राजनाथ सिंह ने 'प्रोजेक्ट वीरगाथा' विजेताओं के सम्मान समारोह को किया संबोधित
दिल्ली, भारत। केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने आज नई दिल्ली में 'प्रोजेक्ट वीरगाथा' विजेताओं के सम्मान समारोह को संबोधित किया।
इस दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने संबोधन में कहा- मुझे न केवल बड़ी खुशी हुई, बल्कि सुखद आश्चर्य हुआ आप लोगों की creativity देखकर। क्या गजब के भाव दिखे मुझे आप लोगों की paintings, poems, essays और videos में। मुझे आजादी की लड़ाई से लेकर आज तक की यात्रा दिखाई दी आपकी entries में। इस यात्रा में, कितने वीरों ने अपना सर्वस्व बलिदान देते हुए भारत मां के आन, बान और शान की रक्षा की। इसमें सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, खुदीराम बोस जैसे आजादी के दीवानों की झलक मिली। मेजर सोमनाथ शर्मा, सूबेदार संजय कुमार, बाबा हरभजन सिंह और अब्दुल हमीद के शौर्य की झलक मिली।
इसी तरह कारगिल के शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा, मनोज पांडे से लेकर मुंबई हमले में शहीद मेजर संदीप उन्नीकृष्णन और अभी हाल के गलवान stand-off में अपना बलिदान देने वाले कर्नल संतोष बाबू की झलक देखने को मिली।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह
हमारे देश की इन जितनी भी महान विभूतियों के नाम मैंने अपनी अभी गिनाए, वे देश के किसी एक हिस्से, या भाषा या मज़हब से नहीं थे। इनमें से कोई उत्तर से था, तो कोई दक्षिण से। कोई पूरब से था, तो कोई पश्चिम से।
इसी तरह भाषा, पंथ, और रीति-रिवाज से भी सभी अलग-अलग थे। पर एक चीज जो सब में common थी मेरे प्यारे बच्चों, वह यह, कि उनका अपना प्यारा देश एक था - भारत। एक सूत्र से वह सभी बंधे हुए थे, और वह सूत्र था देशभक्ति का।
हम अपना इतिहास उठाकर देखें, तो पाएंगे कि जिन्होंने इतिहास के पन्नों पर अपना नाम दर्ज किया है, उसके पीछे उनके बचपन के ही संस्कार रहे हैं।चाहें वीर शिवाजी हों, सरदार भगत सिंह हों, या खुदीराम बोस या अशफाक उल्ला खां हों, सभी के बचपन के संस्कार ही उनके व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं।
सरदार भगत सिंह के बारे में हमने पढ़ा है, कि वे खेत में बंदूक बोने का प्रयास कर रहे थे। उनके चाचा अजित सिंह ने पूछा, कि यह तुम क्या कर रहे हो। तो भगत सिंह जवाब दिया, कि मैं बंदूक बो रहा हूं। इससे खूब सारी बंदूकें पैदा होंगी। अंग्रेजों को देश से भगाना है, उसमें काम आएंगी।
आप लोगों ने भारत के पूर्व प्रधानमंत्री, धरती के लाल, श्री लाल बहादुर शास्त्री के बचपन की भी घटना सुनी होगी। संसाधनों के अभाव में उनको स्कूल जाने के लिए भी नदी पार करनी पड़ती थी। यह भी वीरता का ही एक पर्याय है।
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