पंचायतों में लगे बिलों की कब होगी जांच
पंचायतों में लगे बिलों की कब होगी जांचसांकेतिक चित्र

Umaria : पंचायतों में लगे बिलों की कब होगी जांच

उमरिया, मध्यप्रदेश : सरपंच-सचिव-वेण्डर ने मिलकर खेला-खेल। नियमों को ताक पर रख खुद को सचिव पहुंचा रहा लाभ। बिलों की हो जांच, भ्रष्टाचार होगा उजागर।
Summary

सरपंच-सचिव व रोजगार सहायक रिश्तेदारों व संबंधियों के नाम फर्में बनाकर मनरेगा व पंच परमेश्वर योजना का पैसा हड़प रहे हैं! जबकि राज्य शासन के प्रावधान के तहत सरपंच-सचिव अपने रिश्तेदारों की सप्लायर फर्मों के नाम भुगतान नहीं कर सकते। लेकिन करकेली जनपद जनपद क्षेत्र में यह कार्य धड़ल्ले से हो रहा है। बावजूद इसके क्षेत्र में स्थानीय प्रशासन इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है।

उमरिया, मध्यप्रदेश। जिले की करकेली जनपद की ग्राम पंचायतों में पदस्थ सचिव एवं रोजगार सहायक जनपद में बैठे अधिकारियों से मैनेजमेंट कर अपने रिश्तेदारों के नाम पर फर्म संचालित कर मलाई छान रहे हैं। कुछ सत्ताधारी के नेता के रिश्तेदार सचिव अन्य पंचायतों में दबाव बनाकर बनाकर मटेरियल सप्लाई के बिलों का नया कारोबार चालू किया है, आरोप हैं कि मेसर्स कुलदीप दुबे नामक फर्म के संचालक नाम से पंचायतों में सप्लाई ली जा रही है, कथित फर्म द्वारा दर्जनों पंचायतों में फर्म रजिस्टर्ड करवाकर लाखों के भुगतान करवाये हैं।

दर्जनों पंचायतों में लगे बिल :

जनपद पंचायत करकेली की ग्राम पंचायत बड़ागांव, रहठा, महुरा, कोहका-82, आमाडोंगरी, मसूरपानी, घुलघुली सहित दर्जनों पंचायतों में शासकीय राशि में जमकर बंदरबांट किया गया है। सूत्रों की मानें तो पंचायत में आरसीसी पुलिया निर्माण, पीसीसी सड़क निर्माण, भवनों के बाउंड्री बाल सहित अन्य योजनाओं में सरपंच, सचिव एवं रोजगार सहायक ने जमकर चांदी काटी है, कोरोना कॉल से पूर्व एवं बाद में हुए आरसीसी पुलिया निर्माण में जमकर पंचायत के कर्ताधर्ताओं के साथ मिलकर फर्म संचालकों ने भी चांदी काटी है, सूत्रों की माने तो जमीनी स्तर पर ज्यादातर निर्माण डस्ट से किया गया है, जो सबसे सस्ता है और बिल एक नम्बर क्वालिटी के साथ रेत का लगाया गया है, मजे की बात तो यह है कि बड़ागांव, रहठा,महुरा, कोहका-82, आमाडोंगरी, मसूरपानी,घुलघुली द्वारा जिन बिलों को पास किया गया है, उनकी जांच हो जाये तो, भ्रष्टाचार से पर्दा उठ सकता है।

वाणिज्य कर विभाग करे जांच :

जनपद पंचायत करकेली की पंचायत में पदस्थ देवेन्द्र द्विवेदी किसी परिचय के मोहताज नहीं है, रिश्तेदारों के सत्ताधारी दल में होने के चलते अधिकारियों पर भी इन्होंने अपनी अच्छी पकड़ बनाई है, चर्चा है कि इनके द्वारा विधायक के नाम का भी सहारा समय-समय पर लिया जाता है, मजे की बात तो यह है कि कुलदीप दुबे की नाम फर्म बनाने से सचिव द्वारा सांठ-गांठ कर मनरेगा एवं पंच-परमेश्वर के तहत कराए गए निर्माण कार्य में हुई सप्लाई का न केवल भुगतान करा लेते हैं, बल्कि जरूरत के मुताबिक सामग्री भी क्रय नहीं करते। संबंधियों द्वारा फर्जी बिल तैयार कराकर शासन को चूना लगाया जा रहा है। वाणि'य कर विभाग सहित आयकर विभाग द्वारा कथित फर्म के क्रय-विक्रय का अवलोकन करे तो, फर्म के जिम्मेदार भी नपते नजर आयेंगे।

कमीशन में बंटे बिल :

जीएसटी लागू होने से पहले दावे किए जा रहे थे कि पंचायतों के यह फर्जीवाड़े जीएसटी लागू होने के बाद खत्म हो जाएंगे, लेकिन यह सिर्फ भ्रम साबित हुआ। जीएसटी के बाद यह फर्जीवाड़े बंद नहीं हुए बल्कि सुरक्षात्मक ठगी हो गई है। पंचायत के सरपंच, सचिव व रोजगार सहायकों ने खुद या परिजनों के नाम से जीएसटी में रजिस्ट्रेशन कराना शुरू कर दिया है। सूत्रों की माने तो, कुलदीप दुबे की फर्म द्वारा पंचायतों में मनमाने दामों में सप्लाई कर सरकार को चूना लगा रहे हैं, खनिज विभाग चाहे तो, कथित फर्म द्वारा दी गई खनिज की सप्लाई सहित रॉयल्टी जांच करे तो, पूरे मामले से पर्दा उठ सकता है।

टैक्स व जीएसटी का जिक्र नहीं :

बीते वर्षाे के दौरान पंचायतों में लगे और भुगतान लिए हुए बिलों पर नजर डाले तो विभिन्न फर्म संचालक ने इस दौरान ईंट, रेत, गिट्टी, मुरूम, दरवाजा, लोहा, कांच, पेन्ट, लकड़ी, मोबाइल, कम्प्यूटर, स्टेशनरी से लेकर हर ऐसी वस्तुओं के बिल पंचायतों को बेचे हैं, जो सरपंच, सचिवों द्वारा मांगे गये। यह अलग बात है कि करोड़ों की बेची गई सामग्री दुकानदार ने कहीं से खरीदी ही नहीं। सिर्फ कमीशन लेकर अपने खातों में फर्जी भुगतान करा लिये साथ ही निर्माण सामग्री की खरीदी हुई बिलो में शासन को मिलने वाली टैक्स व जीएसटी तक के जिक्र तक नहीं किया, यानी लाखो के भुगतान पर टैक्स व जीएसटी बिल में नहीं लिया गया, यहां तक कि बिलो में सरपंच व सचिवों के सील व हस्ताक्षर तक नहीं बहुत से बिल तो ऐसे है, जिन पर सरपंच व सचिव तक के दस्तखत नहीं फिर भी भुगतान हो रहे है, शिकायतकर्ता ने मांग की है कि उक्त फर्म की जांच कर पंचायत में बैठे जिम्मेदारों पर कार्यवाही की जाए।

सत्ताधारी दल का संरक्षण :

ग्राम पंचायत देवरी मजरा में पदस्थ सचिव देवेन्द्र द्विवेदी एवं पिनौरा रोजगार सहायक किशन द्विवेदी द्वारा कुलदीप दुबे नाम फर्म को लाभ पहुंचाने के आरोप लग रहे हैं, सूत्रों की माने तो देवेन्द्र द्विवेदी जिन-जिन पंचायतों में रहे हैं और जिस पंचायत में किशन द्विवेदी पदस्थ हैं, अगर इन पंचायतों की जांच की जाये तो, कथित फर्म सहित अन्य रिश्तेदारों के नाम पर संचालित फर्म के नाम सामने आ सकते हैं, ऐसा नहीं है कि इसकी जानकारी जनपद के जिम्मेदारों को नहीं है, चर्चा है कि कथित सचिव के रिश्तेदार सत्ताधारी दल में रहने के कारण इनके हौसले बुलंद हैं।

यह कह रहा पंचायत अधिनियम :

मध्यप्रदेश पंचायत रा'य एवं ग्राम स्वराज अधिनियम 1993 अंतर्गत पंचायतों व शासकीय सेवकों के द्वारा खुद या अपने किसी सगे रिश्तेदार के नाम पर, खुद के टेबिल या हस्ताक्षर से होकर किये जाने वाले भुगतानों का स्पष्ट उल्लेख किया गया है। मध्यप्रदेश पंचायत रा'य एवं ग्राम स्वराज अधिनियम 1993 के पृष्ठ क्रमांक 189 अंतर्गत अध्याय 8 में पंचायत की स्थापना, बजट तथा लेखे में यह स्पष्टीकरण टीप किया गया है कि उपधारा के प्रयोजन के लिए अभिव्यक्ति का नातेदार जिसका अर्थ पिता, माता, भाई, बहन, पति, पत्नी, पुत्र, पुत्री, ससुर, सास, साला, बहनोई, देवर, साली, भाभी, ननद, देवरी, जेठानी, दामाद या पुत्र वधु के नाम की फर्म के लिए भुगतान करना अधिनियम का उल्लंघन होगा।

क्रय नियमों तक का नहीं दिया ध्यान :

जनपद पंचायत करकेली की पंचायतों में बैठे हर अधिकारी, कर्मचारी और पंचायत के सरपंच-सचिवों ने भ्रष्टाचार के हमाम में ऐसी डुबकी लगाई की अब वो इससे निकलने को तैयार ही नहीं है। विभिन्न पंचायतों में जांच हो तो, लाखों के भ्रष्टाचार होंगे उजागर होंगे। ग्राम पंचायत पिनौरा में वार्ड नंबर 01 के रहने वाले कुलदीप दुबे नाम वेण्डर द्वारा दर्जनों पंचायतों में बिल लगाये गये हैं, जिनमें क्रय नियमों का ध्यान न रखते हुए लाखों के बिल लगाये गये हैं।

इनका कहना है :

मामला आपके द्वारा संज्ञान में लाया गया है, जांच कराई जायेगी, अगर किसी प्रकार की कोई अनियमितता पाई गई तो, दोषियों के विरूद्ध कार्यवाही की जाएगी।

के.के. रैकवार, मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जनपद पंचायत, करकेली

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