वीर बाल दिवस मनाने की तैयारी
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प्रदेश में वीर बाल दिवस मनाने की तैयारी, दसवें सिख गुरु गोविंद सिंह जी से जुड़ा है कारण

मध्यप्रदेश: एमपी में वीर बाल दिवस को शासकीय स्कूलों में मनाया जाएगा, राज्य के शासकीय स्कूलों में 19 दिसंबर से 24 दिसंबर के बीच किसी एक दिन स्कूल में मनाया जाएगा।

भोपाल, मध्यप्रदेश। मध्यप्रदेश में वीर बाल दिवस को शासकीय स्कूलों में मनाया जाएगा। 26 दिसंबर को देश में दसवें सिख गुरु गोविंद सिंह जी के पुत्रों जोरावर सिंह और फतेह सिंह द्वारा दिए गए बलिदान के रूप में वीर बाल दिवस मनाया जाता है, इसी मौके पर सरकार ने लोक शिक्षण संचालनालय द्वारा आदेश निकाले है कि राज्य के शासकीय स्कूलों में 19 दिसंबर से 24 दिसंबर के बीच किसी एक दिन स्कूल में यह दिवस मनाया जाए।

सरकार ने कहा है कि, बाल दिवस हर बार मनाया जाता है 14 नवंबर को लेकिन इस साल से दसवें गुरु के पुत्रों के बलिदान को याद करते हुए 19 से 24 दिसंबर के बीच किसी एक दिन यह दिवस मनाया जाएगा जिसका लाभ शासकीय स्कूलों के बच्चो को मिलेगा। 25 दिसंबर से मध्य प्रदेश में स्कूलों का शीतकालीन छुट्टियां प्रारंभ होनी हैं, जिसके कारण लोक शिक्षण संचालनालय ने यह आदेश दिए है कि 19 से 24 दिसंबर के बीच किसी एक दिन स्कूलों में वीर बाल दिवस का आयोजन किया जाए।

क्या है चार साहिबजादो का इतिहास?

मुक्तसर की लड़ाई, इस लड़ाई में गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने चारों बेटों को खो दिया। उनके सबसे बड़े दो बेटे, अजीत (18 वर्षीय ), और जुझार (14 वर्षीय ) मुगल योद्धाओं से लड़ते हुए मर गए। उनका निधन 7 दिसंबर 1705 को हुआ था।लड़ाई के दौरान, गुरु के दो सबसे छोटे बेटे ( जोरावर सिंह और फतेह सिंह ) और उनकी दादी (माता गुजरी जी) बाकी सिखों से अलग हो गए। उनके घर के एक पूर्व नौकर ने उन्हें देखा, और सुझाव दिया कि वे उनके साथ उनके गाँव आयें। उन्होंने उसकी मदद के लिए आभार जताया , और उसके साथ चले गए।

हालांकि, नौकर ने कुछ धन के लालच में आकर उनके रहने का स्थान मुगलो को बता दिया। मुगलों ने घर में आकर उन्हें कैद कर लिया और उन्हें एक ठंडी मीनार में कैद कर दिया, जिसमें केवल एक पुआल पड़ी थी। बेटों को उस राज्य के राज्यपाल वजीर खान के पास लाया गया। वज़ीर खान बादशाह औरंगज़ेब के अधीन कार्य करता था। वज़ीर खान ने लड़कों से कहा कि अगर वे इस्लाम में परिवर्तित होते हैं तो वे उन्हें जीवन दान दे देंगे। उन्होंने इनकार कर दिया, तभी वज़ीर खान ने आदेश दिया कि उनके चारों ओर एक ईंट की दीवार लगाई जाए, ताकि वे ईंटों के बीच दबकर अपना दम तोड़ दे। लड़के जल्द ही बेहोश हो गए, और फिर वीरगति को प्राप्त हो गए। वे क्रमशः 9 और 6 साल के थे। 12 दिसंबर, 1705 को उनका निधन हो गया।

सिख इस दिन को बहुत दुःख के साथ याद करते हैं और उन बेटों के प्रति सम्मान रखते हैं जिन्होंने अपने धर्म के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया। फिर उस दिन से लेकर आज तक इन चार साहिबजादो की शहीदी को चार साहिबजादे शहीदी दिवस के उपलक्ष में सिख मंदिर जाते हैं, या घर पर रहते हुए विशेष पूजा पाठ करते हैं, और इन वीरों की याद में गाने गाते हैं।

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