Bhopal : उर्दू-फारसी में आज भी कैद है खाकी की कलम

आजादी के 75 साल बाद भी पुलिस विभाग में उर्दूं-फारसी शब्दों का प्रयोग बहुतायत में हो रहा है। यह तब है, जबकि शासन ने पुलिस विभाग को कामकाज में हिंदी के प्रयोग का आदेश दिया है।
उर्दू-फारसी में आज भी कैद खाकी की कलम
उर्दू-फारसी में आज भी कैद खाकी की कलमसांकेतिक चित्र

भोपाल, मध्यप्रदेश। पुलिस गश्त में मामूर थी। तभी जरिए मुखबिर मालूम हुआ कि एक नफ र अभियुक्त मयमाल मौजूद है। इस पर हमरान सिपाहियान संग दबिश देकर उसे पकड़ा गया है। उसका हश्म हुलिया जैल है। फर्द (लिखित सूचना) की इस भाषा से थानों में पुलिसकर्मी रोजाना दो-चार होते हैं, लेकिन आम लोगों के लिए इसे समझना टेढ़ी खीर है। हाल यह है कि आजादी के 75 साल बाद भी पुलिस विभाग में उर्दूं-फारसी शब्दों का प्रयोग बहुतायत में हो रहा है। यह तब है जबकि शासन ने पुलिस विभाग को कामकाज में हिंदी के प्रयोग का आदेश दिया है।

1861 में जब पुलिस एक्ट बना तो अंग्रेजों ने इसकी आधिकारिक भाषा हिंदुस्तानी बनाई। यह हिंदी, उर्दू, फारसी शब्दों का मिश्रण थी। उस दौरान हिंदी के साथ ही उर्दू, फारसी और अरबी शब्दों के जानकार भी थे और इसी को देखते हुए इसे अपनाया गया। हालांकि आजादी के 75 साल बाद भी पुलिस को इस मिश्रित भाषा से आजादी नहीं मिल सकी है और इसके चलते पुलिस विभाग के कामकाज को भी पूरी तरह से हिंदी में नहीं किया जा सका।

नए जवानों को भी परेशानी :

पुलिस विभाग के कामकाज में उर्दू, फारसी, अरबी शब्दों के प्रयोग से आम लोगों को तो परेशानी होती ही है, विभाग में भर्ती होने वाले नए जवानों को भी इसे समझने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। इससे कई बार जनरल डायरी में गलत प्रविष्टि भी कर दी जाती है। जानकारों का कहना है कि सीसीटीएनएस (क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रैकिंग सिस्टम) लागू होने के बाद एफ आईआर में तो अब हिंदी के ही शब्दों का प्रयोग किया जाता है। लेकिन फ र्द और जीडी में अब भी ज्यादातर शब्द उर्दू व फारसी के ही होते हैं।

पुलिस में रोजाना इस्तेमाल होने वाले कुछ शब्द :

  • आला कत्ल - कत्ल में प्रयुक्त हथियार

  • दौराने गश्त - गश्त के दौरान

  • तसहुद - व्यवहार

  • बेजा - गलत

  • साकी नहीं - गवाह का न होना

  • जरायम - अपराध

  • मुनकिर - इंकार

  • जानिब - दिशा

  • बाइस्तवाह - प्रकाश में आया

  • जैल - स्वस्थ

इन शब्दों का होना है इस्तेमाल :

नकबजनी की जगह सेंध, जमानत की जगह प्रतिभूति, वारदात की जगह घटना, सुराग की जगह खोज और हलफ नामा की जगह शपथ पत्र हिंदी शब्द का इस्तेमाल एफ आईआर दर्ज करते समय या कॉपी लिखते समय इस्तेमाल करने के आदेश इसी साल जून में दिए जा चुके हैं। बावजूद इसके इन शब्दों का पूरी तरह से उपयोग नहीं किया जा रहा है।

इनका कहना :

शासन का भी निर्देश है कि हिंदी को बढ़ावा दिया जाए। मौजूदा दौर में पुलिस विभाग में भी ज्यादातर कामकाज हिंदी में ही हो रहा है। मातहतों को समय-समय पर इसके लिए निर्देशित भी किया जाता है।

मकरंद देउस्कर, पुलिस कमिश्नर, भोपाल

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