भोपाल की खुबसूरती पर फिदा हो गए थे ट्रैजडी किंग दिलीप कुमार

भोपाल, मध्यप्रदेश : दिलीप साहब ने वहां से जब भोपाल की खुबसूरती का नजारा देखा तो वे भी भोपाल के मुरीद हो गए। फिर वे अपनी मर्जी से तीन दिन भोपाल में रूके। उसके बाद भी वे कई दफा भोपाल आए।
भोपाल की खुबसूरती पर फिदा हो गए थे ट्रैजडी किंग दिलीप कुमार
भोपाल की खुबसूरती पर फिदा हो गए थे ट्रैजडी किंग दिलीप कुमारSocial Media

भोपाल, मध्यप्रदेश। दिलीप साहब को नवाबों का शहर भी गया था इसलिए वे सिर्फ एक दिन के लिए भोपाल आए थे लेकिन भोपाल को देखकर उनका मन बदल और वे तीन दिन तक यहीं रूके। बात 1975-76 के आसपास की है जब दिलीप साहब, गुफरान आजम के कहने पर संजय गांधी क्रिकेट टूर्नामेंट के परुस्कार वितरण कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए सायरा बानो के साथ एक दिन के लिए आए थे। उनके रूकने का इंतजाम यूनियन कार्बइड के आलीशान गेस्ट हाऊस में किया गया था। दिलीप साहब ने वहां से जब भोपाल की खुबसूरती का नजारा देखा तो वे भी भोपाल के मुरीद हो गए। फिर वे अपनी मर्जी से तीन दिन भोपाल में रूके। उसके बाद भी वे कई दफा भोपाल आए। वे सुरेश पचौरी के चुनाव प्रचार के लिए शहर आए और उस दौरान मुझे उस अजीम कलाकार से रूबरू होने का मौका मिला। मैं उनकी फिल्मों और अदाकारी का कायल था राजएक्सप्रेस से यह वाक्या इफ्तिखार क्रिकेट एकेडमी के संचालक, वरिष्ठ थियेटर कलाकार हमीद उल्लाह खां साहब ने सांझा की।

भारत रत्न के हकदार हैं दिलीप कुमार : हमीद साहब

हमीद साहब ने बताया कि दीलिप साहब हरफनमौला शख्सियत के मालिक थे। वे गजब के वक्ता थे, एक्टिंग से हटकर भी उन्हें शेरों-शायरी का बहुत शौक था, अंग्रेजी, उर्दू सहित कई भाषाओं पर उनकी गहरी पकड़ थी। थियेटर का उन्हें वे सच्चे देश-भक्त थे। भारत के पक्ष में वे हमेशा ही बोलते थे और कहते थे मेरा सब कुछ यही है और यहीं पर है। मेरा मानना है कि ऐसे अजीम शख्स को भारत रत्न से नवाजा जाना चाहिए। यंग थियेटर ग्रुप के सरफराज हसन का कहना है कि उनके निधन से एक युग का अंत नहीं बल्कि उदय हुआ है। वे सूरज की तरह हमेशा हम सबके साथ रहेंगे क्योंकि वे अपने आप में अभिनय की पाठशाला थे और हर युग में उनकी अदाकारी जिंदा रहेगी। आने वाली पीढ़ियां भी इस हरफनमौला शख्सियत के मालिक की अदाकारी देखकर सीखेगी।

नवाब घराने से पारिवारिक रिश्ते : आलोक चटर्जी

मध्य प्रदेश स्कूल ऑफ ड्रामा के डायरेक्टर आलोक चटर्जी बताते हैं कि बॉलीवुड ने एक ऐसा शख्स खो दिया, जो रील ही नहीं रीयल में भी हीरो था। बॉलीवुड के ट्रैजडी किंग कहे जाने वाले हर दिल अजीज कलाकार, उम्दा इंसान के निधन की खबर सुनकर भोपाल के थियेटर कलाकारों का गहरा आघात पहुंचा है। दिलीप कुमार के नवाब घराने से पारिवारिक रिश्ते थे। नया दौर के तांगे एवं मोटर गाड़ी की रेस वाला सीन और मांग के साथ तुम्हारा गाना भी बुधनी के जंगल में ही फिल्माया गया था। मांडू, इंदौर में भी उन्होंने फिल्मों की शूटिंग की है। उस दौरान उनका भोपाल आना भी होता था। दिलीप साहब नया दौर, आन फिल्म के समय वे भोपाल नवाब हमीदुल्लाह साहब के साथ शिकार करने जाते थे।

उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व को देख मैं उनका मुरीद हो गया : संदीप गुप्ता, प्रिंसिपल, लीटिल एंजल्स स्कूल

1999 की बात है जब मुझे अपने स्कूल के कुछ बच्चों के साथ दिलीप साहब से मिलने का मौका मिला था। उनका व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली है कि उनसे मुलाकात का वो पल आज भी मेरे जहन में ताजा है। वे बहुत ही सरल, सहज और सौम्य स्वभाव के धनी थे। बच्चों को सहज महसूस कराने के लिए वे एक हेल्दी बच्ची से बोले कि कुछ खाती-पीती क्यों नहीं हो। सुबह का वक्त था, वे होटल नूर-उस-सबा से बड़े तालाब का नजारा देखकर बोले कि मैंने जितना सुना था भोपाल उससे कहीं ज्यादा खूबसूरत है। दिलीप साहब ने कहा कि मैं तो भोपाल का कायल हो गया हूं। मैं सदी के महानायक दिलीप साहब को पसंद करता था लेकिन उस मुलाकात के बाद मैं उनका मुरीद हो गया।

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