करोड़ों की लागत से तैयार हुए ऑक्सीजन प्लांट खा रहे धूल
करोड़ों की लागत से तैयार हुए ऑक्सीजन प्लांट खा रहे धूलPriyank Vyas - RE

Exclusive : करोड़ों की लागत से तैयार हुए ऑक्सीजन प्लांट खा रहे धूल

इंदौर, मध्यप्रदेश : एक वर्ष पूर्व कोरोना की तीसरी लहर में हुए थे शुरू, अब तक नहीं हुआ इस्तेमाल। हालत यह है कि करोड़ों की लागत से बने यह प्लांट धूल खा रहे हैं।

इंदौर, मध्यप्रदेश। कोरोना की दूसरी लहर में शहर ही नहीं पूरे देश में ऑक्सीजन की कमी के चलते हाहाकर मच गया था। हालत यह हो गई थी कि ऑक्सीजन के लिए लोगों को घंटों लाइन में लगना पड़ रहा था, तो वहीं वायु सेना को ऑक्सीजन लेकर आना पड़ा था। इसके बाद सबक लेते हुए शहर के निजी और सरकारी सभी प्रमुख अस्पतालों में बिना सोचे-समझे ऑक्सीजन प्लांट लगाने का निर्णय ले लिया गया था।

इतना ही नहीं स्वास्थ्य विभाग के पीसी सेठी और हुकुमचंद पॉली क्लीनिक में भी ऑक्सीजन प्लांट स्थापित कर दिए गए थे। इन ऑक्सीजन प्लांट्स को बने हुए करीब एक वर्ष हो चुके हैं, लेकिन आज तक इन दोनों प्लांट्स में से किसी एक का भी इस्तेमाल नहीं किया गया है। हालत यह है कि करोड़ों की लागत से बने यह प्लांट धूल खा रहे हैं।

53 करोड़ की लागत से 48 प्लांट लगाए थे :

दूसरी लहर के बाद और तीसरी लहर की शुरुआत में शहर में करीब 52 करोड़ की लागत से 48 अस्पतालों में ऑक्सीजन प्लांट की स्थापना की गई थी। निजी अस्पतालों को 50 प्रतिशत सब्सिडी दी गई थी। सरकारी अस्पतालों की बात की जाए, तो एमवायएच, सुपर स्पेशलिटी, एमआरटीबी, एमटीएच, हुकुमचंद पॉली क्लीनिक, पीसी सेठी अस्पताल में ऑक्सीजन प्लांट स्थापित किए गए थे। हुकुमचंद पॉली क्लीनिक और पीसी सेठी में तो एक भी कोविड मरीज भर्ती नहीं किया गया था, फिर भी यहां ऑक्सीजन प्लांट बनाने का निर्णय लिया गया था। करीब एक वर्ष पूर्व इन दिनों अस्पतालों में ऑक्सीजन प्लांट स्थापित हो चुके हैं, लेकिन इनका एक बार भी इस्तेमाल नहीं हुआ। इतना ही नहीं जो ट्रॉयल हुआ था, उसमें भी यह फेल हो गए थे। इसके बाद से दोनों प्लांट धूल खा रहे हैं। वहीं एमवायएच को छोड़कर अन्य सरकारी अस्पतालों की भी हालत कमोबेश यही है, क्योंकि इतनी ऑक्सीजन की जरूरत ही नहीं है।

इतना आसान नहीं है मेंटेन करना :

इस संबंध में सरकारी अस्पताल के जिम्मेदारों से चर्चा की गई तो उनका कहना था कि ऑक्सीजन प्लांट लग रहे थे, तभी जानकारी दी गई थी कि ऑक्सीजन प्लांट लगाए जा रहे हैं, लेकिन इनका रख-रखाव इतना आसान नहीं है। पूरी एक तकनीकी टीम इसको ऑपरेट करने के लिए रखना पड़ेगी। निजी कंपनी को ठेका भी दिया गया, तो उसका खर्चा बहुत अधिक आएगा, लेकिन किसी ने नहीं सुना। अब हालत यह है कि एक वर्ष होने के बाद भी इनका कोई इस्तेमाल नहीं हो रहा है, क्योंकि इतनी ऑक्सीजन की जरूरत ही नहीं है। इसी कारण इनका रख-रखाव भी नहीं हो पा रहा है और यह धूल खा रहे हैं।

थोक में खरीदी गई थी ऑक्सीजन कंस्ट्रेंटर मशीन :

इसी प्रकार दूसरी लहर के दौरान लोगों ने ऑक्सीजन कंस्ट्रेंटर मशीन थोक में खरीदी थी। हालत यह हो गई थी कि भाजपा और कांग्रेस के नेताओं ने अपने पदाधिकारियों को लोगों की मदद के लिए यह मशीनें दी थीं और जनसहयोग, चंदा कर थोक में मशीनें खरीदी गई। यह मशीनें भी तब खरीदी गई थीं, जब दूसरी लहर समाप्त हो गई थी और तीसरी लहर में इन मशीनों की जरूरत ही नहीं पड़ी। यही कारण है कि इनमें से भी सैकड़ों मशीनें धूल खा रही हैं। जानकारों का कहना है कि यह रखे-रखे ही खराब हो जाएंगी, क्योंकि इनकी नियमित रूप से सर्विसिंग और देख रेख जरूरी है।

यह कहना है इनका :

पीसी सेठी और हुकुमचंद पॉली क्लीनक में ऑक्सीसन प्लांट इस्तेमाल की जरूरत ही नहीं पड़ी। फिर भी हम इसे चलाते रहते हैं। कल भी दोनों प्लांट को चालू करेंगे।

डॉ. बीएस सैत्या, सीएमएचओ, इंदौर

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