शहडोल, मध्य प्रदेश। जिले की सड़कों सहित ग्रामीण क्षेत्रों में चल रही बसों की हालत ज्यादातर खराब रहती है। बसों की फिटनेस देखते हुए यह अंदाजा लगाया जा सकता हैं कि इन बसों का परमिट और बीमा शायद ही हो। इसी के चलते शहडोल, कोतमा, अनूपपुर, जनकपुर एवं बुढ़ार रूट पर चल रही ये कंडम बसें किसी को भी अपना शिकार बना सकती हैं और तो और बसों की खिड़कियां खस्ताहाल हो चुकी हैं। इन बसों में क्षमता से अधिक सवारियों को बैठाया जा रहा है, जिसके कारण कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है।
दुर्घटना का बना रहता है अंदेशा :
सीधी बस हादसे के बाद कलेक्टर की पहल के कारण परिवहन अधिकारी की निद्रा टूटी थी, लेकिन मुखिया के जाने के बाद कितनी कार्यवाही हुई, यह अब किसी से छुपी नहीं है, सूत्रों की मानें तो कई बसें बिना फिटनेस के सड़कों पर दौड़ लगा रही, बसों पर परिवहन विभाग के अधिकारियों द्वारा कोई कार्रवाई न किए जाने से इनके हौसले बुलंद हैं। आरोप है कि परिवहन अधिकारी द्वारा 10-10 मिनट के अंतर में बसों का परमिट जारी किया जा रहा है, जिससे बस मालिकों में कंपटीशन बना रहता है, जिससे आये दिन दुर्घटना का अंदेशा बना रहता है।
जर्जर हालत की दौड़ रही बसें :
परिवहन विभाग के अधिकारी किसी भी बस को परमिट तभी देते हैं जब उसके अंदर परिवहन विभाग से संबंधित जारी निर्देर्शो को बस संचालक पूरा करें, लेकिन परिवहन विभाग के सौजन्य के चलते अनफिट बसें सड़कों पर सरपट दौड़ लगा रहे। वाहन कब और किस समय लोगों की जिंदगी के लिए काल बनकर सामने आए जाए यह तो पता नहीं। क्योंकि दुर्घटना के बाद ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिससे यह साबित हो रहा है कि जिले की सड़कों पर कुछ गाडिय़ां बगैर फिटनेस प्रमाण पत्र के दौड़ लगा रही है तो, कुछ गाड़ी को पुरानी और जर्जर हालत में भी विभाग की ओर से प्रमाण पत्र दे दिया जाता है।
तमाशबीन है विभाग :
दरअसल, सड़क पर चल रहे वाहनों को फिटनेस देने का काम परिवहन विभाग का है। विभाग के अफसर न तो सड़क पर दौड़ लगा रही गाडिय़ों की जांच करते हैं और न ही जर्जर पुराने वाहनों को फिटनेस का सर्टिफिकेट देने में सख्ती बरतता है। न जाने क्यों विभाग इन वाहनों पर कार्यवाही की बजाए आंख मूंदकर तमाशबीन बना रहता है। नगर में जहां ये बसें सवारियों का परिवहन करती हैं। वहीं दूसरी ओर ये बसें ट्रांसपोटर्स की भी पूर्ति करती हैं।
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