दिल्ली हाईकोर्ट में PMO का हलफनामा
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दिल्ली हाईकोर्ट में PMO का हलफनामा- PM केयर्स फंड सरकारी फंड नहीं

दिल्ली हाई कोर्ट में PMO ने हलफनामा दाखिल कर कहा, पीएम केयर्स फंड सरकारी फंड नहीं है, इसीलिए पीएम केयर्स फंड आरटीआई के तहत सार्वजनिक प्राधिकार की परिभाषा में नहीं आता है।

दिल्‍ली, भारत। देश के किसी भी राज्य की आर्थिक जरूरत या काई कोई आपात स्थिति के दौरान ‘‘आपात स्थितियों में प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और राहत कोष’’ यानी ‘‘पीएम केयर्स फंड’’ के तहत मदद मुहैया कराई जाती है। ऐसे में आज यह दिल्ली हाईकोर्ट को प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) की तरफ से यह बड़ी जानकारी दी है।

पीएम केयर्स फंड सरकारी फंड नहीं है :

दरअसल, प्रधानमंत्री केयर फंड की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट में PMO अवर सचिव द्वारा एक हलफनामा दाखिल किया गया, जिसमें प्रधानमंत्री केयर ट्रस्ट ने कहा है कि, ''पीएम केयर्स फंड सरकारी फंड नहीं है, इसीलिए पीएम केयर्स फंड आरटीआई के तहत सार्वजनिक प्राधिकार की परिभाषा में नहीं आता है।'' PM केयर्स फंड के बार में दिल्ली हाईकोर्ट को प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) ने बताया गया है कि, ''पीएम केयर्स फंड भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत "स्टेट" नहीं है और सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत "पब्लिक अथॉरिटी" के रूप में इसका गठन नहीं किया गया है।''

पीएम केयर्स फंड को सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट के रूप में स्थापित किया गया और यह भारत के संविधान या संसद या किसी राज्य विधानमंडल द्वारा या उसके तहत नहीं बनाया गया है। पीएम केयर्स फंड पर न तो केंद्र सरकार का नियंत्रण है और न ही किसी राज्य सरकार का। पीएम केयर्स फंड स्वेच्छा से दान करने वाले लोगों और संस्थाओं से धन लेता है। यह किसी भी बजटीय प्रावधान या लोक उपक्रम के बैलेंस शीट से आने वाले धन को स्वीकार नहीं करता है।

इतना ही नहीं PMO के हलफनामे में आगे यह भी बताया गया है कि, पीएम केयर्स फंड केवल व्यक्तियों और संस्थानों द्वारा स्वैच्छिक दान स्वीकार करता है और इसमें सरकार के बजटीय स्रोतों या सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की बैलेंस शीट से आने वाले योगदान को स्वीकार नहीं किया जाता। पीएम केयर्स फंड/ट्रस्ट में किए गए योगदान को आयकर अधिनियम, 1961 के तहत छूट दी गई है, लेकिन यह अपने आप में इस निष्कर्ष को उचित नहीं ठहराएगा कि यह एक "सार्वजनिक प्राधिकरण" है। फंड को सार्वजनिक प्राधिकरण नहीं कहा जा सकता है। जिस कारण से इसे बनाया गया था वह "विशुद्ध रूप से धर्मार्थ" है और यह कि न तो धन का उपयोग किसी सरकारी परियोजना के लिए किया जाता है और न ही ट्रस्ट किसी भी सरकारी नीतियों द्वारा शासित होता है।

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