कोरोना से जंग में भारतीयों को कितना आनुवांशिक फायदा?

एक अध्ययन के मुताबिक भारतीयों को कोरोनो वायरस से लड़ने में आनुवांशिक और क्षेत्रीय फायदे मिल सकते हैं।
अध्ययन के मुताबिक कोरोना से फाइट में भारतीयों को अनुवांशिक फायदा मिल सकता है।
अध्ययन के मुताबिक कोरोना से फाइट में भारतीयों को अनुवांशिक फायदा मिल सकता है।File Image

हाइलाइट्स

  • उत्तरी गोलार्ध के देशों ने भुगता खामियाजा

  • दक्षिणी गोलार्ध के देशों में फिलहाल संक्रमण कम

  • भारत को मिल सकता है आनुवांशिक-क्षेत्रीय फायदा!

राज एक्सप्रेस। महामारी विज्ञान के आंकड़ों से संकेत मिले हैं कि भारतीयों को कोरोनो वायरस से लड़ने में आनुवांशिक और क्षेत्रीय फायदे मिल सकते हैं। फिलहाल यह अध्ययन का विषय है कि इसके कितने फायदे होंगे। हालांकि यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि वायरस संक्रमण की जांच के साथ ही उपचार के जरिए कोरोना वायरस बीमारी के संक्रमण को बढ़ने से रोका जाए।

इतिहास पर नजर :

कोविड-19 यानी नोवल कोरोना वायरस डिजीज के लक्षण पहली बार दिसंबर 2019 की शुरुआत में चीन के हुबेई प्रांत के वुहान जिले में दिखाई दिये थे। चीन में 7 जनवरी, 2020 को पहला मामला दर्ज किया गया और फिर क्रमबद्ध रूप से दुनिया भर में इसके लक्षण दिखने शुरू हो गए। शुरुआत में अधिकांश देशों ने कोरोना वायरस संक्रमण की अनदेखी की जिसके अब दुष्परिणाम देखने को मिल रहे हैं।

समय रहते अलर्ट :

सौभाग्य से, नए संक्रमणों के प्रति सतर्क रहने वाले भारतीय स्वास्थ्य अधिकारियों ने शुरुआत में ही इस संभावित खतरे की आशंका को समय रहते भांप लिया। साथ ही इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) में साइंटफिक थिंक-टैंक तुरंत सक्रिय हो गया। आपको ज्ञात हो आईसीएमआर के पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) की प्रयोगशाला में जनवरी के आखिर में पहले संक्रमित मामले की पुष्टि की गई।

वर्ल्ड कोविड मीटर से पता चलता है कि; संक्रमण से जूझ रहे देशों की मृत्यु दर में उम्र के आधार पर 0.2% से लेकर 15% तक भिन्नता है। इन आंकड़ों में धूम्रपान की आदत और संक्रमित मरीज में पहले से मौजूद बीमारी का कारक भी शामिल है।

कहां कमजोर कहां ताकतवर? :

हालांकि यह कहना जरा जल्दबाजी होगी, लेकिन सामान्य तौर पर जो आंकड़े अब तक निकलकर सामने आए हैं उनके मुताबिक उत्तरी गोलार्ध के देशों को अधिकतम खामियाजा भुगतना पड़ा है। जबकि दक्षिणी गोलार्ध (और वे जो भूमध्य रेखा के समीप स्थित हैं) के देश हाल फिलहाल उच्च संक्रमण से बचे हुए हैं।

सौभाग्य से भारत में अब तक कोविड-19 लगभग नियंत्रण की स्थिति में है। ICMR राष्ट्रीय अध्यक्ष और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली के पूर्व डीन नरिंदर कुमार मेहरा के अध्ययन के मुताबिक भारत में कोरोना संक्रमण के कम मामलों में तीन कारक प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं।

पहला जनमानस की व्यापक प्रतिरक्षा प्रणाली है। दरअसल भारतीय जनमानस विविध रोगजनकों से अवगत हो चुका है। इसमें बैक्टीरिया, परजीवी और वायरस शामिल हैं। इस कारण भी भारतीयजन विदेशी बीमारियों से बचाव में समर्थ हैं।

हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन :

इतिहास पर गौर करें तो पता चलता है कि; तपेदिक, एचआईवी और मलेरिया के इन तीन मुख्य कारकों ने भारत, अफ्रीका और दक्षिणी गोलार्ध में कई देशों को यूरोपीय और उत्तरी अमेरिकी देशों की तुलना में अधिक त्रस्त किया है। हाल ही में CoV-2 कोरोना वायरस दमन के मामले में क्लोरोक्वीन और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की लाभकारी भूमिका के बारे में चर्चा और बहस को बल मिला।

गौरतलब है भारत में सामुदायिक स्तर पर पहले ही इस दवा का व्यापक उपयोग किया जा चुका है। इस कारण भी इस बात को बल मिल रहा है कि ये दवाएं भारत के लिए कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने और इससे रक्षा करने में फायदेमंद साबित हो सकती हैं।

दूसरा कारक :

दूसरा, एपिजेनेटिक (पश्चजनन सम्बन्धी) कारक है जिसमें पर्यावरण और भोजन की आदतें शामिल हैं। इनके कारण भी भारत जैसे देशों के लिए भी यह कारक लाभकारी भूमिका निभा सकते हैं। आयुर्वेद और चिकित्सा की अन्य भारतीय प्रणालियों में प्रतिरक्षा बढ़ाने में भारतीय मसालों के निश्चित लाभकारी प्रभावों के बारे में पहले से ही बहुत साहित्य उपलब्ध है।

महत्वपूर्ण कारक :

तीसरा, और सबसे महत्वपूर्ण कारक, भारतीय आबादी में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया जीन की संभावित भूमिका है। इन जीनों को सामूहिक रूप से मानव ल्यूकोसाइट एंटीजन सिस्टम या सामान्य तौर पर एचएलए जीन के रूप में संदर्भित किया जाता है। उनका मुख्य जैविक कार्य प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए बाह्य एंटीजंस पर आक्रमण करना है। ये एक तरह से शरीर के सैनिकों के रूप में कार्य करते हैं।

अहम सवाल :

ऐसे में सवाल उठता है कि एचएलए जीन में आनुवंशिक भिन्नता; कोविड-19 प्रगति में भूमिका क्यों निभा सकती है? संबंधित वायरल रोगों में पहले के अध्ययन से इस बारे में एक संकेत मिलता है कि एचएलए प्रणाली के कुछ आनुवंशिक वेरिएंट ऐसे वायरस से सुरक्षा प्रदान करते हैं। जबकि अन्य उनके लिए आनुवांशिक संवेदनशीलता बढ़ाते हैं।

बड़ा सवाल यह है कि क्या ये भारतीयों को प्रभावी ढंग से वायरस से लड़ने का बेहतर मौका देता है? अब तक महामारी विज्ञान के आंकड़ों को देखकर तो यही लगता है कि वायरस से लड़ने में यह कारगर है हालांकि इस पर बहुत अधिक व्यापक शोध की भी अभी आवश्यकता है।

सरकार का अहम निर्णय :

फिलहाल हमारे लिए यह भी आवश्यक है कि कोरोना के संक्रमण को नियंत्रण में रखा जाए और विकरालता की चौखट लांघने से रोका जाए। नोवल कोरोना वायरस बीमारी संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए सरकार ने देश में समय रहते पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा कर सार्थक निर्णय लिया है। वायरस संक्रमण प्रसार रोकने के लिए यह कदम सबसे अधिक वांछनीय भी था। नहीं तो भारत जैसी बड़ी आबादी वाले देश में इसकी विभीषिका बढ़ते देर नहीं लगती।

पानी न फिर जाए! :

देखने में आ रहा है कि जरूरत की वस्तुओं को खरीदने जमा भीड़ या अंतरराज्यीय प्रवास से कोरोना संक्रमण प्रसार के खिलाफ अब तक हासिल लाभ पर कहीं पानी न फिर जाए। साथ ही इन वजहों से जिन वंशानुगत-प्राकृतिक लाभ की हमने चर्चा की है उनको भी खतरा पैदा हो सकता है।

भारत की राज्य सरकारों को लॉकडाउन लागू करने के लिए न केवल तेजी दिखानी होगी बल्कि, जहां जरूरी हो वहां बलपूर्वक इसे लागू भी करना होगा। ऐसा करने से ही भारत कोरोनो वायरस संक्रमण से लड़ाई में न केवल जीत सकता है बल्कि दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में भारत में इस बीमारी से मृत्यु दर को नियंत्रित भी किया जा सकता है।

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