छत्तीसगढ़ में पहली बार टाइगर पर लगा 8KG का रेडियो कॉलर
Radio Collar on Tiger: छत्तीसगढ़ में पहली बार किसी टाइगर पर रेडियो कॉलर का उपयोग किया गया हैं। ATR (Achanakmar Tiger Reserve) के जंगलों में विचरण कर रही बाघिन पर रेडियो कॉलर (Radio Collar) फिट किया गया हैं। जिससे उसकी गतिविधियों पर नजर रखी जा सके। निगरानी तंत्र स्थापित करने के लिए पन्ना टायगर रिजर्व (Panna Tiger Reserve) में प्रशिक्षित किया गया है। भारतीय वन्यजीव संस्थान (Wildlife Institute of India) के दो रिसर्च स्कॉलर एवं वन्यप्राणी चिकित्सकों की टीम (Team of Wildlife Doctors) भी विशेष रूप से तैनात की गई है।
रेडियो कॉलर क्या है?
एक रेडियो कॉलर एक छोटे रेडियो ट्रांसमीटर (radio transmitter) और बैटरी के साथ लगे मशीन-बेल्टिंग (machine-belting) का एक बड़ा बैंड (गले का पट्टा) है। ट्रांसमीटर एक विशिष्ट आवृत्ति (frequency) पर एक संकेत का उत्सर्जन करता है जिसे 5 किलोमीटर दूर से ट्रैक किया जा सकता है। इसका उपयोग तब किया जाता है जब किसी जानवर को इलाज के बाद जंगल में छोड़ा जाता हैं। जिस प्रकार हाल ही में ATR के जंगलों में बाघिन को छोड़ा गया हैं।
रेडियो कॉलर का वजह 8 कि.ग्रा. तक होता
रेडियो कॉलर एक जीपीएस-सक्षम (GPS) उपकरण है, जो जानवर के ठिकाने के बारे में जानकारी प्रसारित कर सकता है। इनका वजन लगभग 8 कि.ग्रा. तक होता है और ये जानवरों के गले में पट्टे में फिट किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त, टीम किसी भी विशेष समय में हाथी की गतिविधि जैसे दौड़ने, चलने, खाने, पीने आदि को समझने के लिए कॉलर में एक्सेलेरोमीटर (accelerometer) भी जोड़ सकती है। WWF (World Wildlife Fund) के अनुसार, कॉलरिंग प्रक्रिया में एक उपयुक्त उम्मीदवार (आमतौर पर एक वयस्क जानवर) की पहचान करना, उसे शामक (sedative) के प्रयोग से शांत करना और जानवर को पुनर्जीवित करने से पहले जानवर के गले में एक कॉलर फिट करना शामिल है।
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