बाल गंगाधर तिलक को कैसे मिली लोकमान्य की उपाधि?
बाल गंगाधर तिलक को कैसे मिली लोकमान्य की उपाधि?Syed Dabeer Hussain - RE

बाल गंगाधर तिलक को कैसे मिली लोकमान्य की उपाधि? जानिए कैसे बने गरम दल के नेता?

आज भारत के स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक बाल गंगाधर तिलक की जयंती है। चलिए इस मौके पर आपको बताते हैं उनके कामों और 'लोकमान्य' उपाधि के बारे में।

राज एक्सप्रेस। भारत के स्वतंत्रता सेनानियों में बाल गंगाधर तिलक का नाम बहुत सम्मान के साथ लिया जाता है। उनका जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के कोंकण प्रदेश के चिखली गांव में हुआ था। वे एक स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ ही समाज सुधारक और पत्रकार के तौर पर भी पहचाने जाते थे। लोगों ने उनके कामों को देखते हुए उन्हे लोकमान्य की उपाधि से नवाजा था। यही नहीं ब्रिटिश शासन के खिलाफ आंदोलन में उनके फैसलों ने उन्हें उस समय के सबसे लोकप्रिय नेताओ में भी स्थान दिया। चलिए आज आपको बाल गंगाधर तिलक से जुड़ी खास बातों से रूबरू करवाते हैं।

तिलक को कैसे मिली लोकमान्य की उपाधि?

बाल गंगाधर तिलक ने दो दैनिक समाचार पत्रों 'मराठा दर्पण' और 'केसरी' की शुरुआत की थी। इन समाचार पत्रों में ब्रिटिश शासन की क्रूरता और भारतीय संस्कृति के प्रति उनके मन की हीनभावना की जमकर अलोचना की गई थी। उनके इस काम को देखते हुए लोगों में बाल गंगाधर तिलक को सम्मान देते हुए 'लोकमान्य' की पदवी दी थी।

बने गरम दल के नेता :

बात उन दिनों की है जब तिलक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए थे। उस समय ब्रिटिश हुकूमत चल रही थी, लेकिन कांग्रेस का रवैया उनके खिलाफ नरम था और यह बात तिलक को बिल्कुल भी पसंद नहीं आई। इस कारण वे इसका विरोध करने लगे और आखिरकार साल 1907 में कांग्रेस दो दलों में विभाजित हो गई। एक था गरम दल और दूसरा था नरम दल। बाल गंगाधर तिलक के गरम दल में लाला लाजपत राय और बिपिन चन्द्र पाल भी शामिल थे। जिसके बाद इन तीनों को लाल-बाल-पाल के नाम से जाना जाने लगा।

बम हमले का समर्थन कर पहुंचे जेल :

साल 1908 के दौरान लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहे प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस के द्वारा किए गए बम हमले का समर्थन किया। जिसके चलते उन्हें बर्मा की मांडले जेल में जाना पड़ा। जेल से बाहर आने के बाद वे फिर से कांग्रेस का हिस्सा बन गए और साल 1916 में अखिल भारतीय होम रूल लीग की स्थापना की।

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