1971 की लड़ाई में भारत की जीत
1971 की लड़ाई में भारत की जीतSyed Dabeer Hussain - RE

विजय दिवस: भारत ने कैसे पाकिस्तान के 93,000 सैनिकों से कराया सरेंडर

विजय दिवस: 1971 की लड़ाई में भारत की जीत और पाकिस्तान के दो टुकड़ो में बंटने की पूरी कहानी।

हाइलाइट्स:

  • 1971 की भारत-पाकिस्तान लड़ाई में भारत की जीत को हुए 52 साल।

  • 93 हजार सैनिकों ने किया था सरेंडर।

  • पाकिस्तान के हुए दो टुकड़े।

  • स्वतंत्र देश बना बांग्लादेश।

1971 के युद्ध विराम और 93,000 हजार पाकिस्तानी सैनिकों का सरेंडर उस गौरवशाली क्षण का प्रतीक है, जब भारतीय सैनिकों के पराक्रम, बलिदान और बुद्धिमता ने पाकिस्तान को अपने घुटनों पर ला कर खड़ा कर दिया था। जमीन, पानी और आकाश तीनों मोर्चों पर हुए इस युद्ध में, महज 13 दिनों में भारत ने पाकिस्तान की सबसे बड़ी शिकस्त की कहानी लिख दी थी। आज उसी गौरवशाली क्षण की 53वीं वर्षगांठ है। इस अवसर पर जानते हैं, कि क्या थी 1971 में पाकिस्तान और भारत के युद्ध और बांग्लादेश के निर्माण की पूरी कहानी।

क्यों हुआ युद्ध?

1947 के विभाजन के बाद, पाकिस्तान को जमीन के दो अलग-अलग टुकड़े मिले। एक पश्चिमी पाकिस्तान, जोकि वर्तमान समय का पाकिस्तान है और एक पूर्वी पाकिस्तान, जो आज बांग्लादेश कहलाता है। भारत के बंगाल से लगे होने के कारण, यहां के लोगों की संस्कृति और भाषा पश्चिमी पाकिस्तान से काफी अलग थी। आजादी के बाद से पाकिस्तान की सत्ता का केंद्र हमेशा पश्चिमी पाकिस्तान ही बना रहा। देश के इस हिस्से ने हमेशा पूर्वी पाकिस्तान के लोगों को अपने से कमजोर समझा और उन्हें आगे नहीं आने दिया। अपने लोगों का प्रतिनिधित्व करने पूर्व पाकिस्तान की अवामी लीग ने 1970 का आम चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान के शासक, शेख मुज़ीबुर्र रहमान को सत्ता सौपने के लिए बिलकुल तैयार नहीं थे।

पश्चिमी पाकिस्तान, पूर्वी पाकिस्तान पर अपनी संस्कृति और भाषा थोपने का प्रयास करने लगा। इसके बाद पूर्वी पाकिस्तान में स्वतंत्रता की चिंगारी भड़क उठी। इस मोर्चे का नेतृत्व कर रही थी, मुक्तिबाहिनी सेना। मुक्तिबाहिनी को रोकने के लिए, मार्च 1971 में ऑपरेशन सर्चलाइट का ऑर्डर दिया गया। इस ऑपरेशन में लाखों बांग्लादेशियों की निर्ममता से हत्या की गई। खुनी हत्याकांड के भयानक मंजर हर दिन पूर्वी पाकिस्तान में दिखने लगे। इसके चलते, लाखों की संख्या में पूर्वी पाकिस्तानी भारत में शरण लेने आ गए। 

भारत कैसे हुआ शामिल :

पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के इस संघर्ष में शामिल होना, भारत के लिए हर रूप से जरूरी था। हर दिन बढ़ते शरणार्थियों की संख्या भारत की आंतरिक सुरक्षा और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डाल रही थी। दूसरी ओर देश के सबसे बड़े दुश्मन को दो हिस्सों में बांटकर, भारत के पास रक्षा मोर्चे पर खुद को मजबूत करने का भी यह सबसे श्रेष्ठ मौका था। हालांकि, ऑपरेशन सर्चलाइट के बाद अप्रैल में ही युद्ध छेड़ देना, एक उचित निर्णय नहीं होता। उस समय के आर्मी चीफ सैम मानेकशॉ की सलाह पर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने, युद्ध के लिए दिसंबर तक रुकने का निर्णय लिया। इस दौरान रॉ चीफ आर. एन. काओ के नेतृत्व में भारत की इंटेलिजेंस एजेंसी ने अपना मोर्चा संभाला और युद्ध के सबसे बड़े हथियार सूचना से जंग शुरू कर दी।

भारतीय थल सेना, नौसेना और वायुसेना को भी युद्ध के लिए तैयार किया जाने लगा। ऐसी तैयारियां की गई कि खुद पाकिस्तान सामने से युद्ध की शुरुआत करे, और वही हुआ। 3 दिसंबर को पाकिस्तान की तरफ से भारत पर एयर स्ट्राइक की गई, जिसके बाद भारत ने युद्ध की घोषणा कर दी। पूर्वी और पाकिस्तानी दोनों मोर्चों पर भारत-पाकिस्तान में जंग का ऐलान हो गया। पूर्वी मोर्चों पर भारत को से मुक्तिबाहिनी का भी समर्थन था।

विश्व का सबसे बड़ा सरेंडर :

इस युद्ध के लिए कई महीनों में थल सेना, वायुसेना, और नौसेना की तैयारियां इतनी मजबूत थी, कि हर मोर्चों पर भारत को लगातार जीत मिलती गई। हालत यह हो गई, कि महज 13 दिन की लड़ाई के बाद ही पाकिस्तान को युद्ध जीतना तो दूर, भागने का भी कोई रास्ता नजर आना बंद हो गया। भारतीय वायु सेना और नौसेना के शिकंजे ने पूर्वी पाकिस्तान में फंसे पाकिस्तानी सैनिकों के पास, वापस लौटने का कोई रास्ता नहीं छोड़ा था। ऐसे में सिवाय आत्म समर्पण के पाकिस्तान के पास और कोई चारा नहीं था।

इसके बाद, 16 दिसंबर को पूर्वी मोर्चे पर युद्ध समाप्त हुआ। पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी ने 93,000 सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण किया। भारत के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा ने आत्मसमर्पण के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कराए। इसके बाद आखिरकार एक स्वतंत्र बांग्लादेश का निर्माण हुआ और भारत के लिए पूर्व दिशा से दुश्मन का खतरा हमेशा के लिए खत्म हो गया।

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