चन्द्रशेखर आज़ाद रिहा, सीएए के खिलाफ आज जाएंगे चारों धार्मिक स्थल

भीम आर्मी प्रमुख चन्द्रशेखर आज़ाद को गुरूवार रात जमानत मिल गई। जेल से निकलकर उन्होंने कहा, सीएए के विरोध में आज जाएंगे मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारे और चर्च।
जामा मस्जिद में प्रदर्शन के दौरान चन्द्रशेखर आज़ाद
जामा मस्जिद में प्रदर्शन के दौरान चन्द्रशेखर आज़ाद सोशल मीडिया

राज एक्सप्रेस। भीम आर्मी के प्रमुख चन्द्रशेखर आज़ाद गुरूवार रात तिहाड़ जेल से जमानत पर रिहा हो गए। उन्हें 19-20 दिसंबर 2019 को पुरानी दिल्ली में जामा मस्जिद पर नागरिकता संशोधन कानून के विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के दौरान गिरफ्तार किया गया था। जेल से बाहर आने पर समर्थकों ने माला पहनाकर और जुलूस निकालकर उनका स्वागत किया। उन्हें दिल्ली की तीस हज़ारी अदालत से सशर्त जमानत मिली है। जेल से बाहर आकर आज़ाद ने कहा, 'हमारा आंदोलन संवैधानिक रूप से जारी रहेगा, जब तक कि ये कानून (CAA) वापस नहीं लिया जाता। जो लोग मुल्क को बांटना चाहते हैं, हम उनके खिलाफ हैं।'

अदालत ने जमानत देते हुए उन्हें 16 फरवरी तक दिल्ली में किसी भी तरह का विरोध-प्रदर्शन न करने का आदेश दिया है। साथ ही अगले 4 सप्ताह तक उन्हें दिल्ली में रहने की मनाही है। इसका कारण दिल्ली में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों को बताया गया। इसके अलावा जब तक मामले में चार्ज़शीट दायर नहीं होती चन्द्रशेखर को हर शनिवार उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में एसएचओ के सामने हाजिरी देने का हुक्म दिया गया है।

चन्द्रशेखर आज़ाद ने जमानत मिलने के बाद ट्वीट कर कहा, 'मैं वापिस आ गया हूँ आपका प्यार साथ है तो किसी जेल की परवाह नहीं। बाबा साहब के संविधान को हम सब मिलकर बचाएंगे, किसी को डरने की जरूरत नहीं है। जब तक मैं जिंदा हूं तब तक कोई संविधान विरोधी कानून लागू नहीं होगा। जय भीम, जय संविधान, जय भारत।'

अदालत ने बुधवार को रवीन्द्रनाथ टैगोर की प्रसिद्ध कविता "व्हेयर द माइंड इज विदाउट फियर'' का पाठ करते हुए भीम आर्मी के प्रमुख को जमानत दी। अदालत ने कहा कि, शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन करना नागरिकों का मौलिक अधिकार है, जिसमें सरकार कटौती नहीं कर सकती है। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश कामिनी लाउ ने कहा कि, '1900 की शुरुआत में जब अंग्रेज फूट डालो, राज करो की नीति अपना रहे थे तब टैगोर ने ऐसे राष्ट्र की कल्पना की थी जहां लोगों के मन में कोई डर न हो, सभी को शिक्षा मिले और भेदभाव की दीवारें ना बनायी जाएं।'

इससे पहले मंगलवार को अदालत ने चन्द्रशेखर आज़ाद के खिलाफ सबूत पेश नहीं कर पाने पर दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई थी। अदालत ने सवाल किए कि, 'दिल्ली पुलिस कोई ऐसा कानून बताए, जो इस प्रकार इकट्ठा होने पर रोक लगाता हो। इस मामले में हिंसा कहां है? कौन कहता है कि लोग प्रदर्शन नहीं कर सकते हैं? क्या आपने संविधान पढ़ा भी है? हर नागरिक का यह संवैधानिक अधिकार है कि सहमत न होने पर वह विरोध प्रदर्शन करे।'

जमानत पर रिहा होने के बाद चन्द्रशेखर आज़ाद ने कहा कि, ''मैं अदालत से रियायत की मांग करूंगा, प्रदर्शन करना मेरा संवैधानिक अधिकार है। पुलिस और सरकार संवैधानिक विरोध को दबा रही है। पुलिस और सरकार हमारे अधिकार छीन रही है। उम्मीद है माननीय न्यायालय हमें न्याय देगी।''

''धर्म के आधार पर जो बंटवारा चल रहा है, उससे दलित, पिछड़ों को सबसे ज़्यादा नुकसान होगा। सरकार झूठ न बोले कि सिर्फ़ मुसलमान विरोध कर रहे हैं। हम संविधान के अनुसार काम कर रहे हैं और करते रहेंगे। मैंने जामा मस्ज़िद में जाकर कोई भाषण नहीं दिया। मैंने सिर्फ़ संविधान की प्रस्तावना पढ़ी। क्या संविधान की प्रस्तावना पढ़ना गुनाह है?''

चन्द्रशेखर आज़ाद, भीम आर्मी प्रमुख

उन्होंने यह भी कहा कि, शांतिपूर्ण विरोध करते हुए यह हमारा कर्तव्य है कि हम यह सुनिश्चित करें कि किसी दूसरे के अधिकार का हनन न हो और किसी को कोई असुविधा न हो। जमानत मिलने के अगले दिन शुक्रवार को चन्द्रशेखर रविदास मन्दिर पहुंचे। यहां उन्होंने कहा कि, "मैं यहां रविदास मन्दिर जाने आया हूं, फिर गुरुद्वारे जाऊंगा, फिर चर्च और उसके बाद 1 बजे जामा मस्जिद जाऊंगा। इसका मकसद सीएए और एनआरसी के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन है। साथ ही मैं लोगों को बताना चाहता हूं कि इस तरह के काले कानून हमारे ऊपर थोपे नहीं जा सकते।"

नागरिकता संशोधन अधिनियम 10 जनवरी 2020 से लागू हो गया है। केन्द्र सरकार ने अधिसूचना जारी कर इसकी जानकारी दी। इसे 11 दिसंबर 2019 को संसद में पास किया गया था। जिसके बाद से देश में इसे लेकर बवाल मचा हुआ है। असम और पूर्वोत्तर राज्यों में इसका विरोध हो रहा है। वहीं जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय आदि देश के तमाम शिक्षण संस्थानों में भी सीएए और एनआरसी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं।

इन प्रदर्शनों ने कई जगह हिंसक रूप ले लिया। जिसके चलते जामिया और अलीगढ़ विश्वविद्यालयों को बंद करना पड़ा। दिल्ली के शाहीन बाग में 15 दिसंबर से औरतें इस कानून और एनआरसी के विरोध में धरने पर बैठी हैं। वहीं मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के इक़बाल मैदान में 1 जनवरी 2020 से कई संस्थाओं के सदस्य और आम लोग सीएए और एनआरसी के खिलाफ सत्याग्रह कर रहे हैं।

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