दिल्ली सर्विस नियंत्रण मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
दिल्ली सर्विस नियंत्रण मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसलाKavita Singh Rathore - RE

दिल्ली सर्विस नियंत्रण मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, किसके हाथ आया कंट्रोल

साल 2014 में दिल्ली की APP पार्टी और केंद्र सरकार के बीच अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकरचल रहे विवाद पर आज अंतिम फैसला सामने आया है। यह मामला सुप्रीम कोर्ट में था।

दिल्ली, भारत। साल 2014 में दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार आने के बाद से अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच विवाद शुरू हो गया था। वहीँ, यह मामला काफी सालों से सुप्रीम कोर्ट में था। इस मामले पर आज आखिरी फैसला सामने आया। जिससे दिल्ली की केजरीवाल सरकार को बड़ी राहत मिली है क्योंकि, यह फैसला दिल्ली की आम आदमी पार्टी के पक्ष में आया है।

सुप्रीम कोर्ट ने दी दिल्ली सरकार को राहत :

दरअसल, आज गुरुवार को देश की राजधानी दिल्ली की केंद्र और राज्य सरकार के बीच साल 2014 से प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण को लेकर चल रहे मामले पर अंतिम फैसला सामने आचुका है। सुप्रीम कोर्ट ने आज अपना फैसला केजरीवाल सरकार के पक्ष में सुनाते हुए कंट्रोल दिल्ली सरकार के अफसरों को दे दिया है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने सुनवाई की। उन्होंने साफ़ करते हुए कहा, 'भूमि, लॉ ऐंड आर्डर और पब्लिक ऑर्डर को छोड़ अन्य सभी मामलों में प्रशासनिक अधिकारियों पर दिल्ली सरकार नियंत्रण रखेगी।

जजों की बेंच ने सुनाया फैसला :

मामले में हुई आखिरी सुनवाई चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच ने की। इस बेंच की सदस्यों में जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल हुए। बेंच ने यह फैसला केंद्र और दिल्ली सरकार की सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी की दलीलों को 5 दिन सुनने के बाद 18 जनवरी को अपना आदेश सुरक्षित रखने के आदेश जारी किए। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने फैसला सुनते हुए कहा कि,

'यह सर्वसम्मति से लिया गया निर्णय है। राज्यों के पास भी शक्ति है लेकिन राज्य की कार्यकारी शक्ति संघ के मौजूदा कानून के अधीन है। यह सुनिश्चित करना होगा कि राज्यों का शासन संघ द्वारा अपने हाथ में न ले लिया जाए। सर्वोच्च न्यायालय का मानना है कि यदि प्रशासनिक सेवाओं को विधायी और कार्यकारी डोमेन से बाहर रखा जाता है, तो मंत्रियों को उन सिविल सेवकों को नियंत्रित करने से बाहर रखा जाएगा जिन्हें कार्यकारी निर्णयों को लागू करना है।

डीवाई चंद्रचूड़, चीफ जस्टिस

सुप्रीम कोर्ट का कहना :

देश की सबसे बड़ी अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट का इस मामले को लेकर कहना है कि, 'निर्वाचित सरकार का प्रशासन पर नियंत्रण जरूरी है। सीजेआई ने कहा कि बेंच जस्टिस अशोक भूषण के 2019 के फैसले से सहमत नहीं है कि दिल्ली के पास सेवाओं पर कोई अधिकार नहीं है। दिल्ली सरकार की कार्यकारी शक्ति पब्लिक ऑर्डर, भूमि और पुलिस के तीन विषयों तक विस्तारित नहीं होगी, जिन पर केवल केंद्र के पास विशेष कानून बनाने की शक्ति है। हालांकि, आईएएस और दिल्ली में तैनात जॉइंट कैडर के अधिकारियों पर दिल्ली सरकार का नियंत्रण होगा। एलजी उन सभी मामलों के संबंध में दिल्ली सरकार की सहायता और सलाह पर काम करने के लिए बाध्य होंगे जिन पर दिल्ली सरकार को कानून बनाने का अधिकार है। उपराज्यपाल सेवा के मामलों में दिल्ली सरकार की सहायता और सलाह से बंधे रहेंगे।'

क्या था मामला ?

यह मामला 2014 में शुरू हुआ था। जोकि, आम आदमी पार्टी और केंद्र की BJP सरकार के बीच अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर शुरू हुआ था। इस मामले पर 14 फरवरी 2019 को दो जजों की बेंच ने फैसला लिया था। हालांकि, दोनों ही फैसले अलग-अलग थे। एक का कहना था नियंत्रण दिल्ली सरकार को दिया जाये तोदूसरे का कहना अलग था। इसके बाद यह मामला तीन जजों की पीठ के पास चला गया। फिर केंद्र सरकार की अपील पर यह मामला मई 2021 में संवैधानिक पीठ को दे दिया गया। जिसपर आज अंतिम फैसला आया है।

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