अरामको पर हमले की जद में भारतीय अर्थव्यवस्था, ऐसा भी हो सकता है!

अरामको पर हमले की जद में इंडियन सेंसेक्स वर्म, क्या ये सेक्टर्स भी हो जाएंगे धड़ाम?
अरामको पर ड्रोन से हमला
अरामको पर ड्रोन से हमलाPankaj Baraiya - RE

राज एक्‍सप्रेस। दक्षिणी यानी सऊदी अरब में तेल कंपनी अरामको पर ड्रोन से हमलों की खबरों के बाद से दुनिया भर के सेंसेक्स का ग्राफिक वर्म नीचे खिसक रहा है। कंपनी की प्रॉडक्शन की रीढ़ अबक़ीक़ और ख़ुरैस पर हमलों के बाद से तेल जगत की दोनों अहम ऑयल प्रॉडक्शन और सप्लाई की चेन ग्लोबली प्रभावित हो रही है। भारत में अर्थव्यवस्था की मंदी के सवाल-जवाब के बीच सेंसेक्स का केंचुआ जहां दिन-ब-दिन नीचे की ओर सरक रहा है वहीं रोजाना नई समस्याएं अंगड़ाई भी ले रही हैं।

खुद सऊदी अरब के एनर्जी मिनिस्टर प्रिंस अब्दुल अज़ीज़ बिन सलमान ने प्रॉडक्शन कुल क्षमता का आधा रहने की वजह अरामको पर हमला बताया है। ओपेक के आंकड़े बताते हैं कि सऊदी अरब में प्रतिदिन 98 लाख बैरल कच्चा तेल निकाला जाता है। ऐसे में साफ है कि, अरामको पर हुए हमले के कारण रोज़ाना लगभग 57 लाख बैरल कच्चा तेल उत्पादन प्रभावित हो रहा है।

इसी को कहते हैं तेल की धार!

पुरानी कहावत है तेल की धार से कीमत तय होती है, ठीक ऐसा ही सऊदी अरब की तेल सप्लाई पर मुख्य तौर पर निर्भर दुनिया के देशों के साथ भी हैं। वहां अरामको पर धड़ाम की आवाज़ आई और यहां तमाम देशों के सैंसेक्स धराशाई हो गए। ऑयलप्राइस की खबर कहती है, अरामको में तेल प्रॉडक्शन यदि जल्द पटरी पर नहीं लौटा, तो हर महीने लगभग 150 मिलियन बैरल से भी ज्यादा तेल भंडार की कमी दुनिया के बाज़ारों में छाने की आशंका है। मतलब साफ है, इससे मांग और आपूर्ति का नियम प्रभावित होगा और कीमतों में इज़ाफा होना लगभग तब तक तय है, जब तक संबंधित देशों की सरकारें जनहित में यथोचित प्रबंध न करें।

अरामको मतलब खरा सोना :

दुनिया को तेल सप्लाई करने वाली कंपनियों में से सऊदी अरब की अरामको भी एक है। मौज़ूदा समय में कच्चे तेल के इस जॉयंट प्लेयर से बड़े-बड़े देशों का इकोनॉमिक परिदृश्य प्रभावित है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट की मानें तो अरामको ने सालाना कमाई के मामले में 2018 में ऐपल और गूगल कंपनी अल्फाबेट के मुकाबले बाजी मार ली है। जारी की गई जानकारी के अनुसार अरामको ने इस दौर में 111 अरब डॉलर का प्रॉफिट कमाया।

आयकर जानेंगे तो होगी हैरानी :

कौन कितना फायदा कमा रहा है? इस बात की पड़ताल करने वाली रिपोर्ट में फोर्ब्स ने अरामको को सबसे ज्यादा फायदा कमाने वालों की फेहरिस्त में पहले पायदान पर पहुंचाया है। रिपोर्ट कहती है कि कंपनी ने साल 2017 में आयकर बतौर 100 अरब डॉलर चुकाए।

आपको बता दें, ख़ुरैस में अबक़ीक़ से दुनिया भर की जरूरत का लगभग 7 प्रतिशत ऑयल प्रोसेस होता है। तेल जगत की खबरों के मुताबिक इंटरनेशनल मार्केट का लगभग 10 फीसदी कच्चा तेल सऊदी अरब की सप्लाई पर निर्भर है। मतलब साफ है, दुनिया के बाजारों में वही मांग-आपूर्ति-दाम बढ़ने-घटने वाला नियम लागू होना तय है। तेल की कीमत की धार पर पैनी नज़र रखने वाली कंपनी मॉर्निंगस्टार के डायरेक्टर सैंडी फील्डन ने इंटरनेशनल मार्केट में तेल की कीमतों में बढ़त की आशंका जताई है, जिसका असर देर-सबेर लोगों की जेब पर पड़ने के भी संकेत उन्होंने दिये हैं।

ऐसे होगी शुरुआत :

अरामको ने सऊदी के शेयर मार्केट में लाने के बाद इंटरनेशनल मार्केट में एंट्री की तैयारी कर रखी थी। सऊदी के प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने भी गर्त में कंपनी का कुछ हिस्सा शेयर मार्केट में लाने की बात को बल दिया था। ब्रितानी खबरों के मुताबिक हमले से प्रभावित अरामको की कमज़ोरियां सामने आईं हैं जिससे शेयर मार्केट में उसको मिलने वाली संभावित उछाल सीधे तौर पर प्रभावित होती दिख रही है। सिर्फ अरामको ही नहीं बल्कि इस हमले का संक्रमण मध्यपूर्व में दिख रहा है। यहां तनाव कम न हुआ तो भी दुनिया को तेल की तंगहाली के दौर से गुज़रना पड़ सकता है।

अरामको में उत्पादन में कमी के कारण साफ तौर पर नामी शेयर बाजारों में भी बादल छाने शुरू हो गए हैं। हालात ये हैं कि मिडिल ईस्ट से जुड़े शेयर बाज़ार की ओपनिंग हमले की खबरों के बाद डाउन लेवल पर हुई। दुबई, आबू धाबी, कुवैत के शेयर बाजारों में आई कमी का असर यहां की तेल सप्लाई पर निर्भर देशों की अर्थव्यवस्था पर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर पड़ने के संकेत बिज़नेस एक्सपर्ट्स ने दिये हैं।

भारत में पैट्रोल का रोल :

भारत में किसानी से लेकर औद्योगिक जगत तक का खेल तेल के दाम पर तय होता है। खेत के जनरेटर से लेकर कारखानों, सड़क, रियल स्टेट में लगे तमाम संसाधनों में पैट्रोल-डीज़ल का रोल काफी इम्पोर्टेंट है। मतलब साफ है, यदि अंतर राष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम बढ़े तो भारत में भी तेल की कीमतों में बढ़ोत्तरी होगी। किराया बढ़ने से महंगाई बढ़ेगी, खेत-खलिहान से लेकर विज्ञान तक सब प्रभावित होगा।

तेल के दामों के अंतर को पाटने के लिए दुनिया की सरकारों के पास सिवाय सहयोग बतौर सब्सिडी के कोई और उपचार नज़र नहीं आ रहा। मतलब साफ है, अर्थव्यवस्था का तेल निकलने से बचने सरकारी खजाने से सब्सिडी बांटने के कारण किसी देश पर आर्थिक संकट तब तक मंडराता रहेगा जब तक कि वैश्विक स्तर पर तेल की बढ़ी कीमतों को नियंत्रित नहीं किया जाता।

क्या है फिर रोजाना बढ़ रही तेल की कीमतों का उपचार? इस बारे में जानें अगले आर्टिकल ‘शान ऐसी की लोग कह उठेंगे यही तो है वो हीरो’ में।

रिफरेन्स:- बीबीसी के आर्टिकल से प्राप्त आंकड़ों पर आधारित।

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