वोट के बदले नोट! Supreme Court ने पलटा फैसला, अब विशेषाधिकार के तहत नहीं मिलेगी MP - MLA को छूट

MP-MLA Will Not Get Exemption Against Bribery Case Under Privilege : सुप्रीम कोर्ट की सात जज बेंच ने अपने फैसले में कहा कि, पीवी नरसिम्हा मामले के फैसले के "व्यापक प्रभाव" होंगे।
MP-MLA Will Not Get Exemption Against Bribery Case Under Privilege
MP-MLA Will Not Get Exemption Against Bribery Case Under PrivilegeRaj Express

हाइलाइट्स :

  • सुप्रीम कोर्ट की सात - न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ का अहम निर्णय।

  • पिछले साल अक्टूबर में कोर्ट ने इस मामले पर सुरक्षित रखा था फैसला।

MP-MLA Will Not Get Exemption Against Bribery Case Under Privilege : नई दिल्ली। अब संसद या विधानसभा में सांसद और विधायक मतदान के लिए रिश्वतखोरी के मामले में मुकदमे से छूट नहीं पा सकेंगे। ऐसे मामलों में सांसदों या विधायकों का विशेषाधिकार भी काम नहीं आएगा। सुप्रीम कोर्ट की सात - न्यायाधीशों की पीठ ने सर्वसम्मति से विचार करके साल 1998 के पीवी नरसिम्हा मामले में दिए गए फैसले को पलट दिया है।

साल 1998 में पीवी नरसिम्हा राव के फैसले सुप्रीम कोर्ट की पांच जज बेंच द्वारा फैसला दिया गया था कि संसद और विधानसभाओं के सदस्य संविधान के अनुच्छेद 105(2) और 194(2) के तहत मुकदमे से छूट का दावा कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट की सात जज बेंच ने अपने फैसले में कहा कि, पीवी नरसिम्हा मामले के फैसले से विधायकों और सांसदों को वोट देने या भाषण देने के लिए कथित तौर पर रिश्वत लेने से छूट मिलती है, जिसके "व्यापक प्रभाव" होंगे और इसे खारिज कर दिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि, विधायकों द्वारा भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी भारतीय संसदीय लोकतंत्र की कार्यप्रणाली को नष्ट करती है।

इस सात जज बेंच में भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एएस बोपन्ना, एमएम सुंदरेश, पीएस नरसिम्हा, जेबी पारदीवाला, संजय कुमार और मनोज मिश्रा शामिल थे। बेंच ने सर्वसम्मत्ति से फैसला दिया है। सात जज संविधान पीठ ने माना कि, संसद या राज्य विधायिका का कोई सदस्य संविधान के अनुच्छेद 105(2) और 194(2) के आधार पर आपराधिक अदालत में रिश्वतखोरी के आरोप में अभियोजन से छूट का दावा नहीं कर सकता है।

अदालत ने फैसले में कहा कि, "हम इस पहलू पर बहुमत के फैसले से असहमत हैं और उसे खारिज करते हैं। हमने निष्कर्ष निकाला है कि सबसे पहले, Doctrine of Stare Decisis एक लचीला नियम नहीं है। इस अदालत की एक बड़ी पीठ उचित मामलों में पिछले फैसले पर पुनर्विचार कर सकती है। पीवी नरसिम्हा राव मामले में फैसला, जो विधायिका के एक सदस्य को अभियोजन से छूट देता है, जो कथित तौर पर वोट देने या भाषण देने के लिए रिश्वत लेने में शामिल है, का सार्वजनिक हित, ईमानदारी सार्वजनिक जीवन और संसदीय लोकतंत्र पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। यदि फैसले पर पुनर्विचार नहीं किया गया तो इस अदालत द्वारा त्रुटि को बरकरार रखने की अनुमति देने का गंभीर खतरा है।"

क्या था 1998 का पीवी नरसिम्हा फैसला :

1998 के मामले में, सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने 3:2 के बहुमत से कहा था कि, संसद और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों को संविधान के अनुच्छेद 105 (2) और 194(2) में दत्त संसदीय विशेषाधिकारों के तहत सदन में उनके भाषण या वोट से संबंधित रिश्वत के मामलों में अभियोजन से छूट दी गई थी, बशर्ते कि, वे उस सौदे के अंत को बरकरार रखें जिसके लिए उन्हें रिश्वत मिली थी। इस फैसले पर झारखंड मुक्ति मोर्चा की नेता सीता सोरेन की अपील में संदेह जताया गया था, जिन पर 2012 के राज्यसभा चुनाव के लिए रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया था। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 194(2) के तहत छूट का दावा किया, लेकिन झारखंड उच्च न्यायालय ने उनकी याचिका खारिज कर दी, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। दो दिन तक चली सुनवाई के बाद सात जजों की बेंच ने पिछले साल अक्टूबर में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

ताज़ा समाचार और रोचक जानकारियों के लिए आप हमारे राज एक्सप्रेस वाट्सऐप चैनल को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। वाट्सऐप पर Raj Express के नाम से सर्च कर, सब्स्क्राइब करें।

और खबरें

No stories found.
logo
Raj Express | Top Hindi News, Trending, Latest Viral News, Breaking News
www.rajexpress.com