पदोन्नत्ति में आरक्षण पर कोर्ट का निर्णय कितना प्रभावशाली...

भोपाल, मध्यप्रदेश: हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने प्रमोशन के संबंध फैसला सुनाते हुए नए नियम दृष्टिपात किए है जिसका असर प्रदेश पर दिखाई दे रहा है।
SC ने सुनाया प्रमोशन में आरक्षण को लेकर फैसला
SC ने सुनाया प्रमोशन में आरक्षण को लेकर फैसलाSocial Media

राज एक्सप्रेस। हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने प्रमोशन में आरक्षण के मसले पर फैसला सुनाया है कोर्ट के फैसले के तहत कहा गया है कि एससी और एसटी वर्गों के पर्याप्त प्रतिनिधित्व के साथ नियुक्ति के लिए राज्य सरकार को आरक्षण के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। जिससे इस फैसले से मध्यप्रदेश पर भी असर पड़ा है। दरअसल प्रमोशन को लेकर पूर्व में बने नियम के निरस्त होने के बाद से अब तक पदोन्नतियां नहीं हो पाई हैं। साथ ही इस फैसले के विरूद्ध कांग्रेस के नेताओं द्वारा सवाल उठाने की खबरें भी सामने आ रही हैं।

क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला :

बीते दिवस पहले सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट की याचिका को खारिज करते हुए फैसला सुनाया जिसमें कहा कि, राज्य सरकार प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है। यह किसी का मौलिक अधिकार नहीं है कि वह प्रमोशन में आरक्षण का दावा करे। इसके लिए राज्य सरकार को आरक्षण देने के लिए निर्देंश जारी नहीं कर सकता। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी जजमेंट (मंडल जजमेंट) का हवाला देते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद-16 (4) और अनुच्छेद-16 (4-ए) के तहत प्रावधान है कि राज्य सरकार आंकड़े एकत्र करे और पता लगाए कि एससी/एसटी कैटिगरी के लोगों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व है या नहीं ताकि प्रमोशन में आरक्षण दिया जा सके।

नियमों को दिया था असंवैधानिक करार :

बता दें कि, नया राज्य बनने के उत्तराखंड राज्य में पदोन्नति में आरक्षण के वही नियम लागू कर दिए गए थे जो कि उत्तरप्रदेश में प्रभावशील थे साथ ही नियमों को निर्णय में असंवैधानिक करार भी दिया गया था। जिसके बाद उत्तराखंड सरकार ने पदोन्नति के नए नियम ना बनाते हुए योग्यता और वरिष्ठता के आधार पर पदोन्नति करने के आदेश दिए थे जिसके विरूद्ध उत्तराखंड उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई थी। जिस पर आंकड़े एकत्रित करने का फैसला सुनाया था जिसके फैसले पर सर्वाच्च न्यायालय में याचिका दायर होने के बाद यह फैसला सुनाया गया।

प्रदेश में हाईकोर्ट ने नियम को किया था खारिज

बता दें कि, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का असर प्रदेश पर भी बरकरार है जिसमें जहां आरक्षण को मौलिक अधिकार नहीं बताया गया वहीं इससे जुड़ा मामला बीते 18 साल पहले सामने आया था जिसमें पदोन्नति में आरक्षण के संबंध में बने नियम को जबलपुर हाइकोर्ट ने 2002 में खारिज कर दिया था जिसके विरूद्ध सर्वोच्च न्यायालय में याचिका लगाई गई थी जिस पर फैसला फिलहाल लंबित है। जिसके कारण प्रदेश में 3 वर्षो से पदोन्नतियां भी बाधित हैं।जिसे लेकर पूर्व सरकार ने सेवानिवृत्ति की अवधि में 2 साल बढ़ाए थे लेकिन वर्तमान सरकार इस पर विचार कर रही है। वहीं कर्मचारी संगठन सपाक्स का मत है कि मप्र में पदोन्नति में आरक्षण के नियम पूरी तरह असंवैधानिक है सरकार ना तो नियम बना रही है और ना ही वरिष्ठता के आधार पर सामान या पिछड़ा वर्ग के सेवकों को पदोन्नत कर रही है।

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