Engineers Day
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भारत के महान इंजीनियर एम विश्वेश्वरैया को समर्पित है इंजीनियर्स-डे

आज अर्थात 15 सितंबर को हर साल इंजीनियर्स-डे मनाया जाता है, यह दिन एम विश्वेश्वरैया को याद करते हुए उनकी जयंती पर मनाया जाता है। विश्वेश्वरैया, इंजीनियर्स के लिए मिसाल हैं।

राज एक्सप्रेस। आज देश में इंजीनियर्स की संख्या इतनी अधिक बढ़ गई है। हर मोहल्ले में एक न एक इंजीनियर आपको जरूर मिल ही जाएगा, लेकिन क्या यह वाकई में इंजीनयर हैं? भारत में इंजीनियरिंग की डिग्री पा लेने वाले को ही इंजीनियर कहते है, लेकिन क्या सही मायने में यह इंजीनियर है या सिर्फ डिग्री मात्र पा लेने से कोई इंजीनियर कहलाने लगेगा? आज भारत के एजुकेशन सिस्टम के चलते इंजीनियर की स्थिति बहुत ख़राब होती जा रही है, लेकिन ऐसा नहीं है कि, भारत में सफल इंजीनियर ही नहीं हैं। भारत से ही ऐसे कई इंजीनयर निकले है जिन्होंने भारत के कई मेट्रो प्रोजेक्ट, सबसे लंबी सुरंग और स्टैच्यू ऑफ यूनिटी से लेकर अंडर वाटर टनल जैसे प्रोजेक्ट्स पर कार्य किया है। आज अर्थात 15 सितंबर को हर साल पूरी दुनिया में इंजीनियर्स डे मनाया जाता है।

इंजीनियर्स डे :

15 सितंबर को हर साल पूरी दुनिया में इंजीनियर्स डे (Engineers Day) मनाया जाता है, यह दिन एम विश्वेश्वरैया की जयंती पर मनाया जाता है। यह दिन उनकी याद और सभी इंजीनियर्स के लिए समर्पित है। एम विश्वेश्वरैया ने अनेक महान कार्य किये हैं। उनका निधन 101 साल की आयु में हुआ था। उन्होंने 14 अप्रैल 1962 को अपनी आखिरी सांस ली थी। एम विश्वेश्वरैया को 1955 में भारत रत्न से सम्मानित भी किया गया था। इंजीनियर्स डे उनकी याद में ही मनाया जाता है क्योंकि वह दुनिया के हर एक इंजीनियर के लिए किसी मिसाल से काम नहीं है। इंजीनियर्स डे के दिन सभी इंजीनियर्स एक-दूसरे को बधाई देते हैं। उनके लिए यह दिन गर्व का दिन होता है।

कौन थे एम विश्वेश्वरैया :

एम विश्वेश्वरैया पूरी दुनिया के इंजीनियर्स के लिए एक मिसाल हैं। इन्होंने नदियों के बांध, ब्रिज जैसे बड़े प्रोजेक्टों पर कार्य किया। इतना ही नहीं इन्होने भारत में पीने और सिंचाई के जल के लिए कई स्कीम भी लागू की है। कृष्णराज सागर बांध, भद्रावती आयरन एंड स्टील वर्क्स, मैसूर संदल आइल एंड सोप फैक्टरी, मैसूर विश्‍वविद्यालय यह सब विश्वेश्वरैया की ही देन हैं।

एम विश्वेश्वरैया का परिचय :

एम विश्वेश्वरैया का जन्म मैसूर के कोलार जिले स्थित चिक्काबल्लापुर तालुक में 15 सितंबर 1861 को हुआ था। यह एक तेलुगु परिवार से थे। इनके पिता का नाम श्रीनिवास शास्त्री था, जो संस्कृत के विद्वान और आयुर्वेद चिकित्सक थे, उनकी माता का नाम वेंकाचम्मा था। विश्वेश्वरैया ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई पुरी से और आगे की पढ़ाई बंगलूर के सेंट्रल कॉलेज से की। उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए मैसूर सरकार की मदद ली। उन्होंने साल 1883 में एलसीई व एफसीई की परीक्षा में प्रथम स्थान पाया। प्रथम स्थान पाने के कारण इन्हे महाराष्ट्र सरकार द्वारा नासिक में सहायक इंजीनियर की नौकरी मिली।

कौन होते हैं इंजीनियर :

हम उस हर व्यक्ति को इंजीनियर कह सकते है जो, मशीनों से जुड़ा कार्य करता हो, सरल शब्दो में कहे तो यंत्र विशेषज्ञ को हम अंग्रेजी भाषा में इंजीनियर कहते हैं।

ब्रिटिश अधिकारियों को पसंद आया उनका काम :

इन्होने अपनी नौकरी के दौरान सिंधु नदी से सुक्कुर कस्बे को पानी की पूर्ति भेजने का प्लान तैयार कर लिया था जिसे देख कर इंजीनियर काफी आश्चर्यचकित रह गए और उन्हें ये प्रोजेक्ट काफी पसंद आया। उस समय सिंचाई व्यवस्था के लिए सरकार ने एक समिति बनाई थी, जिसमें यह भी थे। इन्होंने पानी के बहाव को रोकने के लिए स्टील के दरवाजे बनाए। उनकी इस सूझ-बूझ को देख कर ब्रिटिश अधिकारियों ने भी उनकी तारीफ की। इसी को देखते हुए आज पूरे संसार में पानी के बहाव को रोकने के लिए यही किया जाता है। विश्वेश्वरैया ने मूसा व इसा नदियों के पानी को बांधने जैसे अन्य कई बड़े प्रोजेक्टों किया है। उनके इन कार्यों को देखते हुए ही उन्हें मैसूर का चीफ इंजीनियर बनाया गया था। इसके अलावा उन्हें 1947 में आल इंडिया मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन का अध्यक्ष बना दिया गया।

एम विश्वेश्वरैया के कार्य :

  • विश्वेश्वरैया ने अपने कार्यकाल में मैसूर में 10,500 स्कूलों का निर्माण किया। जिससे विद्यार्थियों की संख्या 1,40,000 से बढ़ कर 3,66,000 तक पहुंच सकी।

  • उन्होंने मैसूर में लड़कियों के लिए पहले फ‌र्स्ट ग्रेड कॉलेज और हॉस्टल का निर्माण करवाया।

  • उन्होंने ही मैसूर में ऑटोमोबाइल और एयरक्राफ्ट फैक्टरी की शुरूआत की।

  • बंगलूर के हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स तथा मुंबई की प्रीमियर ऑटोमोबाइल फैक्टरी की शुरुआत भी उन्होंने ही की।

भारत का पहला इंजीनियरिंग कॉलेज :

आज भारत के कोने-कोने में सैंकड़ों इंजीनियरिंग कॉलेज बन चुके है, जिनसे हर साल कई इंजीनियर्स पढ़ कर कई बड़े कार्य करते हैं। इंजीनियरिंग भारत में सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले विषयों में से एक मानी जाती है। 1847 में भारत के के पहले इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना हुई थी जिसका नाम थॉमसन कॉलेज ऑफ सिविल इंजीनियरिंग था, हालांकि बाद में इसी कॉलेज का नाम बदलकर यूनिवर्सिटी ऑफ रूड़की रखा गया और आज सिर्फ भारत ही नहीं पूरी दुनिया इसे इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी रूड़की (IIT Roorkee) के नाम से जानती है।

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