आखिर कब तक सहती रहेंगी महिलाएं?

भारत ऐसा देश क्यों बनता जा रहा ? जहां महिला संबंधित अपराध आसमान छू रहे हैं। भारत के किसी भी कोने में महिलाएं क्यों सुरक्षित नहीं हैं ?
आखिर कब तक सहती रहेंगी महिलाएं?
आखिर कब तक सहती रहेंगी महिलाएं?Neha Shrivastava-RE

राज एक्सप्रेस: नारी को पूजने वाला देश भारत क्या सही मायनों में नारी को पूजने का हकदार है। एक तरफ जहां भारत में कई देवियों की पूजा की जाती है तो वहीं दूसरी तरफ उसी भारत में हर घंटे 4 से ज्यादा बेटी और महिलाएं बलात्कार का शिकार हो रही हैं। साल 2012 में हुए निर्भया रेप केस से लेकर 2017 उन्नाव रेप केस, 2018 कठुआ रेप केस, कटनी रेप केस और ना जाने कितने रेप के मामलों ने देश भर के लोगों के होश उड़ा दिए।

निर्भया कांड के बाद देश में रेप को लेकर कई सारे कानून सख्त कर दिए गए। लोगों में रेप के विरोध को लेकर काफी जागरुकता बढ़ी। निर्भया रेप से आक्रोशित होकर पूरा देश सड़क पर उतर आया था।

वहीं सरकार ने 12 से कम उम्र की बच्चियों से रेप पर फांसी का प्रावधान लागू कर दिया तो रेप में अव्वल रहे राज्य एमपी, यूपी, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली जैसे राज्यों में भी फांसी कानून सख्त कर दिए गए, परंतु हालात वैसे के वैसे ही रहे। देखा जाए तो महिलाओं एवं बच्चियों से रेप के मामलों की संख्या में किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं आई।

NCRB
NCRBNeha Shrivastava-RE

एनसीआरबी के मुताबिक साल 1971 से लेकर 2016 तक 6 लाख 34 हजार 123 बच्चियां एवं महिलाएं रेप का शिकार हो चुकी हैं। जहां साल 1971 में रेप के 2,487 मामले दर्ज हुए थे तो वहीं 2016 में यह आंकड़ा 38, 947 दर्ज हुआ। देश में हर रोज 106 रेप की घटनाएं हुईं, जिसमें हर 1 घंटे में 4 से ज्यादा बेटियां रेप का शिकार बनी हैं।

क्राइम रिकॉर्ड के आंकड़े यह भी बताते हैं कि बच्चियों के रेप के मामले साल 2012 से 2016 तक डबल हो गए हैं।

एनसीआरबी रिपोर्ट 2016

भारत में बलात्कार के मामले 2015 के मुकाबले 2016 में 12.4 % बढ़े। साल 2016 के एनसीआरबी आंकड़े देखें तो भारत में महिला अपराध की कुल संख्या 3,38,954 दर्ज की गयी है। जिनमें रेप के कुल 38,947 मामले दर्ज हुए हैं, जिसमें 2,171 मामले ऐसे हैं जो महिला गैंग रेप के हैं। साल 2016 में 6 से 18 साल की 16,863 बेटियां रेप का शिकार हुईं।

वहीं महिला के साथ हुए सेक्सुअल ह्रासमेंट के कुल 27,422 मामले दर्ज हैं। अन्य महिला अपराध जैसे दहेज प्रताड़ना के 7,628 मामले, आत्मदाह के कुल 4,485 मामले, एसिड अटैक के 225 मामले, पति द्वारा सतायी गयी महिला के कुल 1,10,434 मामले दर्ज हुए हैं। देश के हर दूसरे घर में पति और घरेलू झगड़े की वजह से महिलाओं की सबसे ज्यादा जान जा रही है। वहीं 2016 में महिला किडनैपिंग और फिरौती को लेकर 64,519 मामले दर्ज किए गए।

2016 में महिला अपराध में अव्वल था उत्तर प्रदेश

अगर हम राज्यों की बात करें तो एनसीआरबी 2016 के मुताबिक महिला के खिलाफ हुए अपराध में उत्तर प्रदेश सबसे आगे था। उत्तर प्रदेश में महिला अपराध के कुल आंकड़े 49,262 दर्ज हुए थे। वहीं रेप के आंकड़ो में भी उत्तर प्रदेश दूसरे नंबर पर था। 2016 में यूपी में रेप के 4,816 मामले दर्ज हुए, जिनमें गैंग रेप के 682 मामले और अन्य 4,129 मामले थे। 2015 में उत्तर प्रदेश में रेप के कुल 3,025 मामले दर्ज किए गए थे।

मध्य प्रदेश में रेप के शर्मनाक आंकड़े

एमपी कांग्रेस मीडिया विभाग अध्यक्ष शोभा ओझा ने आज तक के एक इंटरव्यू में कहा था कि, 'म.प्र में पिछले 15 सालों में 46 हजार रेप के मामले दर्ज किए गए हैं।' बीते सालों में मध्य प्रदेश रेप के मामलों में अव्वल राज्य रहा है। वहीं अगर हम आंकड़ों की बात करें तो एनसीआरबी के मुताबिक-

2014 में मध्य प्रदेश में बलात्कार के सबसे ज़्यादा मामले दर्ज हुए। आंकड़ों के मुताबिक मध्य प्रदेश में हर रोज़ 10 से ज्याद बलात्कार हुए और पूरे साल में 5,076 बलात्कार के मामले दर्ज हुए जिनमें से आधे नाबालिग लड़कियों के बलात्कार के मामले थे।

2015 में भारत में कुल रेप के 34,651 मामले दर्ज हुए हैं, जिनमें मध्य प्रदेश 4,391 दर्ज केसेस के साथ अव्वल था। इन मामलों में गैंग रेप के 270 मामले दर्ज हुए और अन्य 4,121 मामले रहे।

2016 में भारत में कुल 38,947 बलात्कार के मामले दर्ज हुए, जिसमें सबसे ज्यादा केस 4,882 मध्य प्रदेश में दर्ज हुए। जिसमें गैंग रेप के 226 व अन्य रेप के 4,656 मामले थे।

वहीं, दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश रहा, जहां 4,816 बलात्कार के मामले दर्ज हुए। महाराष्ट्र तीसरे नंबर पर रहा, जहां 4,189 बलात्कार के मामले दर्ज हुए हैं।

2017 में भी मध्य प्रदेश में रेप के सबसे ज्यादा मामले दर्ज हुए माने जा रहे हैं। जिसके बाद साल 2018 में उत्तर प्रदेश रेप के मामलों में अव्वल राज्य माना जा रहा है।

Rape in metros
Rape in metrosNeha Shrivastava-RE

राजधानी दिल्ली में रेप के आंकड़े

निर्भया कांड 2012 के बाद दिल्ली क्राईम कैपिटल के साथ-साथ रेप कैपिटल भी बन गया। वहीं दिल्ली पुलिस डेटा के मुताबिक राजधानी में बीते वर्ष (2018) में 2,043 मामले दर्ज हुए हैं जबकि 2017 में 2,059 रेप के मामले दर्ज हुए। साल 2016 में 1,996 मामले दर्ज हुए थे।

आखिर कब तक यूंही छिनता रहेगा महिलाओं का सुकून

भारत ऐसा देश क्यों है जहां महिला संबंधित अपराध आसमान छूता नजर आ रहा है। आज आप भारत के किसी भी कोने में चले जाएं महिलाओं की हालत बेहद ही निराशाजनक है। भारत के कई राज्य तो ऐसे हैं जहां हर रोज न जाने कितने रेप केसेस और महिलाओं पर हो रहे घरेलू अत्याचार जैसे मामले दर्ज होते हैं। वहीं इनमें से कई मामले तो ऐसे हैं जो पुलिस स्टेशन की मोटी-मोटी फाइलों में धूल चाटते रह जाते हैं, कुछ मामलों में ही महिलाओं को इंसाफ मिलता।जो मामले दर्ज होते हैं, वो भी हमारे न्यायिक व्यवस्था के कारण ज्यादा सफल नहीं हो पाते। कुछ समय सजा काटने के बाद अपराधी रिहा हो जाता है।

इसके अलावा उन मामलों का क्या जो दर्ज ही नहीं होते, आखिर इसके लिए कौन जिम्मेदार है? जहां एक तरफ हम नारी सशक्तिकरण की बात करते हैं, महिलाओं को हर क्षेत्र में आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं, वहीं नारी सशक्तिकरण किस हद तक आगे बढ़ रहा और अगर आगे बढ़ रहा है तो महिलाएं क्यों अपने उपर हो रहे जुल्म की दास्तां बयां ही नहीं कर पाती, इसके कारण तो कई हो सकते हैं, पर सवाल यह उठता है कि अगर देश में हर साल हो रहे रेप और महिला अपराध की सभी घटनाएं दर्ज होने लगे तो आंकड़ा कहां से कहां तक चला जाएगा? इसका कोई अनुमान नहीं लगा सकता।

जहां भारतीय संविधान हर किसी को एक जैसा अधिकार देता है तो वहीं भारतीय कानून क्यों उस अधिकार की रक्षा करने में पीछे रह जाता है? आखिर रेप के बढ़ते मामलों से जनता कितनी जागरुक हो रही है और वहीं प्रशासन कुंभकरणी नींद में सोया हुआ क्यों प्रतीत हो रहा है? इस तरह से लगातार हर साल रेप के मामलों में हो रहे इजाफे कहीं न कहीं सरकार-प्रशासन की नाकामी को दर्शाता है। खासकर मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्य ने तो सारे रिकॉर्ड पार किए हैं।

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