राजनाथ सिंह ने भारतीय वायु सेना के राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को किया संबोधित

भारतीय वायुसेना कॉन्क्लेव के उद्घाटन में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा- 1971 का युद्ध इतिहास के उन कुछेक चुनिंदा युद्धों में से एक है, जो न जमीन के लिए लड़ा गया।
राजनाथ सिंह ने भारतीय वायु सेना के राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को किया संबोधित
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दिल्‍ली, भारत। केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बेंगलुरु के येलहंका में भारतीय वायु सेना के कॉन्क्लेव का उद्घाटन किया एवं राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया।

भारतीय वायुसेना कनक्लेव के उद्घाटन में केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा- आज Indian Air Force द्वारा 'स्वर्णिम विजय वर्ष' के उपलक्ष्य में आयोजित, तीन दिवसीय conclave में अपनी बात रखने के लिए, आप सभी के बीच उपस्थित होने पर मुझे बेहद खुशी हो रही है। अपनी बात शुरू करने से पहले, मैं उन सभी soldiers, sailors और Air warriors के शौर्य और पराक्रम को नमन करता हूं, उनके परिजनों को नमन करता हूँ, जिनकी वजह से 1971 के war में हमारी जीत सुनिश्चित हुई। इस conclave की थीम 'Birth of a Nation: Congruence of Politico-Military Thoughts and Goals’। स्वर्णिम विजय वर्ष के अवसर पर सबसे उपयुक्त theme है। क्योंकि यह तीनों सेनाओं और सरकार के बीच synergy और co-operation ही था, जिसने इतने बड़े अभियान में हमारे देश की सफलता सुनिश्चित की।

1971 का युद्ध इतिहास के उन कुछेक चुनिंदा युद्धों में से एक है :

राजनाथ सिंह ने बताया- 1971 का युद्ध इतिहास के उन कुछेक चुनिंदा युद्धों में से एक है, जो न जमीन के लिए लड़ा गया, न किसी संसाधन पर हक जमाने के लिए, न किसी तरह की सत्ता हासिल करने के लिए। इस युद्ध के पीछे जो मुख्य उद्देश्य था, वह था 'मानवता' और 'लोकतंत्र' की गरिमा की सुरक्षा। हमारे राष्ट्र का सर इस बात के लिए हमेशा गर्व से ऊंचा रहेगा, कि जब-जब भी जरूरत पड़ी है, यह सत्य, न्याय और मानवता के पक्ष में हमेशा खड़ा रहा है। 1971 के संग्राम का भी यही आधार रहा था, और यह सैन्य और राजनीति का समन्वय ही था जिसने इस उद्देश्य में हमारी सफलता तय की।

यह दोनों का congruence ही था, कि तत्कालीन leadership ने military leadership पर पूरा भरोसा करके, उन्हें किसी भी प्रकार की कार्रवाई की पूरी छूट दी, और हमारी military leadership ने अपनी परंपरा के अनुरूप, देशवासियों का भरोसा पूरी तरह कायम रखा।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह

राजनाथ सिंह ने आगे यह भी कहा, ''इस war में कहने के लिए तो east और west दो main front थे, पर वास्तव में अनेक ऐसे मोर्चे थे जिनका हमको ध्यान रखना था और जो politico-military synergy के बिना संभव नहीं था। चौथा Northern sector से किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप को रोकना था, और इन सब के साथ-साथ World Community में भारत की उस साख (credit) को बरकरार रखना था, जिसके तहत भारत हमेशा शांति, न्याय और मानवता का पक्षधर रहा है। एक ओर हमें 'मुक्ति वाहिनी' को support करना था, दूसरी ओर पूर्वी पाकिस्तान से आए लाखों की संख्या में refugees को देखना था, तीसरी ओर पाकिस्तान द्वारा IB अथवा ‘Ceasefire line’, जिसे आज हम ‘Line of Control’ के नाम से जानते हैं, पर किसी भी तरह के आक्रामक रवैये को रोकना था।''

राजनाथ सिंह के संबोधन की बातें-

  • आप सब इस बात से अवगत होंगे, कि इस campaign को कैसे post-monsoon period तक स्थगित किया गया, ताकि पूर्वी पाकिस्तान की नदियों में बाढ़ की संभावना कम रहे, और साथ ही China से जुड़े Northern sector के passes बर्फ से ढँक जाएँ।

  • वैसे तो मार्च-अप्रैल 1971 तक war की परिस्थितियाँ बन चुकी थीं, पर इन सब के लिए हमें एक अच्छा खासा समय चाहिए था, और सरकार ने बड़ी सूझ-बूझ और patience के साथ हमारी सेनाओं को वह समय उपलब्ध कराया।

  • इस कदम से एक ऐसा framework तैयार हुआ, जिसने अंत तक आते-आते हमारे विरोधियों, ख़ासकर पड़ोसी विरोधियों को बिल्कुल neutral कर दिया और हमारी राह की काफ़ी मुश्किलें दूर होती गईं।

  • इस दौरान भारत सरकार का दुनिया के बड़े देशों से हाथ मिलाने का प्रयास, और सोवियत संघ के साथ friendship treaty भी बड़ा अहम कदम साबित हुआ। दुनिया के कई देशों ने जब भारत का साथ देने से सीधा इनकार कर दिया, ऐसे में रूस का हमारा साथ देना हमारे मनोबल, और diplomacy की बड़ी उपलब्धि थी।

  • हमारे देश के politico-military thoughts के congruence ने एशिया में एक नए राष्ट्र को जन्म दिया, शोषण और अन्याय को पराजित कर एक बार फिर यह साबित किया, कि यतः धर्मस्ततो जय: 'यानी जहाँ धर्म होता है, वहीं विजय होती है।’

  • कहने का मतलब, कि 3 दिसंबर 1971 को जब conflict शुरू हुआ, हम politically, diplomatically और militarily पूरी तरह तैयार थे, और इसका परिणाम क्या हुआ, आज हम सब ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया उस से वाकिफ़ है।

  • क्या फ़र्क पड़ता है कि eastern command के General officer in Command, Lt. Gen. जगजीत सिंह अरोड़ा सिख थे। और, क्या फ़र्क पड़ता है कि ढाका में जाकर जनरल नियाजी से surrender के लिए negotiate करने वाले Maj. Gen. Jacob एक Jew थे।

  • क्या फ़र्क पड़ता है कि war की पूरी कमान जिन्होंने संभाली, जनरल मानेकशा एक पारसी थे। क्या फ़र्क पड़ता है कि उस समय हमारी Air Force के chief पी.सी. लाल एक हिंदू थे। क्या फ़र्क पड़ता है कि northern sector में तैनात General officer in Command Air Marshal लतीफ़ एक मुस्लिम थे।

  • फ़र्क इस बात से पड़ता है साथियों, कि इन सबका संघर्ष एक सबसे ऊंचे धर्म के लिए था और वह था मानवता का धर्म। ढाका में 16 दिसंबर 1971 के ‘Instrument of Surrender’ पर signing के साथ ही, अनगिनत बंगाली बहनों और भाइयों पर किए जा रहे भयानक अत्याचारों का अंत हो गया।

  • इन महज़ 14 दिनों में पाकिस्तान ने, अपनी एक तिहाई Army, आधी Navy और एक चौथाई Air-force खो दी थी। साथियों, यह war कई मायनों में historic साबित हुआ। Scholars और historians ने इसे आगे चलकर 'Just war' का एक classic example करार दिया।

  • परिणाम यह हुआ कि 14 दिनों तक चला यह युद्ध, हमारे देश की military history, ख़ासकर हमारी armed forces के स्वर्णिम अध्याय में से एक साबित हुआ। Second world war के बाद दुनिया ने largest military surrender देखा, जिसमें 93,000 से अधिक सैनिकों ने एक साथ surrender किया।

  • हमारी सेनाओं द्वारा प्रस्तुत भारत की ethical और morality का इससे अच्छा उदाहरण और क्या हो सकता था, कि हमारी सेनाएँ ढाका पर पूरी विजय सुनिश्चित होने के बावजूद वहाँ किसी प्रकार का political control impose किए बिना, उन्हें उनकी सत्ता सौंपकर वापस आ गईं।

  • आज जब बदलते समय में, बदलते war-fare के अनुसार हमारी तीनों सेनाओं के बीच jointness, और Integration को बढ़ावा देने की बात की जा रही है, मैं समझता हूं 1971 का war इसका एक shining example है। इस war ने हमें एक साथ मिलकर सोचने, plan करने, train करने और fight करने का महत्व बताया।

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