मध्यप्रदेश : तत्कालीन एसडीएम के पारित आदेश पर अब तक नहीं हुआ अमल

मध्यप्रदेश में तहसीलदार मधु नायक के निर्देश पर निर्माण रोकने पहुँचा राजस्व अमला पर नहीं रुका निर्माण।
एसडीएम के पारित आदेश पर अब तक नही हुआ अमल
एसडीएम के पारित आदेश पर अब तक नही हुआ अमलGaurav Kapoor

मध्यप्रदेश। विगत 5 वर्षों से नागदा रो़ड स्थित विवादों में घिरी नए बस स्टैंड के सामने की भूमि जो की करोड़ों रुपये की बेशकीमती शासकीय भूमि बताई जा रही है, जिस पर पूरे नगर की जनता की निगाह टिकी हुई हैं सूत्रों से मिली जानकारी अनुसार बड़े राष्ट्रीय राजनेता के संरक्षण के चलते इस मामले में गली निकालकर भू माफियाओं को संरक्षण जारी है। उक्त जमीन पर साठगांठ कर भू माफियाओं ने छोटे-छोटे भूखण्ड काटकर जमीन के सौदेबाजी कर करोड़ो रूपये के वारे न्यारे कर लिये हैं। अब यहाँ खरीददारों द्वारा चोरी-चोरी, चुपके-चुपके निर्माण कार्य जारी है जिसका विरोध भी जारी है लेकिन कोई निष्कर्ष अब तक नहीं हो पाया है प्रशासन ही अब इस मामले का पटापेक्ष कर सकता है। विगत दो वर्षों से अब तक राजस्व विभाग अनुविभागीय अधिकारी के पारित आदेश पर यह तय नहीं कर पाए हैं कि भू माफिया ने क्या गुल खिलाये हैं कितनी शासकीय भूमि को धोखाधड़ी पूर्वक बेचा जा चुका है, अब तक तत्कालीन एसडीएम गोपाल वर्मा के पारित आदेश पर न्यायसंगत कार्रवाई नहीं हो पाई है। आम जनता में भी संशय बना हुआ है कि उक्त जमीन शासकीय गोचर हैं या फिर साठगांठ पूर्वक हथियाई हुई निजी।

सरकारी जमीनों की देखरेख करने का जिम्मा स्वयं प्रशासन का होता है और यदि प्रशासन ही कुम्भकर्णीय नींद सोया हो तो कोई भी सड़क छाप व्यक्ति भू माफिया बनकर प्रशासन में बैठे लोगों से सांठगांठ करके सरकारी जमीन की खरीद फ़रोख़्त करके करोड़पति बन जाता है। समय रहते ऐसे सड़क छाप लोगों पर सख्त कार्रवाई न होना कहीं न कहीं प्रशासन के जिम्मेदारों को भी सवालों के घेरे में खड़ा करता है। जब भी कोई सामाजिक कार्यकर्ता सरकारी जगहों के अतिक्रमणों को चिन्हित कर प्रशासन को सूचना देकर कार्रवाई करने की मांग करता हैं तो सरकारी भूमियों को ही जांच में डालकर जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा कार्रवाई में लेटलतीफी की जाती है या फिर वर्षो तक आवेदक को कोर्ट के चक्कर लगवाए जाते हैं ताकि भविष्य में कोई भी सामाजिक कार्यकर्ता पैदा न हो और सरकारी जमीनों के प्रकरणों में अधिकारियों की मनमानी सदैव चलती रही है। आम आदमी को प्रशासन हमेशा ही नियमों, कायदों में उलझाकर रखता है। जब भी कोई सामाजिक कार्यकर्ता सरकार के हित मे लड़ाई लड़ने के लिये जमीनी स्तर पर उतरता है तो उसे वर्षो तक न्याय के लिये भटकना पड़ता है सामाजिक कार्यकर्ता जेब से खर्च वहन करके सरकारी भूमियों के लिये लड़ाई लड़ता है लेकिन जिनकी जिम्मेदारी हैं सरकारी भूमियों से अतिक्रमण हटाने की वे भी अगर समय सीमा में अतिक्रमणकर्ताओं पर सख्त कार्रवाई नही करेंगे तो निश्चित ही शासकीय भूमियों को हड़पने में भू माफियाओं के हौसले बुलंद रहेंगे।

ये था पूरा मामला

वर्ष 2015-16 में आवेदक अभय चोपड़ा निवासी जैन कालोनी नागदा द्वारा एक आवेदन पत्र अनुविभागीय अधिकारी खाचरोद को प्रस्तुत किया गया था। जिसमें चोपड़ा ने बताया था कि कस्बा खाचरोद के भूमि खसरा नंबर 486/2 में सीमांकन के आधार पर करोड़ों रुपए की गोचर संपत्ति निजी व्यक्तियों द्वारा राजस्व कर्मचारियों से साठगांठ कर रिकॉर्ड में हेरफेर कर कूट रचना व धोखाधड़ी कर हथिया ली गई है। एसडीएम कार्यालय को इसी मामले से जुड़ी एक अन्य शिकायत भी प्राप्त थी जिसमें शिकायतकर्ता मुकेश बैरागी द्वारा प्रस्तुत आवेदन में बताया गया था की भूमि स्वामी रमेशचंद्र,पुरषोत्तम, प्रदीप कुमार पिता रामगोपाल माहेश्वरी द्वारा बिना कॉलोनाइजर लाइसेंस एवं नगर व ग्रामीण नियोजन विभाग की अनुमति के बिना तथा नगरपालिका से अनुमति लिये बिना खाचरौद की भूमि खसरा नंबर 486/2.486/2 एवं 488 कुल रकबा 0.919 हेक्टेयर भूमि को छोटे छोटे भू खंडों में परिवर्तन कर विक्रय कर दिये हैं। उक्त शिकायत जांच योग्य होने पर उक्त दोनों प्रकरण क्रमशः04/जांच 2015-16 एवं 03/जांच /2015-16 को अभय चोपड़ा के प्रकरण क्रमांक 138/बी- 121/2015-16 में जोड़कर जांच शुरू की गई थी दिनांक 14/12/2016 को एसडीएम न्यायालय ने उक्त भूमि सर्वे नंबर 486/2 पर यथा स्थिति बनाए रखने का आदेश भी जारी किया था।

अनावेदक द्वारा एस.डी.एम न्यायालय में दिनांक 17/5/17 को आवेदन प्रस्तुत कर बताया कि खाचरौद के भूमि सर्वे नंबर 486/2 रकबा 0209 हेक्टेयर के संबंध में स्वत्व घोषणा उनके पक्ष में की गई हैं। इसके बाद उनके द्वारा सीमांकन करवाया गया हैं। अनावेदक ने उक्त आवेदन के साथ माननीय अतिरिक्त जिला न्यायालय खाचरौद के प्रकरण क्रमांक 14/ए/96 निर्णय दिनांक 19/09/1998 की छायाप्रति प्रस्तुत की गई थी। माननीय न्यायालय के द्वारा पारित उक्त आदेश में अनावेदक को सर्वे नंबर 486/2 रकबा 0.209 हेक्टेयर का भूमि स्वामी घोषित किया था किंतु न्यायालय ने भौतिक आधिपत्य प्रमाणित नही पाया गया था। इसी संबंध में माननीय न्यायालय ने जय पत्र व निर्णय में स्पष्ट लेख किया था की वादीगण द्वारा यदि आवेदन दिया जाता है तो कलेक्टर अथवा उसके द्वारा नियुक्त किसी पदाधिकारी द्वारा वादग्रस्त भूमि की पहचान कर उसका सीमांकन किया जाएगा। लेकिन वादी गण द्वारा माननीय अतिरिक्त जिला न्यायालय खाचरौद के आदेश पालन में कलेक्टर महोदय या उनके अधीनस्थ अधिकारियों के समक्ष उक्त सर्वे नंबर 486/2 रकबा 0.209 हे० की पहचान करने ( नक्शे में बटांकन करने ) हेतु कोई आवेदन प्रस्तुत नही किया ऐसा कोई दस्तावेज प्रकरण में प्रस्तुत नही पाया गया। एसडीएम न्यायालय खाचरौद द्वारा भूमि खसरा नंबर 486/2 रकबा 0.209 हे० के संबंध में नक्शा देखे जाने पर इस बात का खुलासा हुआ कि 486/2 की बटांकन नक्शे में डली हुई है बटांक डाले जाने वाला प्रकरण क्रमांक 14/अ-3/2011-12 को एसडीएम कोर्ट ने तहसील सेे तलब किया तो इस बात का खुलासा हुआ की खसरा नंबर 486/1/3.502.503 कुल किता 3 की भूमि मॉडल स्कूल के निर्माण हेतु आरक्षित करने हेतु कलेक्टर नजूल के आदेश का हवाला देकर बटा नंबर स्वीकृत कराने हेतु बटा फर्द की रिपोर्ट तहसीलदार को प्रस्तुत की गई थी। जिसमे बटा नंबर फर्द में उक्त तीनों ही नंबर तहसीलदार के समक्ष प्रस्तुत किये गये थे.किंतु तत्कालीन पटवारी द्वारा भू माफिया से साठगांठ करके कूटरचना करके नक्शे में उक्त तीन नंबरों के अतिरिक्त खसरा नंबर 486/2 की बटांकन भी स्वीकृत करा ली गई थी जबकि तहसील से तलब प्रकरण क्रमांक 14/अ-3/2011-12 की आदेशिका में 486/2 का कोई उल्लेख नही पाया गया। एस डी एम कोर्ट ने जांच में यह भी माना कि पटवारी द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट दिनांक18/01/2012 में भी 486/2 का कही कोई उल्लेख नही हैं। तत्कालीन पटवारी द्वारा नक्शे में लाल स्याही से अन्य नंबरों के साथ 486/2 भी बना दिया गया था।

अभय कुमार चोपड़ा द्वारा एसडीएम न्यायालय को प्रस्तुत आवेदन में इसी कूट रचना को चुनौती दी गई थी

तत्कालीन एस डी एम गोपाल वर्मा द्वारा पारित आदेश में तहसीलदार को आदेशित किया था की सर्वे क्रमांक 487 एवं 488 का सीमांकन करने के बाद अनावेदक गणों द्वारा खसरा नंबर 487 एवं 488 के बाहर बेचे गए प्लाटो की भूमि को समाहित करते हुए कस्बा खाचरौद के 486/2 की बटांक तहसील न्यायालय में 15 दिवस में प्रस्तुत हो । लेकिन आदेश की भनक तत्कालीन तहसीलदार तक को नही लगी और साठगांठ से फिर एक बार वर्ष 2019 में भू माफिया ने सेटिंग जमाकर निर्माण शुरू किया जब प्रकरण में आवेदक अभय चोपड़ा ने तत्कालीन तहसीलदार सुनील जायसवाल के समक्ष उपस्थित होकर एसडीएम न्यायालय के पारित आदेश को प्रस्तुत किया तो पाया कि जिम्मेदारों द्वारा आदेश की अवहेलना करते हुए 486/2 की बटांक 487 एवं 488 के सीमांकन को किये बिना ही कमरे में बैठकर भू माफियाओं से साठगाँठ करके पक्ष में बना दी और भू माफिया को स्वामित्व घोषित किया 19 जुलाई वर्ष 2019 में जारी निर्माण पर तत्कालीन तहसीलदार ने स्थगन देते हुए निर्माण पर रोक लगाई थी।एवं तत्कालीन एसडीएम के पारित आदेश को अमल में लाने के लिये राजस्व निरीक्षक को लिखा था ।लेकिन ऐसा आज दिनांक तक नही हुआ जो एसडीएम के आदेश में पारित था लापरवाही के चलते भूमाफिया ने तहसीलदार के स्थगन को चुनोती देकर उच्च न्यायालय से स्थगन पर स्थगन ले लिया और स्थानीय राजस्व पक्ष रखने में असफल हुआ वर्तमान में उक्त प्रकरण स्थानीय तहसील न्यायालय के साथ उच्च न्यायालय में विचाराधीन हैं। तहसील की लापरवाही के चलते एसडीएम के पारित आदेश पर न तो 487 एवं 488 का सीमांकन किया गया न ही खसरा नंबर 487 एवं 488 के बाहर बेचे गए प्लाटो की भूमि को समाहित किया गया न ही कूटरचना करने वालो पर कोई कार्रवाई की गई न ही बिना अनुमति के कालोनी काटने वाले कालोनाइजर पर नपा को एफआईआर हेतु लिखा गया। इस प्रकार से शासकीय भूमियों के हेरफेर के प्रकरण चर्चा का विषय बने हुए । जिससे स्पष्ट अंदाजा लगाया जा सकता हैं कि अंचल में भू माफियाओ की पकड़ प्रशासन पर कितनी मजबूत है कितनी सरकारी जमीनों पर आज भी कब्जा हैं लेकिन राजस्व विभाग की ढील पोल से भू माफिया करोड़ो में खेल रहे हैं।

इस मामले में जारी निर्माण के संबंध में तहसीलदार मधु नायक ने बताया कि निर्माण को रोकने के निर्देश आर आई को दिये हैं प्रतिवेदन प्राप्त होने के बाद कार्रवाई की जायेगी। कस्बा पटवारी राजकुमार आर आई डोडियार ने बताया कि तहसीलदार महोदय के निर्देश पर मौके पर पहुँचकर पाया कि निर्माण जारी हैं प्रतिवेदन तहसीलदार महोदय को प्रस्तुत किया है। अधिकारी से प्राप्त दिशा निर्देश पर आगामी कार्रवाई की जायेगी।

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