महाराष्ट्र बिल्डर की मनमानी ‘मैजिक हिल्स’ कॉलोनी खंडहर
महाराष्ट्र बिल्डर की मनमानी ‘मैजिक हिल्स’ कॉलोनी खंडहरSocial Media

महाराष्ट्र बिल्डर की मनमानी ,15 वर्ष बाद भी ‘मैजिक हिल्स’ कॉलोनी खंडहर

महाराष्ट्र में बने ‘मैजिक हिल्स’ बंगलों के मालिकों की एक टीम ने राज्य की एकनाथ शिंदे सरकार से केडिया बिल्डर्स की मनमानी पर लगाम लगाते हुए इस कॉलोनी के खरीदारों को तत्काल राहत देने का आग्रह किया है।

नई दिल्ली / मुम्बई। महाराष्ट्र के रायगड जिले में खालापुर के अंबेवली विलेज की पहाड़ियों पर बने ‘मैजिक हिल्स’ बंगलों के मालिकों की एक टीम ने राज्य की एकनाथ शिंदे सरकार से केडिया बिल्डर्स की मनमानी पर लगाम लगाते हुए 15 वर्ष से खंडहर बने इस कॉलोनी के खरीदारों को तत्काल राहत देने का आग्रह किया है। पिछले करीब 15 वर्ष से महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संगठन में कई वरिष्ठ पदों पर कार्य करने वाली अधिकारी एवं टीम की एक सदस्य ने केडिया बिल्डर्स के गार्नेट कंस्ट्रक्शसं कंपनी के तहत बने ‘मैजिक हिल्स ’ की शिकायत में ‘यूनीवार्ता’ को सोमवार को बताया कि लुभावने सपने दिखाकर सरे आम खरीदारों को लूटा गया है।

अधिकारी ने आरोप लगाया,“ यह बेहद चौंकाने वाली बात है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के कई बिल्डरों की मनमानी पर नकेल कसे जाने के बाद भी केडिया जैसे बिल्डरों का खरिदारों के प्रति घोर ‘अत्याचार’ जारी है। इस परियोजना को प्रवासी भारतीयों (एनआरआई ) को लक्ष्य कर लाया गया था। वर्ष 2007 में मंदिरा बेदी जैसी हस्तियों से परियोजना का बेहद ही लुभावना और आकर्षक विज्ञापन करवाकर प्रवासी भारतीयों की मोटी रकम फंसाई गयी।कॉलोनी की सीधी पहुंच मुंबई-पुणे राष्ट्रीय राजमार्ग से करने का सबसे बड़ा वादा था जो अधर में लटका हुआ है। निर्माण की गुणवत्ता ऐसी है कि जो छह-सात परिवार वहां रह रहे है उसे हर साल सीलन और सीवेज का सामना करना पड़ता है जिसे ठीक कराने के लिए पैसे लगाने पड़ते हैं। ऐसे में उन वीरान पड़े बंगलों की सूरत का अंदाज लगाया जा सकता है जहां कांटेदार झाड़ियां उगी हैं। घनी जंगली झाड़ियों के कारण गर्मी के मौसम में कई बार भीषण आग भी लग चुकी है और इसकी चपेट में कई बंगलें भी आ चुके है। यह हालांकि संयोग की बात है कि कोई हताहत नहीं हुआ।”

उन्होंने कहा,“ चूंकि बिल्डर ने प्राथमिक सुविधाएं तक मुहैया नहीं करायी है इसलिए लोग अपने बंगले का उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। लोगों ने ‘सुंदर आशियाने के पेमेंट के लिए डॉलर और पाउंड्स खर्च किये थे। बंगले में लगे हमारे पैसे तो ‘जीरो’ हो गये लेकिन हमारा बिल्डर मालामाल हो गया और हमारे प्रोजेक्ट को बीच में ही छोड़कर अन्य स्थानों पर काम कर रहा है। आलम यह है कि खरीदारों का दुख -दर्द दूर करना तो बहुत दूर की बात है ,वे हमसे बात तक नहीं करते है। हमारी उन तक पहुंच ही नहीं है। हमारी फोन कॉल्स नहीं ली जाती हैं और न ही वे कभी हमसे मिलते हैं। कई बार लोगों ने ईमेल करके उनसे अपना दुखड़ा सुनाने की कोशिश की लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।”

बिल्डर की ठगी से आहत कॉलोनी में एक बंगले के मालिक, पेशे से सीनियर इंजीनियर एवं टीम के सदस्य ने कहा,“ चूंकि हमने मोटे पैसे लगाये हैं और हमारी इच्छा भी थी कि इस लुभावने ‘मैजिक’ का कुछ आनंद लिया जाये, अत: हमने यहां रहना शुरू कर दिया है। बिडंबना यह है कि ‘आनंद ही आनंद’ की क्या बात करें, यहां तो हमें प्राथमिक सुविधाएं तक मुहैया नहीं हैं। लोग यहां आने पर दिन में भी डरते हैं तो रात का अंदाजा लगाया जा सकता है। हमारे पड़ोस के कई बंगले खंडर पड़े हैं ,जिन्हें ऐसी स्थिति में ‘भूतहा’ भी कहा जा सकता है। कॉलोनी की चारदीवारी तक नहीं बनी है। स्ट्रीट लाइट नहीं होने से रात में यहां घुप्प अंधेरा फैला रहता है। सड़कें नहीं बनी हैं और जो थोड़ी बहुत बनी हैं उनपर बड़े-बड़े कंकड़ पड़े हैं कि आप संभल कर हर कदम नहीं बढ़ायें तो सीधे सिर के बल गिरेंगे। करीब 400 बंगलों में से 150 को ही हैंडओवर किया गया है। वीरान पड़े बंगलों में झाडियों का आलम यह है कि देखने में डरावना तो लगते ही हैं , यदाकदा सर्प महाराज के दर्शन भी होते हैं। रात-दिन असुरक्षा की भावना सताती है।”

टीम के एक अन्य सदस्य ने कहा,“ चूंकि मैं प्रकृति प्रेमी हूं, इसलिए बिल्डर की चौंकाचौंध भरे वादों में आ गयी और अपना बंगला बुक कर लिया। सुरक्षा ,चिकित्सा, रोड कनेक्टिविटी जैसी तमाम चीजें नदारद हैं ,ऐसे में स्वीमिंग पुल और क्लब की सुविधा हमें प्राप्त हो उसकी तो बस कल्पना ही कर सकते हैं। बिल्डर अपने वादा से मुकर गया और हम एक‘अभिशप्त’ स्थान में रहने को विवश हैं। बिल्डर ने अपनी प्रोफेशन ड्यूटी को ताक पर तो रख ही दिया, इंसानियत नाम की चीज भी नहीं बची है उसमें। हमें हर असुविधा में छोड़कर अब उन्होंने दूसरी परियोजनाओं पर काम शुरू कर दिया है।एक परियोजना ‘पनवेल हिल्स’ तो हमारी नाक के सामने शुरू है। ”

टीम के सदस्यों ने इस प्रतिष्ठित समाचार एजेंसी के माध्यम से शिंदे सरकार से आग्रह करते हुए कहा,“ मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे जी से अपील है कि वह ऐसा कदम उठायें जिससे यह बिल्डर या तो बकायदा ब्याज के साथ हमारी रकम लौटाए या एक समय सीमा में अपने सारे वादों को पूरा करने का कानूनी दस्तावेज सौंपे और उसे करके दिखाये। हमारे पास सुहावने ब्रॉशर हैं जिसमें प्राथमिक से लेकर सभी आवश्यक सुविधाओं को उपलब्ध कराने की बात कही गयी है। ‘मैजिक हिल्स’ ऐसा नासूर बना गया है जसे ‘हील’करना आवश्यक ही नहीं अनिवार्य हो गया है। विदेशों में रह रहे अब कई लोग अब रिटायर हो गये हैं। अन्य स्थान नहीं होने के कारण उन्हें विकट स्थिति में इस कॉलोनी में रहना पड़ रहा है।ऐसे लोग हर पल घोर अनिश्चतिता और असुरक्षा के घेरे में कैद हैं।”मैजिक हिल्स में कमोबेश सभी बंगलों के मालिक स्वयं को ठगा महसूस करते हैं और असुविधाओं तथा बिल्डर की ‘प्रताड़नाओं’ के प्रति समान भाव रखते हैं।

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