धरती की कोख में ठूंस दिए बेहिसाब रासायनिक खाद और कीटनाशक
धरती की कोख में ठूंस दिए बेहिसाब रासायनिक खाद और कीटनाशकSocial Media

धरती की कोख में ठूंस दिए बेहिसाब रासायनिक खाद और कीटनाशक

दस साल में 707.42 लाख मीट्रिक टन खाद और 371.75 करोड़ का कीटनाशक। प्रदेश की कृषि भूमि से पोषक तत्व हुए कम, बिगड़ रही खेत और लोगों की सेहत। सीएम की पहल पर जैविक खेती का रकबा बढ़ा, पर अभी मंजिल बहुत दूर।

भोपाल, मध्यप्रदेश। प्रदेश में बीते दस साल में 707.42 लाख मीट्रिक टन खाद और 371.75 करोड़ का कीटनाशक किसानों ने धरती की कोख में ठूंस दिया है। बेहिसाब रसायनिक खाद और कीटनाशक से कृषि भूमि से पोषक तत्व लगातार कम हो रहे हैं और उसकी उर्वरक क्षमता कम हो गई है। किसान और आम नागरिक इस बढ़ते खतरे से अनभिज्ञ बने हुए हैं, समय रहते अगर किसान जैविक या प्राकृतिक कृषि की तरफ नहीं लौंटे तो फिर खेत की मिट्टी और लोगों की सेहत वेंटिलेटर पर पहुंच जाएगी।

अधिक रसायनिक खाद और कीटनाशक के उपयोग से प्रदेश की भूमि से 16 पोषक तत्वों में जरूरी तत्व नत्रजन (नाइट्रोजन) ही कम हो गया है, इसके अलावा फास्फोरस की मात्रा मध्यम आ रही है। वहीं पोटास की मात्रा न कम है न अधिक। मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी की वजह से भूमि की सेहत बिगड़ ही रही वहीं यह खतरनाक जहर सीधे मानव शरीर में पहुंच रहा है। इससे पेट संबंधी कई गंभीर बीमारियां हो रही हैं, जिसमें कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी शामिल है। किसानों ने बीतों सालों में रसायनिक खाद और कीटनाशक के उपयोग से अधिक उत्पादन प्राप्त किया, इस लालच में खेतों में लगातार इसका उपयोग करते जा रहे हैं। अब स्थिति यह हो गई है कि अनाज, सब्जी, दलहन की गुणवत्ता कम हो गई है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की पहल पर प्रदेश के किसानों ने जैविक या प्राकृतिक कृषि का अपनाया तो है लेकिन अभी ऐसे किसानों की संख्या कम हैं। अच्छे संकेत यह है कि बीते सालों में प्रदेश में जैविक कृषि का रकबा बढ़ रहा है।

दस साल में रसायनिक खाद का उपयोग :

  • वर्ष 2011-12 में 69.59 लाख मीट्रिक टन

  • वर्ष 2012 -13 में 68.01 लाख मीट्रिक टन

  • वर्ष 2013-14 में 69.45 लाख मीट्रिक टन

  • वर्ष 2014 -15 में 64.51 लाख मीट्रिक टन

  • वर्ष 2015-16 में 70.96 लाख मीट्रिक टन

  • वर्ष 2016-17 में 64.01 लाख मीट्रिक टन

  • वर्ष 2017-18 में 64.32 लाख मीट्रिक टन

  • वर्ष 2018-19 में 72.95 लाख मीट्रिक टन

  • वर्ष 2019- 20 में 82.54 लाख मीट्रिक टन

  • वर्ष 2020-21 में 80. 27 लाख मीट्रिक टन

371.5 करोड़ रुपए की कीटनाशक :

  • वर्ष 2011-12 में 73.82 करोड़ रुपए

  • वर्ष 2012 -13 में 70.64 करोड़ रुपए

  • वर्ष 2013-14 में 63.93 करोड़ रुपए

  • वर्ष 2014-15 में 31.16 करोड़ रुपए

  • वर्ष 2015-16 में 41.33 करोड़ रुपए

  • वर्ष 2016-17 में 43.55 करोड़ रुपए

  • वर्ष 2017-18 में 17.09 करोड़ रुपए

  • वर्ष 2018-19 में 1.99 करोड़ रुपए

  • वर्ष 2019-20 में 8.70 करोड़ रुपए

  • वर्ष 2020-21 में 19.29 करोड़ रुपए

जैविक कृषि का रकबा बढ़ा :

मध्यप्रदेश क्षेत्रफल की दृष्टि से देश का दूसरा बड़ा राज्य है। इसका भौगोलिक क्षेत्रफल 307.56 लाख हेक्टेयर है, जो देश के कुल भूभाग का 9.38 प्रतिशत है। प्रदेश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 307.56 लाख हेक्टेयर में से लगभग 151.91 लाख हैक्टर ही कृषि योग्य है। इसमें से वर्तमान में लगभग 145 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में खरीफ फसलें और लगभग 119 लाख हेक्टेयर में रबी फसलें लगाई जाती हैं। वर्ष 2017-18 में 11 लाख 56 हजार हेक्टेयर में जैविक कृषि की हो रही थी। वर्ष 2020-21 में बढ़कर 16 लाख 37 हजार हेक्टेयर रकबा से अधिक हो गया है।

जैविक कृषि का रकबा :

वर्ष 2017-18 में 11,56,881 हेक्टेयर

वर्ष 2018-19 में 09,18,303 हेक्टेयर

वर्ष 2019-20 में 11,61,015 हेक्टेयर

वर्ष 2020-21में 16,37,730 हेक्टेयर

मिट्टी की सेहत की करना होगी चिंता : रामवीर सिंह, वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक

रासायनिक खाद और कीटनाशक के लगातार उपयोग से मिट्टी की उर्वरक क्षमता कम हुई है। सभी जगह की जमीन से नाइट्रोजन कम हुआ है। अधिक उत्पादन की लालच में खेत में रासायनिक खाद का इस्तेमाल से धीरे -धीरे उत्पादन कम हो रहा है। बीते वर्षो में सिर्फ अधिक उत्पादन पर ध्यान दिया गया, मिट्टी की सेहत की चिंता नहीं की गई। मौजूदा समय में मिट्टी की सहेत खराब हो रही है, जिसकी वजह से अनाज, दलहन, सब्जी, फल की गुणवत्ता कम हुई है। वहीं कीटनाशक से जमीन और मनाव के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है, कीटनाशक छिड़काव करने कम से कम एक सप्ताह बाद तक सब्जी, फल को नहीं तोड़ऩा चाहिए,लेकिन अब अधिक फायदे के लिए दूसरे दिन ही कीटनाशक छिड़काव वाली सब्जी बाजारों तक पहुंच रही है, इस तरह से कीटनाशक (जहर) सीधे शरीर के भीतर पहुंचकर कई तरह की बीमारियों को जन्म दे रहा है। जैविक कृषि करने से मिट्टी और मानव स्वास्थ्य अच्छा होगा। रसायनिक खाद और कीटनशक के स्थान पर जैविक खाद और कीटनशक का उपयोग किया जाए।

रसायनिक खाद और कीटनाशक से कैंसर का खतरा अधिक : डॉ. बीके चर्तुेवेदी, वरिष्ठ चिकित्सक

रसायनिक खाद और कीटनाशक से मानव शरीर को बहुत नुकसान हो रहा है। पेट संबधी कई तरह की बीमारियां इससे होती है। पेट के विभिन्न प्रकार के कैंसर का बड़ा कारक रासायनिक खाद और कीटनाशक ही है। लोगों को अब सिर्फ जैविक अनाज, सब्जी, फल खाने का प्रयास करना चाहिए।

शरबती गेहूं की चमक हुई कम : जयंत शाह, अनाज व्यापारी

प्रदेश शरबती गेहूं देश-विदेश में मांग अधिक है। शरबती गेहूं की चमक और उसका स्वाद ही उसे अन्य किस्म के गेहूं से अलग करता है, लेकिन कुछ सालों में धीरे-धीरे शरबती गेहूं की चमक कम हुई, इसकी गुणवत्ता में फर्क तो पड़ा है।

जरा समझिए सीएम चौहान क्यों चिंता में :

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान स्वयं किसान है, वह कृषि को बेहतर समझते हैं। उन्हें इस बात का भली-भांति एहसास होने लगा कि अब अगले दस साल में प्रदेश की कृषि भूमि की उर्वरक क्षमता और मानव स्वास्थ्य पर गहरा असर देखने को मिलेगा। यही वजह है कि वे जैविक या प्राकृतिक कृषि करने की अपील करते हैं। उन्होंने अब से लगभग 5-6 साल पहले से ही प्रदेश के किसानों से जैविक कृषि करने का आग्रह करना शुरू कर दिया था। सीएम श्री चौहान ने जैविक कृषि को लेकर कई तरह के फायदे किसानों को सरकार विभागों के मध्यम से प्रदान करवाएं। सीएम की अपील का असर दिखाई भी देना लगा है अब जैविक कृषि का रकबा बढ़ा रहा है और जैविक उत्पाद भी प्रदेश शीर्ष पर है।

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