राष्ट्रपति ने वार्षिक दीक्षांत समारोह को संबोधित किया
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गुरुदेव रचनात्मकता, व्यक्तित्व को बढ़ावा देने वाली शिक्षा चाहते थे : राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू

राष्ट्रपति ने कहा कि इसमें सभी के लिए, खासकर युवा छात्रों के लिए एक संदेश है। गुरुदेव जैसे अग्रदूत बड़े उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आराम को छोड़कर कठिनाइयों का चयन करते हैं।

शांतिनिकेतन, बंगाल। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंगलवार को कहा कि गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर ऐसी शिक्षा चाहते थे, जो रचनात्मकता और व्यक्तित्व को बढ़ावा दे, न कि रूढ़िवादिता और करियर की लालसा को बढ़ावा देने वाला हो।

विश्व भारती के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए, श्रीमती मुर्मू ने कहा कि गुरुदेव टैगोर 20वीं सदी की शुरुआत में पूर्वी गोलार्द्ध के सबसे महत्वपूर्ण शहर का आराम छोड़कर शांतिनिकेतन पहुंचे थे, जो उन दिनों एक दूरस्थ क्षेत्र हुआ करता था।

उन्होंने कहा कि उन्हें (श्रीमती यह जानकर प्रसन्नता व्यक्त किया कि विश्व भारती गुरुदेव की शिक्षा दर्शन का पालन कर रहा है और इसने कई प्रसिद्ध कलाकारों और रचनात्मक व्यक्तित्वों का निर्माण किया है।

राष्ट्रपति ने कहा कि इसमें सभी के लिए, खासकर युवा छात्रों के लिए एक संदेश है। गुरुदेव जैसे अग्रदूत बड़े उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आराम को छोड़कर कठिनाइयों का चयन करते हैं।

उन्होंने कहा कि विश्व भारती के युवा छात्रों को गुरुदेव के जीवन से प्राप्त इस शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, क्योंकि बदलाव लाने के लिए अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकलना पड़ता है।

उन्होंने कहा कि गुरुदेव का यह विश्वास कि प्रकृति सबसे अच्छा शिक्षक है, वह इस संस्थान में परिलक्षित होता है। वह पश्चिम से उधार ली गई पारंपरिक पद्धतियों से शिक्षा को मुक्त रखना चाहते थे। वह उन कठोर संरचनाओं और पद्धतियों के खिलाफ थे, जिसमें छात्र निष्क्रिय रूप से प्राप्तकर्ता होते हैं और सीखने में सक्रिय भागीदार नहीं बनते हैं।

राष्ट्रपति ने कहा कि विश्वभारती के माध्यम से गुरुदेव ने हमें एक ऐसी शिक्षण प्रणाली उपहार में दी है, जो प्रकृति के करीब है, जो आध्यात्मिकता और आधुनिक विज्ञान, नैतिकता और उत्कृष्टता, परंपरा और आधुनिकता का मिश्रण है। उन्होंने कहा कि गुरुदेव के लिए शिक्षा सीमारहित और असीम थी।

उन्होंने कहा कि गुरुदेव को भारतीय ज्ञान परंपरा पर गर्व रहा है और हमारी परंपरा बताती है कि 'वही शिक्षा सार्थक है जो मुक्ति दिलाती है।

उन्होंने कहा कि अज्ञानता, संकीर्णता, पूर्वाग्रह, नकारात्मकता, लालच और ऐसे अन्य बंधनों से मुक्ति ही शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य है। राष्ट्रपति ने आशा व्यक्त किया कि विश्व भारती के छात्र जहां भी रहेंगे और काम करेंगे वहां वे बेहतर समुदायों के निर्माण में मदद करेंगे।

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