अच्छी बारिश के लिए बादलों पर टिकी निगाहें, मानसून को मनाने टोने-टोटकों का उपाय

भोपाल, मध्यप्रदेश : मौसम विज्ञानियों का कहना है कि अभी भी जुलाई का आधा माह शेष है। एक बार दमदार सिस्टम बनने पर अभी भी वर्षा का कोटा पूरा हो सकता है।
अच्छी बारिश के लिए बादलों पर टिकी निगाहें
अच्छी बारिश के लिए बादलों पर टिकी निगाहेंसांकेतिक चित्र

भोपाल, मध्यप्रदेश। मानसून सीजन में जुलाई और अगस्त माह सर्वाधिक वर्षा के लिए जाने जाते हैं लेकिन इस साल जुलाई का आधा माह बीत चुका है, लेकिन झमाझम बारिश का कोई ठिकाना नहीं है। दिन में बादलों की आवाजाही देख लोगों की उम्मीद भी बंधती है लेकिन बादल भी झलक दिखाकर चले जाते हैं। ऐसे में अच्छी बारिश तो क्या, लोग बारिश के लिए भी उम्मीद बांधे आसमान को ताक रहे हैं। मौसम विभाग द्वारा समय-समय पर जारी अनुमान भी फेल हो गए हैं। राजधानी में भीषण गर्मी और उमस ने बेचैनी बढ़ा दी है। हालांकि मौसम विभाग के अनुसार 19 जुलाई से मौसम के मिजाज में कुछ बदलाव होने की संभावना है। इसके तहत सोमवार से राजधानी सहित प्रदेश में बौछारें पडऩे का सिलसिला शुरू हो सकता है।

शेष दिनों में हो सकता है वर्षा का कोटा पूरा :

मौसम विज्ञानी पीके साहा ने बताया कि जुलाई के पहले 15 दिनों में अपेक्षित बरसात नहीं हुई है। मानसून के प्रभावी होने के बाद बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में एक भी मजबूत वेदर सिस्टम नहीं बना है जिससे प्रदेश में मानसून को पर्याप्त ऊर्जा मिल सके। इस वजह से बरसात का क्रम लगभग थमा सा रहा। साहा ने बताया कि कुछ वेदर सिस्टम सक्रिय होने से प्रदेश में कहीं-कहीं बारिश हुई है, हालांकि भोपाल में इन सिस्टम का असर नहीं देखा गया।

वातावरण में नमी कम रहने से धूप की तीव्रता भी अधिक है। यही वजह है कि गर्मी के साथ उमस से लोग बेहाल हैं। मौसम विज्ञानियों का कहना है कि अभी भी जुलाई का आधा माह शेष है। एक बार दमदार सिस्टम बनने पर अभी भी वर्षा का कोटा पूरा हो सकता है।

बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से नहीं मिल रही नमी :

वर्तमान में बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में काई वेदर सिस्टम मौजूद नहीं है। मानसून ट्रफ सूरत से रतलाम, सागर होता हुआ नागालैंड तक मौजूद है। इसका पूर्वी छोर बंगाल की खाड़ी तक नहीं पहुंचा है इसलिए वहां से नमी नहीं मिल रही है। अरब सागर से नमी आने का सिलसिला भी थम चुका है। यही वजह है कि फिलहाल झमाझम बारिश के आसार नहीं है। दो दिन बाद मानसून की गतिविधियों में वृद्धि होने के आसार हैं।

झमाझम के बाद बड़ा तालाब हो जाएगा लबालब :

बड़े तालाब का कैचमेंट एरिया 365 वर्ग किमी है। इसमें से 225 वर्ग किमी कोलांस नदी से भरता है। इसलिए जब भी सीहोर जिले में अच्छी बारिश होती है तो कोलांस नदी में पानी आता है, जो बड़े तालाब में पहुंचता है। जुलाई में तेज बारिश नहीं होने के कारण कोलांस नदी में पानी नहीं आया। बड़े तालाब का जल स्तर 1666.80 फीट होना चाहिए। 25 जून की स्थिति में तालाब में वॉटर लेवल 1660.30 फीट है। विभाग व मौसम विज्ञानियों के अनुसार मानसून की गतिविधियों में वृद्धि होने की संंभावना बन रही है।

अनूठी प्रथाएं प्रचलित :

रूठे मानसून को मनाने के लिए अब लोग पूजा-पाठ के अलावा टोने-टोटकों का सहारा ले रहे हैं। पुजारियों का कहना है कि प्राचीन काल से ही सही समय पर अच्छी बारिश के लिए देवी-देवताओं की पूजा करने की परंपरा रही है। इसके लिए तरह-तरह के प्रसाद चढ़ाए जाते थे, वाद्य यंत्र बजाए जाते थे और भगवान को प्रसन्न करने के लिए गीत गाए जाते थे। आज भी देश के विभिन्न भागों में मानसून के संबंध में कई अनूठी प्रथाएं प्रचलित हैं। झारखंड के सरायकेला में जमीन में गमले गाड़कर बारिश की भविष्यवाणी हो या फिर तेलंगाना में गांवों को छोड़कर जंगल में दिन गुजारने की बात। कर्नाटक में कांटों से हवा में लटकने की प्रथा हो या छत्तीसगढ़ में तुम्बा खेलकर कीचड़ में स्नान कर वर्षा का आह्वान करने की प्रथा। ऐसी ही एक अनूठी प्रथा है मेंढक और मेंढकी का विवाह। असम, राजस्थान, मध्यप्रदेश, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ जैसे कई राज्यों में बारिश के अभाव में मेंढक-मेंढकी की शादी कराने की परंपरा रही है। छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में मेंढक-मेंढकी की शादी की रस्म उत्सव के साथ मनाई जाती है। मान्यता है कि ब्याह से उल्लसित मेंढक टर्रायेंगे और उनकी इस टेर पर बादल निश्चित ही आयेंगे।

पारा सामान्य से तीन डिग्री अधिक :

राजधानी में दिन और रात का तापामान सामान्य से अधिक होने के कारण गर्मी चुभ रही है। शुक्रवार को अधिकतम तापमान 33.7 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। यह सामान्य से तीन डिग्री अधिक रहा। न्यूनतम पारा भी सामान्य से तीन डिग्री अधिक 26.9 डिग्री रिकार्ड किया गया। दिन के साथ ही रात का पारा भी अधिक होने के कारण रात को भी गर्मी से राहत नहीं है।

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