ग्वालियर, मध्यप्रदेश। ग्वालियर में महापौर पद भले ही कांग्रेस ने जीत लिया हो, लेकिन पार्षदों की संख्या बल के हिसाब से बहुमत भाजपा के पास है। ऐसे में सभापति बनाने के लिए अब अपने दल के पार्षदों की बाड़ाबंदी भाजपा कर सकती है, क्योंकि उसको इस बात का डर सता रहा है कि कहीं उसके पार्षद खिसककर दूसरे खैमे में न चले जाएं। वैसे भाजपा नेता यह दावा कर रहे है कि परिषद में बहुमत भाजपा का है और सभापति भी हम ही बनाएंगे, लेकिन दूसरी तरफ विधायक सतीश सिकरवार है जो भाजपा के हर दांव को समझते है जिसके कारण दावा किसका कितना मजबूत है इसका खुलासा सभापति चुनाव के समय ही हो सकेगा।
महापौर पद पर कांग्रेस ने 57 साल बाद भाजपा के किले को भेदकर अपना कब्जा जमाया है, ऐसे में कांग्रेस इस जीत का जश्न मना रही है और साथ ही सभापति के लिए भी रणनीति बनाने मेंं लगी हुई है। ग्वालियर नगर निगम में 66 पार्षद है जिसमें से बहुमत के लिए 34 पार्षद की जरूरत होती है और यह आंकड़ा फिलहाल भाजपा के पास है, क्योंकि उसके 34 पार्षद चुनकर आएं है। जबकि कांग्रेस के ख्राते में 25 पार्षद चुनकर आए थे और उन्होंने बाद में 3 निर्दलीय पार्षदों को कांग्रेस में शामिल कर यह संख्या 28 तक पहुंचा दी है। ऐसे में अभी एक बसपा का जबकि 3 निर्दलीय पार्षद और बचते है जो किस दल के साथ जाएंगे फिलहाल स्पष्ट नहीं हो सका है। लेकिन अगर कांग्रेस निर्दलीय व बसपा के एक पार्षद को अपने पाले में करने में सफल होती है तो वह संख्या बल के हिसाब से 32 तक पहुंच सकती है, ऐसे में कांग्रेस को सिर्फ एक पार्षद ही भाजपा से अपनी तरफ खींचने की जरूरत पड़ेगी। ऐसे में चिंता भाजपा का सता रही है, क्योंकि उसमें से कुछ पार्षद पाला बदल सकते है, इसकी संभावना दिख रही है। भाजपा इसको लेकर अब सजग हो गई है और अपने पार्षदों को एकजुट रखने का प्रयास भी शुरू कर दिया गया है। यही कारण है कि ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर साफ कह चुके है कि महापौर भले ही कांग्रेस का जीत गया, लेकिन परिषद में सभापति भाजपा ही बनाएंगी। ऊर्जा मंत्री का यह कहना कई मायने निकालता है, क्योंकि उनके भाई पूर्व नेता प्रतिपक्ष देवेन्द्र तोमर निगम की रणनीति बनाने में महारथी है जिसके कारण उनकी रणनीति के हिसाब से अगर भाजपा चली तो सफलता मिल सकती है।
कहीं गुटबाजी के पेंच में फेल न हो जाएं भाजपा की रणनीति :
भाजपा के अंदर सभापति के लिए कई दावेदार है जिसके कारण पेंच फंस सकता है। कांग्रेस इसी मौके की तलाश में रहेगी। सूत्र का कहना है कि भाजपा के अंदर सिंधिया समर्थक भी जीतकर आएं है ऐसे में उनमें से किसी एक नाम को सभापति के लिए आगे किया जा सकता है। अगर ऐसा हुआ तो मूल भाजपाई जो सभापति के लिए प्रबल दावेदार है वह नाराज हो सकते है। इस बात से भाजपा नेता अंजान नहीं है यही कारण है कि उनके सामने अपने पार्षदों को एकजुट रखने की खासी चुनौती है, क्योंकि भाजपा नेताओ को भी पता है कि सामने कांग्रेस विधायक सतीश सिकरवार है जो हर भाजपा की हर रणनीति को समझते है। अगर निर्दलीय व बसपा के एक पार्षद का कांग्रेस को साथ मिल गया तो उनकी संख्या 32 तक पहुंच जाएगी, ऐसे में भाजपा का एक पार्षद को तोड़़ना सतीश सिकरवार के लिए आसान काम होगा और महापौर के वोट मिलने से कांग्रेस का सभापति आसानी से बन सके गा। खैर यह रणनीति संख्या बल के हिसाब से है, यही कारण है कि भाजपा अपने पार्षदों की बाडाबंदी कर सकती है ताकि तोड़फोड़ की कोई संभावना न हो सके।
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