वित्त मंत्री सीतारमण के पति का आर्टिकल सोशल मीडिया में मचा रहा धूम
हाइलाइट्स :
नेहरू के मॉडल को नकारना ठीक नहीं।
कांग्रेस सरकार के मॉडल को बताया बेहतर।
राव-सिंह की आर्थिक नीति कारगर।
बिजनेस सेक्टर्स के हालात बहुत चुनौतीपूर्ण।
राज एक्सप्रेस। अंतर राष्ट्रीय मुद्रा कोष की आर्थिक मंदी की चेतावनी के बाद भारतीय केंद्र सरकार में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के पति परकला प्रभाकर (Parakala Prabhakar) का एक लेख इन दिनों सोशल मीडिया में धूम मचा रहा है। कोई इसे पति-पत्नि के बीच मतभेद-मनभेद बता रहा है, तो किसी के मुताबिक केंद्र सरकार को आर्थिक नीति और व्यवस्था के बारे में फिर से सोचना होगा।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की नई प्रबंध निदेशक क्रिस्टालिना जॉर्जीवा के मुताबिक, वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुजर रही है और 90 फीसदी देशों में चालू वित्तीय वर्ष 2019 और आगामी साल में धीमी विकास दर देखने को मिल सकती है। भारत को भी इसका झटका लगेगा। केंद्र सरकार में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भारतीय अर्थव्यवस्था को जहां मजबूत बता रहीं हैं वहीं उनके पति परकला प्रभाकर की राय जरा इससे जुदा है।
नेहरू को ठुकराएं नहीं अपनाएं :
आईएमएफ की चेतावनी के बाद भारत की सुस्त पड़ने वाली अर्थव्यवस्था पर नामी अर्थशास्त्रियों ने चिंता जताई है। आंध्रप्रदेश सरकार के संप्रेषण सलाहकार रहे परकला प्रभाकर का अर्थव्यवस्था की मौजूदा हालत पर द हिंदू अखबार में लिखा, लेख सोशल मीडिया में चर्चा का विषय है। इस लेख में प्रभाकर ने बीजेपी सरकार को नेहरू के समाजवाद मॉडल की बुराई करने के बजाए पूर्व वित्तमंत्री मनमोहन सिंह के आर्थिक सुधारों को अपनाने की सलाह दी है।
प्रभाकर और सोशल मीडिया-
दरअसल, परकला प्रभाकर का आर्टिकल प्रकाशित होने के बाद सोशल मीडिया में यूज़र्स अपनी-अपनी राय रख रहे हैं। यह आर्टिकल इस कारण भी सुर्खियां बटोर रहा है, क्योंकि इसे लिखने वाले प्रभाकर देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के पति हैं।
इस कारण भी चर्चा :
भारत की अर्थव्यवस्था की गिरती सेहत के बारे में केंद्रीय वित्त मंत्री के ओला-उबर वाले कमेंट और फिर बाद में यूनियन मिनिस्टर रविशंकर प्रसाद के फिल्मों की कमाई वाले बयानों पर बीजेपी बैकफुट पर दिख रही है।
हर सेक्टर बेहाल :
प्रभाकर के आर्टिकल में यूज़र्स इस बात को खास तरजीह दे रहे हैं, जिसमें उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था में सुस्ती को लेकर घबराहट के माहौल का जिक्र किया है। प्रभाकर के मुताबिक, सरकार इस परिस्थिति को नकार रही है, लेकिन बिजनेस सेक्टर्स के हालात बहुत चुनौतीपूर्ण हो चुके हैं।
ये दिया हवाला :
भारतीय अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति पर चिंता जताते हुए प्रभाकर ने लिखा है कि प्राइवेट सेक्टर्स की खपत में चिंताजनक गिरावट हुई है। पिछले ढ़ाई सालों में यह निचले स्तर पर पहुंचकर 3.1% आंकी गई है। रूरल एरिया का हाल अर्बन के मुकाबले और चिंताजनक है यहां डबल मंदी छाई है।
जीडीपी पर चिंता :
कुल निर्यात जहां स्थिर है, वहीं जीडीपी भी बीते छह सालों में सबसे निचले स्तर पर पहुंची है। विकास दर और बेरोजगारी संकट भी प्रबल होने का उल्लेख प्रभाकर ने किया है। प्रभाकर ने लिखा है कि, फिलहाल ऐसे संकेत भी नजर नहीं आ रहे कि, भारतीय जनता पार्टी सरकार अर्थव्यवस्था की हालत सुधारने की कोशिश कर रही है।
कोई खाका नहीं :
प्रभाकर के आर्टिकल की इसलिए भी चर्चा है, क्योंकि उन्होंने बीजेपी सरकार के पास कोई आर्थिक खाका न होने का जिक्र किया है। उनके मुताबिक, बीजेपी ने नेहरू के समाजवाद को हमेशा से खारिज किया है, जबकि बीजेपी का पूंजीवाद, मुक्त बाजार का सपना भी हकीकत में साकार नहीं हो सका है।
नहीं चमका 'इंडिया शाइनिंग' मिशन :
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के वक्त भारतीय जनता पार्टी ने 'इंडिया शाइनिंग' कैंपेन चलाया था, लेकिन वो परवान नहीं चढ़ा। लोगों को पार्टी के आर्थिक ढांचे में कुछ नया नज़र नहीं आया।
मौजूदा प्रदर्शन पर सवाल :
परकला प्रभाकर ने लेख में हवाला दिया है कि, 2019 में हुए आम चुनावों में भारतीय जनता पार्टी सरकार ने आर्थिक प्रदर्शन की बात जाहिर नहीं की और चुनाव का रुख राष्ट्रवाद और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर मोड़ दिया। वहीं प्रभाकर ने 1991 में देश में रही कांग्रेस सरकार के पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव और उनकी सरकार में वित्त मंत्री रहे मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियों की मुक्त कंठ से तारीफ की। प्रभाकर ने मौजूदा सरकार को नरसिम्हा राव-मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियों से सीख लेने की भी नसीहत दी है।
सीतारमण vs प्रभाकर :
सोशल मीडिया पर तो यूज़र्स को चर्चा के लिए कुछ न कुछ चाहिए ही होता है। ऐसे में केंद्रीय वित्त मंत्री और उनके पति के बीच वैचारिक अंतर सामने आने पर जमकर रायशुमारी का दौर भी जारी हो गया है। कोई वित्त मंत्री को घेरने की कोशिश कर रहा है, तो किसी ने इसे दोनों के स्वतंत्र विचार बताए हैं। यूज़र्स को प्रभाकर का यह आलोचनात्मक अंदाज खासा लुभा भी रहा है।
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