कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व को अंचल के कांग्रेसियों पर नहीं भरोसा

अंचल में काफी कांग्रेसी ऐसे हैं जो मूल रूप से कांग्रेसी हैं, लम्बे समय से पार्टी में रहते हुए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन वर्तमान में कांग्रेस के अंदर बाहर से आने वाले नेताओं को सम्मान दिया जा रहा है।
कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व को अंचल के कांग्रेसियों पर नहीं भरोसा
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हाइलाइट्स :

  • डॉ. गोविन्द सिंह, रामनिवास रावत को किया साइट लाइन

  • अंचल में होने वाले उप चुनाव तय करेंगे सरकार का रास्ता

ग्वालियर, मध्य प्रदेश। प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद से ही अंचल का वजूद बढ़ गया है, क्योंकि यहां 16 सीटो पर उप चुनाव होना है और उसके परिणाम से सरकार के आगे का रास्ता तय होना है। भाजपा के उम्मीदवार तो लगभग तय है, लेकिन कांग्रेस बाहरी लोगों पर विश्वास करने का कदम बढ़ा रही है, जिसके कारण उसके अंदर ही खलबली मची हुई है। सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद माना जा रहा था कि कांग्रेस के अंदर गुटबाजी अब समाप्त हो गई है, लेकिन ऐसा दिखता नजर नहीं आ रहा है, क्योंकि उप चुनाव को लेकर अंचल के नेताओं को दरकिनार कर बाहरी कांग्रेस नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी गई है।

उप चुनाव को देखते हुए भाजपा भी ग्वालियर-चंबल संभाग से मंत्रियों की संख्या अधिक करने जा रही है, लेकिन कांग्रेस अंचल के नेताओं को ही मुख्य रणनीति से दूर रखने में लगी हुई है। अभी तक अंचल में सिंधिया का बोलबाला था, जिसके कारण कांग्रेस के अन्य गुट के कांग्रेस शांत होकर अपने क्षेत्र तक ही सीमित रहते थे, लेकिन सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के बाद माना जा रहा था कि अंचल में अब एकजुट होकर कांग्रेस आगे का रास्ता तय करेगी, लेकिन फिलहाल जो देखा जा रहा है उसके मुताबिक कांग्रेस गुटबाजी से बाहर नहीं निकल पा रही है। कांग्रेस की तरफ से अंचल में पूर्व मंत्री डॉ. गोविन्द सिंह बड़े कद के नेताओ में शुमार माने जाते है ओर ऐसे में अगर उनको जिम्मेदारी दी जाती तो वह अपने प्रभाव का उपयोग बेहतर तरीके से कर सकते थे, क्योंकि अंचल की जिन सीटो पर चुनाव होना है वहां उनका काफी प्रभाव माना जाता है। पहले डॉ. सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनाएं जाने की भी चर्चा चली थी तो अंचल के कांग्रेसियों मे उत्साह का संचार भी हुआ था, लेकिन अचानक उनके नाम पर ब्रेक लगने से अंचल में कांग्रेसी मायूस हो गए है। कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व भी अंचल में स्थानीय कांग्रेस नेताओ को महत्व न देते हुए बाहरी नेताओ पर भरोसा कर उनको प्रभारी के तौर पर भेजा गया है, अब उनके सामने दिक्कत यह है कि अंचल में दिग्विजय सिंह गुट का खासा प्रभाव है ओर उनसे पटरी फिलहाल बैठ नहीं पा रही है जिसके कारण कांग्रेस फिलहाल बैकफुट पर नजर आ रही है।

मूल कांग्रेसियों से अधिक बाहर से आने वालों पर नजर :

अंचल में काफी कांग्रेसी ऐसे है जो मूल रूप से कांग्रेसी है और लम्बे समय से पार्टी में रहते हुए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन वर्तमान में कांग्रेस के अंदर बाहर से आने वाले नेताओं को काफी सम्मान दिया जा रहा है। कांग्रेस नेताओं को भी लगने लगा है कि जब दूसरे दल से आने वालों को सम्मान दिया जा रहा है तो फिर पहले और अब की कांग्रेस में क्या अंतर है। उप चुनाव के लिए भाजपा एवं बसपा से कई नेता कांग्रेस में आकर टिकट की लाइन में लग चुके हैं और अपने क्षेत्र में प्रचार भी करना शुरू कर दिया है वहीं भाजपा के कुछ नेताओं पर भी कांग्रेस नजर लगाएं हुए है और मंत्रीमंडल विस्तार के बाद अगर नाराजगी बढ़ती है तो अंचल मेें कई भाजपा नेता कांग्रेस में भी शामिल हो सकते हैं जिसको लेकर कांग्रेस लम्बे समय से प्रयासरत है। अगर इसमें कांग्रेस सफल होती है तो कांग्रेस के मूल कार्यकर्ता एक बार फिर लाइन के आखिर में खड़े दिखाई दे सकते हैं।

संगठन में भी क्षत्रियों को रखा जा रहा दूर :

अंचल में भिण्ड, मुरैना एवं ग्वालियर की जिन सीटो पर उप चुनाव होना है वहां क्षत्रियों का खासा वोटबैंक है। भाजपा जहां जातिगत समीकरण के हिसाब से काम कर रही है वहीं कांग्रेस जातिगत समीकरण को फिलहाल समझने में चूक कर रही है। कांग्रेस ने संगठन में जो नियुक्ति की है उसमें भी क्षत्रिय समाज के कांग्रेस नेताओ को दरकिनार रखा है जिसके कारण इस समाज के कांग्रेसियों में खासी नाराजगी बताई जा रही है, यही हाल फिलहाल भाजपा के संगठन में भी दिखाई दे रहा है। भाजपा जिलाध्यक्ष कमल माखाजानी की नियुक्ति के बाद से ही एक धड़ा नाराज चल रहा है। ग्वालियर शहर की ग्वालियर व ग्वालियर पूर्व विधानसभा में उप चुनाव होना है ओर ऐसे में अगर क्षत्रिय समाज के कांग्रेसियों को नाराज रखा जाता है तो कांग्रेस के लिए खासा नुकसानदायक साबित हो सकता है।

रामनिवास व डॉ. सिंह को नहीं दी जा रही ताकत :

अंचल में उप चुनाव में स्थानीय कांग्रेस नेताओं को ताकत न देना भी कांग्रेस के लिए नुकसानदायक हो सकता है। सिंधिया के सबसे नजदीक माने जाने वाले पूर्व मंत्री रामनिवास रावत ने जब सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ी उसके बाद भी वह कांग्रेस में ही रहे इसके बाद भी उनको महत्व कम दिया जा रहा है। इसी तरह सिंधिया की खिलाफत करने वाले पूर्व मंत्री डॉ. गोविन्द सिंह को भी सिर्फ भिण्ड जिले की दो सीटों तक सीमित कर दिया है। अब दोनों नेता फिलहाल तो शांत होकर काम कर रहे हैं, लेकिन अगर आगे भी महत्व नहीं दिया तो फिर कांग्रेस के लिए घातक हो सकता है। जबकि भाजपा स्थानीय नेताओ को महत्व देने में लगी हुई है और भाजपा के बड़े नेताओं को साधने का काम मंत्री नरोत्तम मिश्रा कर चुके हैं और इसका असर भी दिखना शुरू हो गया है।

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