भाजपा राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय
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विजयवर्गीय बोले- मेरी बात को तोड़ मरोड़कर पेश किया जा रहा है

भाजपा राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने अपने पोहा वाले बयान को स्पष्ट करते हुए कहा, मेरी बात को तोड़ मरोड़कर पेश किया जा रहा है।

राज एक्सप्रेस। CAA-NRC को लेकर भाजपा राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के एक बयान पर सियासत गरमा गई है। विजयवर्गीय ने अपने वाले बयान को स्पष्ट करते हुए कहा, मेरी बात को तोड़ मरोड़कर पेश किया जा रहा है। इस बयान पर राजनीतिक सियासत गर्म है। इस बयान को लेकर विपक्ष ने भाजपा नेता विजयवर्गीय पर निशाना साधा है

शुक्रवार को एक निजी समाचार पत्र से चर्चा करते हुए भाजपा राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय कहा कि मेरे बयान को तोड़-मरोड़कर बताया गया। मैंने यह कभी नहीं कहा कि पोहे खाने के कारण मैंने उनकी पहचान की। मैंने कहा था कि रात में थाली भरकर पोहे खाने का कारण पूछा तो मुझे ठेकेदार ने बताया था कि ये बंगाल के रहने वाले हैं। रात में पोहे ही खाते हैं। मैंने मजदूरों से यह पूछा कि वे बंगाल में किस जिले में रहते हैं तो वे नहीं बता पाए। जो जिस राज्य में रहता है, वहां अपने गृह जिले का नाम नहींं बता पाए यह कैसे संभव है। इसलिए मुझे शंका हुई थी।

विजयवर्गीय ने कहा, चूंकि मैं बंगाल के प्रभारी के तौर पर वहां के हर जिले में जाता हूं। इसलिए बंगाल का नाम सुनकर मजदूरों से उनके निवास वाले जिले का नाम पूछ लिया था।'

दरअसल, इंदौर शहर में गुरूवार को एक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए विजयवर्गीय ने कहा था, 'मेरे घर में काम कर रहे मजदूरों के पोहा खाने के स्टाइल से मुझे शंका हुई कि वह बांग्लादेशी हैं।

भाजपा राष्ट्रीय महासचिव विजयवर्गीय के इस बयान पर पलटवार करते हुए AIMIM अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट कर कहा कि मजदूरों को पोहा नहीं खाना चाहिए। उन्हें केवल और केवल हलवा ही खाना चाहिए। तभी वे भारत के शहरी कहलाएंगे। अन्यथा वे बाहरी माने जाएंगे।

भाजपा नेता विजयवर्गीय पर निशाना साधते हुए मध्यप्रदेश सरकार के नगरीय प्रशासन मंत्री जयवर्धन सिंह ने कहा, इंदौर के पोहे की तो बात अलग है, इंदौर जब भी आये पोहा जरूर खाए।ये देश का दिल है जहाँ तौर-तरीके से ज्यादा अपनापन मायने रखता है। कैलाश जी तरीका देखने से पहले धर्म भी पूछ लेते हैं, उसमें तो आपको महारथ हासिल है।

चम्मच की जगह हाथ से पोहा खाना एक गरीब को बांग्लादेशी बना सकता है। ये लोग नफ़रत की अंधी दौड़ में इंसानियत से कोसो दूर निकल आये हैं। "जो लोग खाने के तौर तरीके से नागरिकता और नज़रिया तय कर लेते हैं, उनकी नीयत पर शंका तो निश्चित है।"

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