनी तेज थी कि भट्ठा संचालकों को थापी गई कच्ची ईंटों को तिरपाल से ढांकने तक का समय नहीं मिल पाया।

कृषि अनुसंधान केंद्र वैज्ञानिकों ने मावठ को गेंहूं, सरसों, जौ, चना जैसी रबी की फसलों के लिए फायदेमंद बताया है। इससे बढ़ी हुई पैदावार देखने को मिलेगी।

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