जानिए खालिस्तान शब्द का इतिहास क्या है
जानिए खालिस्तान शब्द का इतिहास क्या हैSocial Media

जानिए क्या है खालिस्तान शब्द का इतिहास और किसने सबसे पहले उठाई थी सिखों के लिए अलग देश की मांग?

आइए जानते हैं कि किसने सबसे पहले खालिस्तान शब्द का इस्तेमाल किया और किसने सबसे पहले और कहां सिखों के लिए अलग देश की मांग की।

राज एक्सप्रेस। खालिस्तान, यानी खालसा का स्थान जिसका अर्थ होता है कि एक ऐसा देश या राज्य जो सिर्फ खालसा को मानने वाले लोगों यानी सिख समाज के लोगों के लिए होगा जिसे पवित्र भूमि खालिस्तान के नाम से जाना जाएगा। लेकिन अगर आपको लगता है कि खालिस्तान शब्द सबसे पहले अलगाववादी जरनैल सिंह भिंडरांवाला ने इस्तेमाल किया था तो आप गलत है। खालिस्तान देश की मांग और खालिस्तान शब्द का अस्तित्व उससे भी पुराना है जिसके लिए हमें इतिहास के पन्नों को पलटना होगा। आइये जानते है कैसे ,कब और किसने खालिस्तान शब्द का इस्तेमाल किया था और क्यों?...

क्या है खालसा का असल अर्थ जिसके नाम पर बना खालिस्तान का नाम?

सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 में खालसा शब्द को गढ़ा था। खालसा एक अरबी शब्द खालिस से लिया गया है जिसका अर्थ होता है शुद्ध होना, मुक्त होना या सच्चा होना। खालसा एक परंपरा है जिसे दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने 30 मार्च 1699 में शुरू की थी, जिसके तहत सभी निर्दोष सिखों को धार्मिक उत्पीड़न से बचाने के लिए सिख लोगों की सेना को बनाया जाएगा। गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा परंपरा क्रूर शासक औरंगजेब द्वारा नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर जी का सर कलम कर मार देने के बाद शुरू की थी।(गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा परंपरा की शुरुवात क्रूर शासक औरंगजेब द्वारा सिखों के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर जी का सर कलम कर उनकों मार देने के बाद की थी।)

खालसा को बनाने के पीछे कारण यह था कि सिख समाज के लोगों को राजनैतिक और धार्मिक स्तर पर मजबूत किया जाए। खालसा परंपरा ने एक नई परंपरा को जन्म दिया था, जिसका नाम था "अमृत संस्कार" जिसमे एक सिख व्यक्ति अमृत पीने के बाद पूरी तरह शुद्ध हो जाता है और सिर्फ गुरु या गुरु ग्रंथ साहिब को मानता है।

1940 में पहली बार इस्तेमाल हुआ खालिस्तान शब्द का इस्तेमाल

1940 में जिन्ना की नेतृत्व वाली मुस्लिम लीग ने मुस्लिमों के अलग देश पाकिस्तान की मांग रखी थी, जिसके बाद अकाली दल और सिख समाज के महत्वपूर्ण नेता डॉ.वीर सिंह भट्टी ने कहा था कि वह भी सिख धर्म के लोगों के लिए अलग देश खालिस्तान की मांग करते है जो हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच एक मध्यवर्ती देश होगा। डॉ. वीर सिंह भट्टी ने पुस्तिकाएं बांटी थी, जिसमें सिखों के लिए अलग देश खालिस्तान की बात की गई थी। उन्होंने पुस्तिकाओं के जरिए बताया था कि पटियाला, जींद, नाभा, फरीदकोट, कालसिया, मलेरकोटला, शिमला, जुल्लनदुर, अंबाला, फिरोजपुर, अमृतसर, लाहौर, लायलपुर, गुरजनवाला, शेखपुरा, हिसार और करनाल को खालिस्तान में जोड़ा जाए। यह सब जगह भारत के हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के भाग है।

 डॉ.वीर सिंह भट्टी
डॉ.वीर सिंह भट्टीSocial Media

1929 में पहली बार रखी गई अलग सिख देश की मांग

साल 1929 के लाहौर अधिवेशन में मोतीलाल लाल नेहरू द्वारा पूर्ण स्वराज यानी अंग्रेजो से पूरी आजादी का प्रस्ताव रखा गया था लेकिन उस प्रस्ताव को 3 लोगों द्वारा खारिज कर दिया गया था जिनके नाम थे मुस्लिम लीग के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना, डॉ. बी आर अम्बेडकर और श्रीमोनी अकाली दल के नेता मास्टर तारा सिंह। मास्टर तारा सिंह ने कहा था कि वह सिखों के लिए अलग देश की मांग करते है। मास्टर तारा सिंह इस समय सिख समाज में एक महत्वपूर्ण राजनैतिक और धार्मिक हस्ती थे। वो एक पंजाबी भाषा वाले राज्य की मांग भी करते थे, जिसके लिए उन्होंने आंदोलन भी किए थे।

श्रीमोनी अकाली दल के नेता मास्टर तारा सिंह
श्रीमोनी अकाली दल के नेता मास्टर तारा सिंहSocial Media

मुगलों की क्रूरता ने बोए खालिस्तान के बीज

मुगल और सिखों के बीच की लड़ाई तब शुरू हुई थी जब मुगल बादशाह जहांगीर ने पांचवे गुरु, गुरु अर्जन देव जी की 1606 में हत्या करवा दी थी। इस हत्या के बाद मुगल शासन और सिखों के बीच लकीरें खिंच गई थी। सिखों ने मुगलों के खिलाफ जंग छेड़ दी थी। मुगलों ने 3 सिख गुरु, गुरु अर्जन देव जी, गुरु तेग बहादुर जी और गुरु गोबिंद सिंह जी की हत्या करवाई थी। गुरु तेग बहादुर जी की हत्या के बाद ही उनके बेटे गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिख समाज के राजनैतिक और धार्मिक स्तर को बचाने एवं बढ़ाने के साथ ही खालसा की शुरुआत कर अपनी जमीन वापिस लेने की मांग के साथ मुगलों पर चढ़ाई की थी। अपने 3 गुरु की मृत्यु को देख सिख समाज के लोगों में डर बैठ गया और उन्होंने अपने खुद के देश की मांग करना शुरू कर दिया था, जिसमें सिख राजाओं ने 100 साल से भी अधिक राज किया था।

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