ग्वालियर : एक ही गुरू के दो चेले चुनावी मैदान मेंं आमने-सामने
हाइलाइट्स :
कहा गया था कि एक को चुनोगे तो दो विधायक मिलेगें
अब एक गुरू को छोड़ कांग्रेस से मैदान में आएं
ग्वालियर, मध्य प्रदेश। राजनीति में कब क्या हो जाएं और कब किस दल में चला जाएं कहना संभव नहीं है। इसका उदाहरण प्रदेश में देखने को मिल चुका है, क्योंकि जो लोग भाजपा नेताओं को भला-बुरा सालों से कहते आ रहे थे वहीं अब भाजपा नेताओं का गुणगान करने लगे हैं। जिले की ग्वालियर विधानसभा में इस बार एक ही गुरू के दो चेले आमने-सामने चुनावी मैदान में आ गए है जिससे मुकाबला रौचक होने की संभावना है। जो चुनावी मैदान में है उनके एक ही गुरू थे ज्योतिरादित्य सिंधिया, लेकिन अब एक चेले ने अपने गुरू का साथ इसलिए छोड़ दिया कि उनको अब लगने लगा था कि वह दूसरे नंबर पर है जिसके कारण आगे का रास्ता उनका राजनीति का बंद माना जा रहा था।
जिले की ग्वालियर विधानसभा क्षेत्र में कुल 2 लाख 88 हजार 674 मतदाता हैं। इसमें 1 लाख 54 हजार 912 पुरूष, 1 लाख 33 हजार 746 महिला एवं 16 अन्य मतदाता है। इस विधानसभा से वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से लड़ने वाले प्रद्युम्न सिंह तोमर ने भाजपा के जयभान सिंह पवैया का करीब 22 हजार वोटों से हराया था। उस समय टिकट की दौड़ में सिंधिया के चेले सुनील शर्मा ने भी दम मारी थी, लेकिन नंबर प्रद्युम्न का लग गया था। इससे सुनील नाराज भी हो गए थे, लेकिन पवैया को लेकर जिस तरह से सिंधिया नाराज था उसको लेकर सिंधिया ने चुनावी समय में प्रद्युम्न एवं सुनील को साथ लेकर प्रचार किया था और सभाओं में कहा था कि आपने अगर प्रद्युम्न सिंह को चुना तो क्षेत्र को एक नहीं बल्कि दो विधायक मिलेंगे और वह दूसरा विधायक सुनील शर्मा होगें। सिंधिया के इस भरोसे के कारण चुनाव के समय सुनील ने उस समय प्रद्युम्न के लिए मेहनत की थी, लेकिन चुनाव बाद करीब 15 माह की कांग्रेस सरकार में सुनील को कुछ नहीं मिला तो उनकी पीड़ा सामने आने लगी थी।
अब एक ही मुद्दे उठाने वाले आमने-सामने :
प्रदेश मेें भाजपा के 15 साल के शासनकाल के दौरान कांग्रेस नेता सुनील शर्मा एवं प्रद्युम्न सिंह ने क्षेत्र की समस्याओ को लेकर जमकर संघर्ष किया था और धरना-आंदोलन उनकी नियती बन गया था। सुनील को लगा था कि इस बार शायद सिंधिया उनको चुनावी मैदान में उतार सकते हैं, क्योंकि पिछले दो बार से प्रद्युम्न को ही टिकट दिया जा रहा था। लेकिन जब टिकट बांटने का समय आया था तो सिंधिया ने पहली वरीयता प्रद्युम्न को दी थी जिससे सुनील नाराज भी हो गए थे। कांग्रेस छोड़ने के बाद सिंधिया के साथ उनके समर्थक भाजपा में चले गए, लेकिन सुनील ने सिंधिया के साथ जाना उचित नहीं समझा, क्योंकि उनकी समझ में आ चुका था कि सिंधिया के साथ दूसरे दल में जाने से भी उनको कुछ मिलने वाला नहीं है। कांग्रेस में रहे तो टिकट मिला और अपने ही गुरू भाई के सामने मैदान में आकर शब्दवाणों से हमला कर रहे हैं।
सिंधिया के लिए अहम है प्रद्युम्न की सीट :
ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए वैसे तो उप चुनाव ही काफी महत्वपूर्ण है और उनको अपने समर्थकों को जिताने की खासी चुनौती है। प्रद्युम्न सिंह एवं इमरती देवी सबसे खास माने जाते है इसलिए सिंधिया का दोनो ही सीटों पर खासा जोर रह सकता है। वहीं सुनील के लिए कमलनाथ एंड कंपनी ने भी पूरा जोर लगाना शुरू कर दिया है। कमलनाथ के निशाने पर सिंधिया समर्थक प्रत्याशी तो है ही लेकिन सबसे अधिक नजर सिंधिया समर्थक मंत्रियों पर रहेगी। अब देखता होगा कि गुरू के दोनो चेलो में से कौन सा इस बार भारी पड़ता है, क्योंकि सुनील ने बिकाऊ नहीं टिकाऊ का मुद्दा उलझा दिया है तो ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह क्षेत्र के विकास को लेकर जनता के बीच जा रहे हैं।
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