इसरो सूर्य के अध्ययन के लिए आज 11.50 बजे लांच करेगा आदित्य एल-1, चांद के बाद अब सूरज की बारी
राज एक्सप्रेस। चंद्रयान-3 से सफल प्रक्षेपण के बाद इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) अब एक और पहल की है। इसरो सूरज के अध्ययन के लिए आज पूर्वाह्न 11.50 पर आदित्य एल-1 को श्री हरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से लांच करेगा। आदित्य एल-1 को पीएसएलवी-सी 57 राकेट के जरिए लांच किया जाएगा। आदित्य एल-1 सूर्य के अध्ययन के लिए भारत द्वारा भेजा जाने वाला पहला मिशन है। यह स्पेसक्राफ्ट लॉन्च होने के 4 माह बाद लैगरेंज पॉइंट-1 (एल-1) तक पहुंचेगा। यह एक ऐसा स्थान है, जिस पर ग्रहण का प्रभाव नहीं पड़ता। इस स्थान से सूर्य हमेशा दिखाई देता रहता है। जिसके चलते यहां से सूरज का अध्ययन आसानी से किया जा सकता है। इस मिशन की अनुमानित लागत 378 करोड़ रुपए है।
लांचिंग से एक दिन पहले चेंगलम्मा मंदिर पहुंचे थे इसरो प्रमुख
आदित्य-एल1 मिशन के प्रक्षेपण से पहले इसरो अध्यक्ष एस. सोमनाथ शुक्रवार सुबह सुल्लुरपेटा में श्री चेंगलम्मा परमेश्वरी मंदिर पहुंचे और देश के पहले सौर मिशन की सफलता के लिए प्रार्थना की। उन्होंने कहा कि आदित्य को लैग्रेंज प्वाइंट (एल-1) तक पहुंचने में 125 दिन लगेंगे। चंद्रयान-3 मिशन के बारे में सोमनाथ ने कहा कि इस मिशन के तहत सब कुछ सही तरीके से काम कर रहा है। सोमनाथ ने चंद्रयान-3 मिशन की पूर्व संध्या पर भी मंदिर पहुंचे थे।
लैगरेंज पॉइंट पर स्थान जहां काम नहीं करता गुरुत्वबल
एल-1 या लैगरेंज-1 पॉइंट का नाम इतालवी-फ्रेंच मैथमैटीशियन जोसेफी-लुई लैगरेंज के नाम पर रखा गया है। इसे बोलचाल में एल-1 करहा जाता है। धरती और सूर्य के बीच ऐसे पांच पॉइंट हैं, जहां सूर्य और पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल शून्य हो जाता है। इस जगह पर अगर किसी ऑब्जेक्ट को रखा जाता है, तो वह आसानी से दोनों के बीच स्थिर रहता है। इसमें एनर्जी भी कम लगती है। पहला लैगरेंज पॉइंट धरती और सूर्य के बीच 15 लाख किलोमीटर की दूरी पर है। जहां इस स्पेसक्राफ्ट को स्थापित किया जाना है। ताकि यह सूर्य को बिना किसी ग्रहण के लगातार देख सके। इससे रियल टाइम सोलर एक्टिविटीज और अंतरिक्ष के मौसम पर भी नजर रखी जा सकेगी।
सात उपकरणो से करेंगे सूर्य का अध्ययन
आदित्य यान एल1 यानी सूर्य-पृथ्वी के बीच स्थित शून्य गुरुत्व वाले स्थान पर रहकर सूर्य पर उठने वाले तूफानों का अध्ययन करेगा। यह लैग्रेंजियन पॉइंट के चारों ओर की कक्षा, फोटोस्फियर, क्रोमोस्फियर के अलावा सबसे बाहरी परत कोरोना की अलग-अलग वेब बैंड्स से 7 इक्विपमेंट्स के जरिए टेस्टिंग करेगा। आदित्य एल1 के सात इक्विपमेंट्स कोरोनल हीटिंग, कोरोनल मास इजेक्शन, प्री-फ्लेयर और फ्लेयर एक्टिविटीज की विशेषताओं, पार्टिकल्स के मूवमेंट और स्पेस वेदर को समझने के लिए जरूरी जानकारी एकत्र करेंगे। आदित्य एल-1 सोलर कोरोना और उसके हीटिंग मैकेनिज्म का अध्ययन करेगा।
आदित्य एल-1 पर 378 करोड़ रुपए का खर्च
आदित्य एल-1 पर 378 करोड़ रुपए का खर्च आया है। पृथ्वी और सूर्य के बीच दूरी करीब 15 करोड़ किलोमीटर है। सूर्य किरणों को धरती पर पहुंचने में करीब 8 मिनट लगते हैं। जिस स्थान पर एल-1 को स्थापित किया जाएगा, वह स्थान धरती से 15 लाख किमी दूर है। यह एक ऐसा स्थान है जहां कभी ग्रहण नहीं पड़ता है। यहां से सूर्य हर समय दिखता रहेगा। आदित्य एल-1 को एलएमवी एम-3 राकेट से लांच किया जाएगा और अंडाकार कक्षा में चक्कर लगाते हुए आगे बढ़ेगा। लांच किए जाने के एक माह बाद यह उपग्रह लैगरेंज पाइंट-1 (एल-1 के समीप होलो आर्बिट में तैनात किया जाएगा और यहां से सूर्य का अध्ययन करेगा। आदित्य एल-1 में सूर्य के अध्ययन के लिए सात उपकरण लगाए वीईएलसी, सूट, अपेक्स, पापा, सोलेक्स, हेल10एस और मैग्नेटोमीटर लगाए गए हैं।
अब तक भेजे जा चुके हैं कुल 22 सूर्य मिशन
सूर्य के बारे में अधिक से अधिक जानकारी जुटाने के लिए दुनियाभर से अमेरिका, जर्मनी, यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने कुल मिलाकर 22 मिशन भेजे हैं। सबसे ज्यादा मिशन अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने भेजे हैं। नासा ने पहला सूर्य मिशन पायोनियर-5 साल 1960 में भेजा था। जर्मनी ने अपना पहला सूर्य मिशन 1974 में नासा के साथ मिलकर भेजा था। यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने अपना पहला मिशन नासा के साथ मिलकर 1994 में भेजा था। आदित्य एल-1 से सोलर कोरोनल इजेक्शन यानी सूर्य के ऊपरी वायुमंडल से निकलने वाली लपटों का एनालिसिस किया जाएगा। ये लपटें हमारे कम्युनिकेशन नेटवर्क व पृथ्वी पर होने वाली इलेक्ट्रॉनिक गतिविधियों को प्रभावित करती हैं।
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