कोल इंडिया ने शुरू किया डंपरों में डीजल के बदले एलएनजी इस्तेमाल करने का पायलट प्रोजेक्ट

सिंगरौली, मध्यप्रदेश : अपना कार्बन फुटप्रिंट कम करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए सार्वजनिक क्षेत्र की महारत्न कंपनी सीआईएल ने अपने डंपरों में एलएनजी किट्स लगाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
कोल इंडिया ने शुरू किया डंपरों में डीजल के बदले एलएनजी इस्तेमाल करने का पायलट प्रोजेक्ट
कोल इंडिया ने शुरू किया डंपरों में डीजल के बदले एलएनजी इस्तेमाल करने का पायलट प्रोजेक्टराज एक्सप्रेस, संवाददाता

सिंगरौली, मध्यप्रदेश। अपना कार्बन फुटप्रिंट कम करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए सार्वजनिक क्षेत्र की महारत्न कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) ने अपने डंपरों में लिक्विफाइड नैचुरल गैस (एलएनजी) किट्स लगाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। डंपरों का इस्तेमाल कोयला खदानों में कोयला परिवहन में किया जाता है। सीआईएल दुनिया की सबसे बड़ी कोयला उत्पादक कंपनी है और वह हर साल 4 लाख लीटर से अधिक डीजल का उपभोग करती है, जिस पर सालाना 3,500 करोड़ रुपए से अधिक राशि खर्च होती है।

कंपनी ने गेल (इंडिया) लिमिटेड और बीईएमएल लिमिटेड के साथ मिलकर अपनी अनुषंगी कंपनी महानदी कोलफील्डस लिमिटेड (एमसीएल) में कार्यरत 100 टन क्षमता के 2 डंपरों में एलएनजी किट्स फिट करने का पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया है। इस प्रोजेक्ट के कार्यान्वयन के लिए सीआईएल ने मंगलवार को गेल और बीईएमएल के साथ एक एमओयू किया। इन डंपरों में एलएनजी किट को सफलतापूर्वक लगाने और उनके परीक्षण के बाद ये डंपर दोहरी ईंधन प्रणाली (डूअल फ्यूल सिस्टम) के साथ काम कर सकेंगे। एलएनजी के इस्तेमाल से इन डंपरों का संचालन अधिक ईको-फ्रेंडली और कम लागत वाला होगा।

कोल इंडिया के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि कंपनी की ओपनकास्ट खदानों में इस समय 2,500 भारी मशीनें (एचईएमएम) कार्यरत हैं। कंपनी का डंपर बेड़ा कंपनी में होने वाली कुल डीजल खपत का 65% से 75% उपभोग करता है। एलएनजी, डीजल का 30% से 40% उपभोग कम करेगा, जिससे कंपनी की ईंधन लागत में 15% की कमी होगी। इस कदम से कंपनी के कार्बन उत्सर्जन में खासी कमी आएगी और यदि डंपर सहित कंपनी की सभी मौजूदा हैवी अर्थ मूविंग मशीनों (एचईएमएम) में एलएनजी किट्स लगा दी जाएं, तो कंपनी के ईंधन खर्च में सालाना लगभग 500 करोड़ रुपए की बचत होगी। साथ ही, डीजल चोरी और मिलावट से भी मुक्ति मिलेगी।

इस पायलट प्रोजेक्ट का मुख्य उद्देश्य विभिन्न लोड एवं संचालन परिस्थितियों में डीजल के एलएनजी से होने वाले रिप्लेसमेंट रेट की निगरानी करना और इंजन परफॉर्मेंस मानकों एवं साइकल टाइम सहित डंपर की कार्यप्रणाली में होने वाले वाले परिवर्तनों को चिन्हित करना है।

ड्यूल फ्यूल (एलएनजी-डीजल) सिस्टम के साथ अलग-अलग लोड और परिस्थितियों में डंपर संचालन करने का यह ट्रायल 90 दिनों तक चलेगा। ट्रायल के दौरान प्राप्त होने वाले डेटा के आधार पर एक तकनीकी-आर्थिक अध्ययन किया जाएगा, जोकि सीआईएल की परिस्थितियों में इस सिस्टम की फीज़बिलटी (संभाव्यता) का आकलन करेगा। इस पायलट प्रोजेक्ट के नतीजों के आधार पर कोल इंडिया बड़ी संख्या में एचईएमएम, खास तौर पर डंपरों, में एलएनजी किट फिट करने का निर्णय लेगी। यदि यह प्रोजेक्ट सफल होता है, तो कंपनी ने अब से सिर्फ एलएनजी इंजन वाली एचईएमएम खरीदने की योजना बनाई है। यह कदम कोल इंडिया को तेजी से अपना कार्बन फुटप्रिंट कम करने और सस्टेनेबल लक्ष्यों की प्राप्ति में मदद करेगा।

गौरतलब है कि मुख्य वैश्विक डंपर निर्माता कंपनियां अब डुअल फ्यूल (एलएनजी-डीजल) सिस्टम इंजन वाले डंपरों के निर्माण की ओर स्विच हो रही हैं। सीआईएल का यह प्रयास कंपनी की खदानों में पहले से संचालित हो रही मशीनों के अधिक ग्रीन और कॉस्ट-इफेक्टिव संचालन की ओर एक बड़ा कदम है।

कोल इंडिया की अग्रणी अनुषंगी, एनसीएल के पास भी 1200 से अधिक भारी मशीनें हैं, जिनमें से अधिकांश डीज़ल से संचालित होती है। भविष्य में इस प्रोजेक्ट के अमलीकरण से एनसीएल को भी लाभ मिलने की संभावना है।

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