बुजुर्गों के साथ शर्मनाक 'हिंसा'

दिल्ली : बुजुर्गों के साथ शर्मनाक हिंसा हो रही हैं दक्षिणी दिल्ली की एक संभ्रांत कॉलोनी में रह रहे एक 91वर्षीय बुजुर्ग की जिस तरह उनके नौकर ने गला दबा कर हत्या कर दी।
बुजुर्गों के साथ शर्मनाक 'हिंसा'
बुजुर्गों के साथ शर्मनाक 'हिंसा'Priyanka Yadav - RE

राज एक्सप्रेस। दक्षिणी दिल्ली की एक संभ्रांत कॉलोनी में रह रहे एक 91 वर्षीय बुजुर्ग की जिस तरह उनके नौकर ने गला दबा कर हत्या कर दी और फिर लाश को फ्रिज में डाल कर ठिकाने लगाने का प्रयास किया, वह न सिर्फ राजधानी में बढ़ते अपराध, बल्कि शहरों में रह रहे बुजुर्गो की असुरक्षा को भी रेखांकित करता है। यह बुजुर्ग दंपति ग्रेटर कैलाश के एक मकान में किराए पर रह रहा था। उनके घरेलू सहायक ने दोनों को रात के भोजन में कोई नशीली दवा दे दी और बेहोश होने के बाद पति की गला दबा कर हत्या कर दी। बुजुर्ग दंपति का एक बेटा ऑस्ट्रेलिया में रहता है, जबकि दूसरा बेटा इसी शहर में अपना कारोबार करता और माता-पिता से अलग रहता है।

महानगरों में यह विडंबना नई नहीं है कि, बहुत सारे बुजुर्ग अपनी संतानों की उपेक्षा का शिकार हैं। इस वजह से कई लोग वृद्धाश्रमों में रहने को मजबूर हैं, तो कई घरेलू सहायकों के सहारे अपनी जिंदगी बसर करते हैं। जिन बच्चों को मां-बाप पढ़ा-लिखा कर योग्य बनाते हैं, वही बुढ़ापे में उन्हें अपने हाल पर छोड़ देते हैं, संवेदना का इस तरह कुंद होते जाना बड़ी चिंता का विषय है। ऐसे ही उपेक्षित लोगों में से कुछ अपने लोभी सहायकों की साजिशों का शिकार हो जाते हैं।दिल्ली में बुजुर्गो की सुरक्षा का सवाल पुराना है। इस तरह वृद्धों की हत्या के अनेक उदाहरण हैं। कई मामलों में उनके रिश्तेदार ही संपत्ति आदि हड़पने की मंशा से उनकी हत्या कर देते हैं। कई बार लूट की वारदात भी हो चुकी हैं।

घरेलू सहायक भी घर का सामान लूटने के मकसद से अपने दोस्तों के साथ मिल कर ऐसा कर देते हैं। इन्हीं घटनाओं के मद्देनजर पुलिस ने संभ्रांत इलाकों में अलग से गश्त शुरू की थी। पड़ोसी निगरानी योजना चलाई थी। अकेले रह रहे बुजुर्गो के घरों में आपात घंटी की व्यवस्था की गई थी, जिसे बुजुर्ग दबाएं तो सीधे थाने में सूचना पहुंचे। अब तो जगह-जगह कैमरे यानी CCTV लगाए गए हैं। मोबाइल फोनों में ऐसे ऐप्प हैं, जिनके इस्तेमाल से महिलाएं और बुजुर्ग आपातकाल में सीधे पुलिस थाने को सूचना भेज सकते हैं। घरेलू सहायकों की पहचान दर्ज कराने का नियम भी है। फिर भी बुजुर्गों की सुरक्षा की कोई गारंटी सुनिश्चित नहीं कराई जा सकी है। ग्रेटर कैलाश इलाके में हुई ताजा वारदात इसका एक उदाहरण है।

महानगरों में युवाओं में बढ़ती हिंसक प्रवृत्ति पुलिस और समाज के लिए चिंता का विषय है। इसकी कुछ वजहें साफ हैं। संचार माध्यमों पर अपराध की घटनाओं को कुछ अधिक जगह मिलने लगी है, फिर सोशल मीडिया के आने से आपराधिक घटनाओं के नाट्य रूपांतरण खूब उपलब्ध होने लगे हैं। महानगरों में सुख-सुविधा वाली और ऐशो-आराम की जिंदगी जीने की ख्वाहिश युवाओं में बहुत तेजी से बढ़ी है। वे आसानी से धन अर्जित करने की तरकीबें सोचते रहते हैं। ऐसे में वे लूटपाट और हिंसा तक का रास्ता अख्तियार कर लेते हैं।

आसानी से धन अर्जित करने की योजनाएं बनाने में संचार माध्यमों पर उपलब्ध आपराधिक घटनाओं के नाटकीय रूपांतर उनकी मदद करते हैं। बुजुर्ग चूंकि अशक्त होते हैं, इसलिए उन्हें निशाना बनाना आसान होता है। ग्रेटर कैलाश के घरेलू सहायक की भी आसानी से धन अर्जित करने की लालसा को इन्हीं आपराधिक घटनाओं की प्रस्तुतियों ने पंख दिए होंगे। महानगरों में बुजुर्गो की हिफाजत पर अभी और गंभीरता से सोचने की दरकार है। बुजुर्गो के साथ इस तरह के हादसे इसीलिए सामने आते हैं, क्योंकि उनके बच्चों में उनके प्रति विरक्ति आ गई है। बुजुर्गो के लिए आज बच्चों के पास समय ही नहीं है।

इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि जिन माता-पिता ने कितने कष्ट उठा कर और कितने सपने पाल कर बच्चों को जन्म दिया होता है, कई बार उन्हें उनसे ही उपेक्षा और दु:ख मिलता है। इसमें कोई शक नहीं है कि इस तरह के दु:ख किसी भी माता-पिता को दुनिया के दूसरे तमाम दुखों से ज्यादा गहरा दर्द देते हैं। लेकिन कभी उम्र और वक्त की मार तो कभी भावनाओं के बंधन से उपजी लाचारियों की वजह से उम्रदराज लोगों के सामने अपने दु:ख को अपने ही भीतर दबा लेने के सिवाय और विकल्प नहीं होता। यह जटिल स्थिति तब और बढ़ जाती है जब उन्हें अपने हक में मौजूद कानूनी प्रावधानों की जानकारी नहीं होती या उनके प्रति वे जागरूक नहीं होते।

पिछले दिनों केंद्र सरकार ने अपने बुजुर्ग माता-पिता का खयाल नहीं रखने एवं उनका परित्याग करने या उनसे र्दुव्‍यवहार करने वालों के लिए बने कानूनों को और सख्त करने का प्रस्ताव किया है। इसके तहत अगर कोई व्यक्ति अपने बुजुर्ग माता-पिता को उनके हाल पर छोड़ देता है या उनके साथ बेरहमी करता है तो उसे अब छह महीने तक की जेल की सजा हो सकती है। कानून में एक अहम बदलाव यह है कि इसमें अब तक जहां माता-पिता की सिर्फ अपनी संतान और नाती-पोते आते हैं, वहीं अब दत्तक संतान या सौतेले बच्चे, दामाद और बहू आदि को भी इस दायरे में माना जाएगा।

किसी भी देश या राज्य की यह जिम्मेदारी है कि वह जीवन चक्र की सहज प्रक्रिया की वजह से बुजुर्गो को न सिर्फ उम्र की वजह से उपजी असुविधाओं के मद्देनजर, बल्कि एक नागरिक के तौर पर भी जरूरी मदद मुहैया कराए, इसके लिए बाकायदा कानूनी प्रावधान करे। इसमें एक जरूरी व्यवस्था यह करने की जरूरत है कि, परिवार और समाज में उपेक्षा की मार झेलने वाले तमाम बुजुर्गो के बच्चों की जिम्मेदारी तय की जाए। अगर वे जिम्मेदारी से भागते हैं तो इसे अपराध घोषित किया जाए। क्यों बुजुर्गों के दु:ख को कम करने के लिए राजनीतिक हलकों में समय-समय पर मांग उठती रही है और पहले भी कुछ प्रावधान किए गए हैं।

जैसे, परिवार के बीच वृद्धावस्था में पहुंच चुके लोगों की उपेक्षा और यहां तक कि, मारपीट और घर से निकाल दिए जाने जैसी घटनाओं में बढ़ोत्तरी के मद्देनजर ही 2007 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने ‘माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण और कल्याण कानून’ बनाया था। लेकिन समाज में बुजुर्गों के बीच जागरूकता की कमी की वजह से इसके असर का दायरा सीमित रहा। हाल ही में बिहार सरकार ने एक अहम फैसला लिया है कि, माता-पिता की सेवा नहीं करने और उन पर अत्याचार करने वाली संतानों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी और उन्हें जेल भेजा जाएगा।

अब अगर बुजुर्ग माता-पिता का ख्याल रखने के मकसद से सरकार ने भी इस मसले पर पहले के कानूनी प्रावधानों को और सख्त करने का फैसला लिया है तो निश्चित रूप से यह स्वागतयोग्य है। हालांकि यह अपने आप में एक दु:खद बात है कि बुजुर्ग अवस्था में पहुंच चुके माता-पिता की सुरक्षा और संरक्षण तय करने के लिए किसी कानून का सहारा लेना पड़े, लेकिन जब एक सामाजिक और स्वाभाविक जिम्मेदारी के तहत उनकी संतान ऐसा नहीं करती हैं तो उन्हें कानूनन इसके लिए बाध्य करने के सिवा कोई विकल्प नहीं होता है। जब तक ऐसा नहीं होगा, तब तक ग्रेटर कैलाश क्षेत्र के जैसी घटना यदा-कदा हमें सुनने को मिलती ही रहेंगी।

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