विद्यालयों में पीएचई की लैब से कराई जाएगी पानी की टेस्टिंग
विद्यालयों में पीएचई की लैब से कराई जाएगी पानी की टेस्टिंगसांकेतिक चित्र

Bhopal : स्कूलों में बच्चों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने सरकार की चिंता सामने आई

भोपाल, मध्यप्रदेश : अब 85 हजार विद्यालयों में पीएचई की लैब से कराई जाएगी पानी की टेस्टिंग। लगातार कीटाणु युक्त पानी पीते बच्चों की बीमारियों को लेकर विभाग हुआ सतर्क।

भोपाल, मध्यप्रदेश। कोरोना का संक्रमण कम होने के बाद स्कूल खोल चुकी राज्य सरकार बच्चों की स्वास्थ्य सुरक्षा को लेकर सतर्क हुई है। शहर या ग्रामीण अंचलों में शाला पहुंचकर बच्चे जिन हैंडपंप या फिर नलों के माध्यम से टंकियों का पानी पी रहे हैं। उसकी लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग की लैब से टेस्टिंग करवाई जाएगी। इसके लिए विभाग द्वारा समस्त जिलों में कलेक्टर को पत्र लिखा गया है।

बता दें कि महामारी का संक्रमण कम होते ही राज्य सरकार स्कूल तो खोल चुकी है, लेकिन बच्चों की स्वास्थ्य सुरक्षा को भी वह चुनौती के रूप में ले रही है। कारण भी है कि स्कूलों में गंदे पानी की शिकायतें अभिभावक लगातार उठा रहे हैं। नतीजतन विभाग ने विद्यालयों में जिन संसाधनों से पेयजल उपलब्ध होता है। उसकी लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग की लैब से टेस्टिंग करवाने का निर्णय लिया है। राज्य शिक्षा केंद्र का कहना है कि पत्र जारी करने के बाद जिलों में शिक्षा अधिकारियों और डीपीसी को यह निर्देश दिए गए कि वह 18 अक्टूबर तक यह काम पूर्ण करवाएं। हर विद्यालय में जिस संसाधन से पानी उपलब्ध हो रहा है। उसका सैंपल पीएचई की लैब में भेजा जाए। ताकि टेस्ट रिपोर्ट आने के बाद यह पता चल सके कि यह पानी पीने योग्य है या नहीं। अधिकारियों का कहना है कि पानी की टेस्टिंग के अलावा विद्यालयों में स्वच्छता व्यवस्था को चाक-चौबंद बनाने के लिए भी निर्देश दिया गया है। विश्व हाथ धुलाई दिवस पर स्वास्थ्य से संबंधित अनेक कार्यक्रम भी विद्यालयों में रखे गए हैं।

प्राइमरी और मिडिल स्कूलों में तकरीबन एक करोड़ बच्चे :

विभाग के आंकड़ों के अनुसार मध्यप्रदेश के 85 हजार मिडिल-प्राइमरी स्कूलों में तकरीबन एक करोड़ बच्चे अध्ययन कर रहे हैं। हालांकि शहरी क्षेत्रों के ज्यादातर विद्यालयों में पाइप लाइन के माध्यम से नलों के द्वारा पानी बच्चे पीते हैं। ज्यादातर विद्यालयों में पानी की टंकी अभी रखी गई हैं। जबकि ग्रामीण क्षेत्रों के अधिकतर स्कूलों में हैंडपंप लगे हुए हैं। जहां से बच्चों को पेयजल उपलब्ध कराया जाता है। अधिकारियों के पास जो रिपोर्ट आई है उसके अनुसार बच्चों को टेस्टिंग के बाद ही पानी पिलाना उचित समझा गया है। क्योंकि अगर पानी की खराबी से बच्चे को अगर कोई बीमारी उपजी तो यह विषय चिंता का कारण बन सकता है। यही कारण है कि पानी की टेस्टिंग कराने के निर्देश दिए गए हैं।

गंदा पानी पीने से हो सकती हैं कई बीमारियां : डॉ. गोस्वामी

पानी की टेस्टिंग को मेडिकल साइंस भी आवश्यक मान रहा है। टीबी चेस्ट स्पेशलिस्ट डॉक्टर डीके गोस्वामी का कहना है कि अगर बच्चा या कोई व्यक्ति कीटाणु युक्त गंदा पानी पीता है तो अनेक प्रकार की बीमारियां उत्पन्न होने का खतरा बनता है। श्री गोस्वामी का कहना है कि गंदा पानी पीने के कारण पेट संबंधी अनेक विकार उत्पन्न होते हैं। इससे लीवर में भी इंफेक्शन होता है और पीलिया रोग हो सकता है। डायरिया टाइफाइड एवं उल्टी जैसी शिकायतें गंदा पानी पीने से होती हैं। इस कारण टेस्टिंग के बाद ही पानी पीना बेहतर है। श्री गोस्वामी का कहना है कि अगर विद्यालयों में बच्चों को टंकियों से पानी पिलाया जाता है तो उसकी हर 15 दिन में सफाई होना चाहिए। इसके लिए फिल्टर लगाया जाना चाहिए ताकि बच्चों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध हो सके।

इनका कहना :

स्कूलों में बच्चों को स्वच्छ और शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए हमने पानी की टेस्टिंग कराने का निर्णय लिया है। इसके लिए समस्त जिला शिक्षा अधिकारियों और डीपीसी को निर्देश जारी कर कहा गया है कि वह पीएचई की लैब से पानी की टेस्टिंग करवाएं। ताकि बच्चों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराया जा सके।

लोकेश जांगिड़, एएमडी, राज्य शिक्षा केंद्र

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