मथुरा : श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले की सुनवाई आठ मार्च को

मथुरा के अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश देवकांत शुक्ला ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि के स्वामित्व को लेकर 2 फरवरी को दायर किये गए वाद को स्वीकार करते हुए मामले की सुनवाई के लिए 8 मार्च की तारीख निर्धारित की है।
श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले की सुनवाई आठ मार्च को
श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले की सुनवाई आठ मार्च कोSocial Media

मथुरा, उत्तर प्रदेश। मथुरा के अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश देवकांत शुक्ला ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि के स्वामित्व को लेकर दो फरवरी को दायर किये गए वाद को स्वीकार करते हुए मामले की सुनवाई के लिए आठ मार्च की तारीख निर्धारित की है। डीजीसी सिविल संजय गौड़ ने बताया कि विद्वान न्यायाधीश ने अपने फैसले में वाद को पोषणीय बताते हुए लिखा है कि "वाद पोषणीय है इसलिए स्वीकार किया जाता है,विपक्षीगण को नोटिस जारी हों।" उन्होंने बताया कि अदालत ने प्रतिवाद दायर करने के लिए आठ मार्च की तारीख निर्धारित की है।

वादी के अधिवक्ता रमा शंकर भरद्वाज ने बताया कि पुराने केशवदेव मन्दिर के सेवायत पवन कुमार शास्त्री की ओर से पहली बार एक ऐसा दावा अदालत में पेश किया गया था, जिसमें मन्दिर के सेवायत ने अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए मन्दिर के पक्ष में दावा पेश किया था तथा जिसे अब स्वीकार कर लिया गया है।

उधर प्राचीन केशवदेव मन्दिर के सेवायत की ओर से प्रस्तुत किये गए वाद के संबंध में उनके अधिवक्ता रमा शंकर भारद्वाज ने बताया कि वाद को ठाकुर केशवदेव जी महराज विराजमान मन्दिर कटरा केशवदेव मथुरा बांगर तहसील व जिला मथुरा द्वारा सेवायत पवन कुमार शास्त्री मल्लपुरा मथुरा ने सचिव इंतजामिया कमेटी शाही मस्जिद ईदगाह मथुरा, अध्यक्ष यूपी सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड लखनऊ, मैनेजिंग ट्रस्टी श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट मथुरा एवं सचिव श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान कटरा केशव देव मथुरा के खिलाफ प्रस्तुत किया गया है तथा आज विद्वान न्यायाधीश ने चारो विपक्षी पार्टियों से जवाब दाखिल करने को कहा है।

उन्होंने बताया कि वाद में कहा गया है कि सेवायत पवनकुमार शास्त्री के पूर्वज चूंकि लम्बे समय से पुराने केशवदेव मन्दिर के सेवायत के रूप में कार्य करते चले आ रहे हैं इसलिए 13 दशमलव 37 एकड़ जमीन के जिस भाग पर शाही मस्जिद ईदगाह बनी हुई है। उसका स्वामित्व उन्हें दिलाया जाय क्योंकि सेवायत के नाते पूरी जमीन की देखभाल का अधिकार उन्हें मिला हुआ है। साथ ही मस्जिद एवं सुन्नी वक्फ बोर्ड के पदाधिकारियों से एक नियत समय में मंदिर की जमीन के एक भाग में बनी शाही मस्जिद ईदगाह को हटाने के लिए आदेश देने का अनुरोध करते हुए कहा है कि यदि उस नियत समय में मस्जिद को नहीं हटाया जाता तो अदालत से यह कार्य अंजाम कराने का अनुरोध किया गया है।

वाद में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान द्वारा किये गए समझौते को चुनौती देते हुए कहा गया है कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ने ठा0 केशवदेव महराज की जिस 13 दशमलव 37 एकड़ भूमि के एक भाग में बनी शाही मस्जिद ईदगाह से 1968 में समझौता किया उसका उसे इसलिए अधिकार न था क्योंकि उसका स्वामित्व उसके पास न था और ना ही उससे समझौता करने को कहा गया था। आरोप है कि यह समझौता न्याय के सिद्धान्तों के विपरीत व निजी लाभवश किया गया है तथा इसे शून्य या बेअसर होना बताया गया है। वाद में यह भी कहा गया है कि 1967 मे श्रीकृष्ण जन्मस्थान के प्रबंधन के लिए जन्मस्थान सेवा संघ का गठन किया गया था तथा बाद में इसका नाम श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान कर दिया गया।

इस वाद के अलावा अन्य जो तीन वाद दायर किये गए है, उनमें श्रीकृष्ण जन्मभूमि के स्वामित्व को लेकर अधिवक्ता महेन्द्र प्रताप सिंह द्वारा पांच लोगों के पक्ष मे दायर वाद ही अभी तक और स्वीकार किया गया है तथा इस वाद की अगली सुनवाई 19 फरवरी को होगी जब कि श्रीकृष्ण विराजमान की गोपी होने का दावा करनेवाली लखनऊ निवासी रंजना अग्निहोत्री के अधिवक्ता हरिशंकर जैन द्वारा दायर वाद की सुनवाई 22 मार्च को एवं श्रीकृष्ण का वंशज होने का दावा करनेवाले हिन्दू आर्मी चीफ मनीष यादव के अधिवक्ता शैलेन्द्र सिंह द्वारा दायर वाद की अगली सुनवाई 19 फरवरी को होगी।

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