संविधान दिवस समारोह में बोले राष्‍ट्रपति कोविंद- भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है

संविधान दिवस समारोह में राष्ट्रपति कोविंद ने अपने संबोधन में कहा- संविधान दिवस के दिन, आप सबके साथ यहां उपस्थित होकर मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है।
संविधान दिवस समारोह में बोले राष्‍ट्रपति कोविंद
संविधान दिवस समारोह में बोले राष्‍ट्रपति कोविंद Rajexpress

दिल्‍ली, भारत। आज 26 नवबंर को संविधान दिवस है। इस अवसर पर पार्लियामेंट के सेंट्रल हॉल में संविधान दिवस समारोह हुआ, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला शामिल हुए और समारोह को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने संबोधित भी किया।

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है :

संविधान दिवस समारोह में राष्ट्रपति कोविंद ने अपने संबोधन में कहा- संविधान दिवस के दिन, आप सबके साथ यहां उपस्थित होकर मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है। भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। मुझे विश्वास है कि, आप सब भी इस अवसर पर हमारे महान लोकतंत्र के प्रति गौरव का अनुभव कर रहे हैं। इसी सेंट्रल हॉल में 72 वर्ष पहले हमारे संविधान निर्माताओं ने स्वाधीन भारत के उज्ज्वल भविष्य के दस्तावेज को यानि हमारे संविधान को अंगीकार किया था तथा भारत की जनता के लिए आत्मार्पित किया था।

आगे उन्‍होंने यह भी बताया- लगभग सात दशक की अल्प अवधि में ही, भारत के लोगों ने लोकतान्त्रिक विकास की एक ऐसी अद्भुत गाथा लिख दी है, जिसने समूची दुनिया को विस्मित कर दिया है। मैं यह मानता हूं कि, भारत की यह विकास यात्रा हमारे संविधान के बल पर ही आगे बढ़ती रही है। हमारे संविधान में वे सभी उदात्त आदर्श समाहित हैं जिनके लिए विश्व के लोग भारत की ओर सम्मान और आशा भरी दृष्टि से देखते रहे हैं। "हम भारत के लोग", इन शब्दों से आरम्भ होने वाले हमारे संविधान से यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत का संविधान लोगों की आकांक्षाओं की सामूहिक अभिव्यक्ति है।

  • संविधान सभा के सदस्यों ने जन प्रतिनिधि की हैसियत से संविधान के प्रत्येक प्रावधान पर चर्चा और बहस की। वे साधारण लोग नहीं थे। उनमें से अनेक सदस्य कानून के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके थे, अनेक सदस्य अपने-अपने क्षेत्र के प्रतिष्ठित विद्वान थे और कुछ तो दार्शनिक भी थे।

  • लेकिन संविधान के निर्माण में वे सभी संविधान सभा के लिए निर्वाचित जन प्रतिनिधि के रूप में ही भाग ले रहे थे। उनके शब्दों के पीछे उनके सत्कार्यों और नैतिकता का आभा मंडल था। उनके चरित्र की महानता का परिचय हमारे स्वाधीनता संग्राम में उनकी भागीदारी के दौरान लोगों को मिल चुका था।

  • मुझे प्रसन्नता है कि, आज संविधान सभा की चर्चाओं तथा संविधान के calligraphed version और updated version के digital संस्करण जारी कर दिए गए हैं। इस प्रकार, टेक्नॉलॉजी की सहायता से, ये सभी अमूल्य दस्तावेज़ सबके लिए सुलभ हो गए हैं।

  • हमारे देश में न केवल महिलाओं को आरम्भ से ही मताधिकार प्रदान किया गया,, बल्कि कई महिलाएं संविधान सभा की सदस्य थीं और उन्होंने संविधान के निर्माण में अभूतपूर्व योगदान दिया।

  • पश्चिम के कुछ विद्वान यह कहते थे कि भारत में वयस्क मताधिकार की व्यवस्था विफल हो जाएगी। परन्तु यह प्रयोग न केवल सफल रहा, अपितु समय के साथ और मजबूत हुआ है। यहां तक कि अन्य लोकतंत्रों ने भी इससे बहुत कुछ सीखा है।

  • हमारी आज़ादी के समय, राष्ट्र के समक्ष उपस्थित चुनौतियों को यदि ध्यान में रखा जाए, तो ‘भारतीय लोकतंत्र’ को निस्संदेह मानव इतिहास की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक माना जा सकता है। इस उपलब्धि के लिए, हम संविधान निर्माताओं की दूरदर्शिता और जन-गण-मन की बुद्धिमत्ता को नमन करते है।

  • ग्राम-सभा, विधान-सभा और संसद के निर्वाचित प्रतिनिधियों की केवल एक ही प्राथमिकता होनी चाहिए। वह प्राथमिकता है - अपने क्षेत्र के सभी लोगों के कल्याण के लिए और राष्ट्रहित में कार्य करना।

  • विचारधारा में मतभेद हो सकते हैं, लेकिन कोई भी मतभेद इतना बड़ा नहीं होना चाहिए कि वह जन सेवा के वास्तविक उद्देश्य में बाधा बने।

  • सत्ता-पक्ष और प्रतिपक्ष के सदस्यों में प्रतिस्पर्धा होना स्वाभाविक है – लेकिन यह प्रतिस्पर्धा बेहतर प्रतिनिधि बनने और जन-कल्याण के लिए बेहतर काम करने की होनी चाहिए। तभी इसे स्वस्थ प्रतिस्पर्धा माना जाएगा। संसद में प्रतिस्पर्धा को प्रतिद्वंद्विता नहीं समझा जाना चाहिए।

  • हम सब लोग यह मानते हैं कि, हमारी संसद 'लोकतंत्र का मंदिर' है। अतः हर सांसद की यह जिम्मेदारी बन जाती है कि वे लोकतंत्र के इस मंदिर में श्रद्धा की उसी भावना के साथ आचरण करें जिसके साथ वे अपने पूजा-गृहों और इबादत-गाहों में करते हैं।

  • प्रतिपक्ष वास्तव में, लोकतंत्र का सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व है। सच तो यह है कि, प्रभावी प्रतिपक्ष के बिना लोकतंत्र निष्प्रभावी हो जाता है। सरकार और प्रतिपक्ष, अपने मतभेदों के बावजूद, नागरिकों के सर्वोत्तम हितों के लिए मिलकर काम करते रहें, यही अपेक्षा की जाती है।

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