श्राद्ध और पितृपक्ष
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मृत लोगों के श्राद्ध और पितृपक्ष को मनाने का बढ़ता चलन

किसी की मृत्यु हो जाने के बाद उन्हें याद करके जो भी पूजा-पाठ किया जाता है वो, जिस समय में की जाती है उसे पितृपक्ष कहते हैं। यह गणेश पूजन के बाद और दुर्गा पूजा के पहले के 15 दिन होते हैं।

हाइलाइट्स :

  • श्राद्ध और पितृपक्ष के 15 दिन माने जाते हैं अशुभ

  • पित्र पक्ष में पूर्वजों के आने की मान्यता है

  • कौआ, कुत्ता और गाय खाना खिलाने की है प्रथा

  • पंडितों को किया जाता है आमंत्रित

  • समाज सुधारकों की इस प्रथा को बंद करने पर जागृति

राज एक्सप्रेस। रहली-गणेश उत्सव के बाद नवदुर्गा प्रारंभ होने से पहले बीच वाले समय में पंद्रह दिन के समय को पितृपक्ष के रूप में मनाया जाता है, इसे मान्यताओं के अनुसार, अशुभ समय माना जाता है इस दौरान कोई नया कार्य प्रारंभ नहीं किया जाता, खासतौर पर अचल संपत्ति खरीदने में निषेध बताया जाता है, मान्यता है कि पितृपक्ष में हमारे पूर्वज आते हैं और जिस तिथि में उनका स्वर्गवास हुआ होता है, उस तिथि पर कुछ विधि विधान के अनुसार खाना खिलाया जाता है कौआ, कुत्ता और गाय के साथ पंडितों को भी आमंत्रित किया जाता है।

पूर्वजों को पानी देने की प्रथा :

पूर्वजों के लिए पानी दिया जाता है यह माना जाता है कि, इस अवधि में खिलाया गया खाना और पानी सीधे पूर्वजों को प्राप्त होता है और यही मान्यता बढ़ती जा रही है कुछ दशकों पहले से समाज में एक जागृति आ रही है मृत्यु भोज बंद कराया जाए ऐसा देखा गया है कुछ आर्थिक कमजोर लोग सामाजिक दबाव में मृत्यु भोज में कर्जदार हो जाते हैं और उनकी आर्थिक स्थिति बिगड़ जाती है मृत्यु भोज के आर्थिक दबाव में कुछ गरीब लोगों की जमीन जायदाद अचल संपत्ति भी नीलाम हो चुकी हैं।

प्रथा बंद करने के प्रति जागृति :

जागृत समाज सुधारकों और विचारकों ने इस प्रथा को बंद करने के लिए जन जागृति लाई और आप मृत्यु भोज जिसे तेरहवीं का भोज भी कहते हैं जिसे बंद कराया गया या उसका स्वरूप छोटा कराया गया है मृत्यु भोज के स्थान पर कुछ लोगों ने समाज सेवा के लिए स्थाई निर्माण दान पुण्य वृक्षारोपण या गरीबों को खाना खिलाने की प्रथा भी शुरू की, जैसे समाज हित में अच्छी प्रथा कहा जा सकता है, लेकिन देखने में आ रहा है कि, पितृ पक्ष में आयोजित होने वाली भोज की संख्या बढ़ती जा रही है और उसका स्वरूप भी बढ़ता जा रहा है।

सनातन धर्म के अनुसार:

सनातन धर्म के जानकारों के अनुसार, पितृपक्ष में श्राद्ध का प्रावधान है, लेकिन जितना बड़ा स्वरूप आज होता जा रहा है यह विकृति है यह विकृति बढ़ती जा रही है, लोग मृत्यु भोज बंद करने की वकालत तो करते हैं, लेकिन श्राद्ध का स्वरूप बढ़ाते जा रहे हैं यह सामाजिक कुरीति बढ़ती भी जा रही है।

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