आपदा संबंधी झूठी खबर के भुगतने होंगे दुष्परिणाम

सोशल मीडिया में यूज़र व्यक्तिगत या सामूहिक तौर पर कोविड 19 से जुड़े तथ्यों, समंकों का परस्पर आदान-प्रदान कर सकते हैं। बशर्ते यह संदेश और सूचनाएं भ्रामक और झूठी न हों।
भ्रामक खबरों के सहभागी होने से बचें, पूरी पुष्टि के बाद ही संदेश-खबरें जारी करें।
भ्रामक खबरों के सहभागी होने से बचें, पूरी पुष्टि के बाद ही संदेश-खबरें जारी करें।Social Media

हाइलाइट्स :

  • COVID-2019 के बारे में क्या है कानून?

  • झूठी खबरों से सोशल मीडिया यूजर्स असमंजस में

  • आपदा संबंधी क्या हैं नियम-कायदे? जानिये हमारे साथ

राज एक्सप्रेस। दुनिया इतिहास की बड़ी प्राकृतिक आपदा का सामना कर रही है। पुरानी त्रासदियों के मुकाबले यह संकट संचार माध्यमों की बहुलता की वजह से और ज्यादा गंभीर हो गया है। इसका कारण आपदा के बारे में प्रकाशित, प्रसारित, प्रचारित की जा रही वह झूठी खबरें हैं, जिनसे जनमानस के बीच असमंजस की स्थिति पैदा हो रही है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जो अहम निर्देश दिये हैं इनके बारे में जानें विस्तार से।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा? :

सनद रहे, पिछले महीने मंगलवार 31 मार्च को अलख आलोक श्रीवास्तव बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा के बाद शहरों में काम करने वाले मजदूरों का घरों के लिये पलायन, झूठी खबरों के कारण शुरू हुआ। इन झूठी खबरों में उल्लेख था कि नोवल कोरोना वायरस डिजीज 2019 के कारण एहतियातन लागू लॉकडाउन भारत में आगामी 3 महीने तक जारी रहेगा।

पीठ ने कहा :

"मीडिया (प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक या सोशल) से यह उम्मीद की जाती है कि वो जिम्मेदारी से कार्य करे। साथ ही वो यह सुनिश्चित करेगी कि दहशत का माहौल पैदा करने वाली खबरें, लोगों तक न पहुंचें।"

केंद्र की पीआईएल :

गौरतलब है इससे पहले केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल (पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन) में हलफनामा दायर करते हुए कहा गया था कि, कोई भी मीडिया COVID-19 से जुड़ी सूचनाओं-खबरों को सरकार से तथ्यों की जांच कराए बगैर जारी न करें, इस संबंध में अदालत निर्देश जारी करे। बेंच ने उस दलील पर भी ध्यान दिया, जिसमें कहा गया कि सोशल मीडिया सहित सभी माध्यमों पर भारत सरकार का डेली बुलेटिन जारी हो ताकि लोगों का संदेह दूर हो सके।

धारा 54 का उल्लेख :

झूठी खबरों को फैलाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 54 का भी अपने आदेश में उल्लेख किया। आपको ज्ञात हो डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट की इस धारा में किसी आपदा, उसकी गंभीरता अथवा आपदा के परिणाम से जुड़ी झूठी सूचना या चेतावनी संबंधी खबरों के प्रकाशन, प्रसारण, वितरण करने पर संबंधित दोषी व्यक्ति के लिए सजा का प्रावधान किया गया है। मामले में दोष सिद्ध होने पर संबंधित को एक साल के कारावास अथवा जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।

समझें धारा 54 को :

सवाल उठता है यदि, कोई व्यक्ति या संस्था आपदा संबधी ऐसी झूठी खबरों के प्रसार में लिप्त पाई जाती है, जिससे लोगों में भय, असमंजस, आतंक का भाव पैदा होता है तो उसे दंडित करने की प्रक्रिया क्या होगी। इस बारे में जानिये हमारे साथ विस्तार से।

झूठी खबर से खतरा क्यों?

मीडिया की आचार संहिता का मूल ही सत्य और जनहितकारी खबरों का प्रकाशन-प्रसारण है। आपदा से जुड़ी सार्वजनिक खबरों को जारी करने के मामले में तो और अधिक सतर्कता बरतने कहा जाता है। बहुसंख्यक लोगों को प्रभावित करने वाली झूठी खबरों के गंभीर परिणाम देश और समाज को सामूहिक रूप से भुगतने पड़ सकते हैं। राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय आपदाकाल में झूठी खबरों को जारी करने से आबादी के बड़े वर्ग पर संकट पैदा हो सकता है।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी :

अलख आलोक श्रीवास्तव केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि झूठी खबरों से उपजा आतंक लोगों की मनोदेशा को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है। पीठ ने कहा कि "हमें दहशतजदा लोगों को दहशत से उबारने की जरूरत है।" कोर्ट ने माना कि सोशल मीडिया में गलत सूचनाओं/फेक न्यूज का प्रसार और कोविड-19 संबंधी गलत सूचना-समंक साझा करने का चलन चिंताजनक है।

आपको ज्ञात हो विगत माह 20 मार्च को भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने सोशल नेटवर्क प्रबंधन को प्राथमिकता के आधार पर भ्रामक और झूठी सामग्री को निष्क्रिय कर हटाने के संबंध में फौरन कार्रवाई के निर्देश दिए थे। साथ ही सोशल मीडिया पर झूठी और भ्रामक सामग्रियों को सर्कुलेट करने के क्या परिणाम होंगे इस बारे में मशविरा भी जारी किया गया था

झूठी चेतावनी पर दंड :

आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 54में झूठी चेतावनी को दंडनीय माना गया है। इसमें उल्लेखित है कि आपदा के बारे में झूठी और भ्रामक खबरों को सर्कुलेट करना सिद्ध होने पर संबंधित व्यक्ति या संस्था के जिम्मेदार को एक साल कारावास या जुर्माने के साथ दंडित किया जा सकता है।

इसे ऐसे समझा जा सकता है कि; यदि कोई मौजूदा आपदा के बारे में यह झूठी और भ्रामक खबर फैलाये कि महामारी से फलां शहर में बड़ी संख्या में लोगों की मौत हो गई या फिर देश में राशन का संकट है जो कि सरासर झूठ है तो संबंधित पर आरोप सिद्ध होने पर उपरोक्त धारा के तहत कार्रवाई की जा सकती है।

सोशल मीडिया पर झूठी खबरें :

पिछले दिनों सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर एक मैसेज बहुत तेजी से वायरल हुआ जिसमें कोरोना संबंधी किसी भी जानकारी के बारे में पोस्ट जारी करना या उसे शेयर करने को दंडनीय अपराध बताया गया।

इस मैसेज में दर्ज था- “साथियों, आज रात्रि 12 बजे से डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट पूरे देश में लागू होगा। जिसके मुताबिक सरकारी विभाग के अलावा किसी भी नागरिक को कोरोना संबंधित कोई भी जानकारी को सोशल मीडिया में अपडेट, शेयर व पोस्ट करना दंडनीय अपराध है। अतः आप सभी से अनुरोध है कि कोरोना संबंधी किसी भी प्रकार का संदेश व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से जारी न करें।”

इसके अलावा तमाम कई और संदेशों में प्राधिकरण से विशेष इजाजत के बाद ही संदेशों को जारी करने की सलाह के साथ ही कुछ मामलों में ग्रुप एडमिन को हिरासत में लेने के झूठे संदेशों का प्रसार किया गया।

किसी तरह की सच्चाई नहीं :

आपको सनद रहे सोशल मीडिया पर जारी इन संदेशों की तह में जाने पर पता चला है कि इन संदेशों में किसी तरह की सच्चाई नहीं है। अलबत्ता इतना जरूर तय है कि सोशल मीडिया में यूज़र व्यक्तिगत या सामूहिक तौर पर कोविड 19 से जुड़े तथ्यों, समंकों का परस्पर आदान-प्रदान कर सकते हैं। बशर्ते यह संदेश और सूचनाएं भ्रामक और झूठी न हों।

बेशकीमती सलाह :

आप भी नोवल कोरोना वायरस डिजीज से जुड़ी किसी खबर, संदेश को दूसरों तक पहुंचाने के पहले पुष्टि कर लें कि खबर या संदेश झूठा या भ्रामक तो नहीं है। क्योंकि महामारी बन चुके कोविड 19 के बारे में भ्रामक संदेश से बहुसंख्या में जनजीवन प्रभावित हो सकता है।

कोविड-19 संक्रमण और झूठी खबरों के प्रचार-प्रसार से बचें इसमें ही आपका, समाज और देश का कल्याण निहित है। मतलब कोरोना वायरस संक्रमण से बचने के लिए फेस मास्क लगाएं जबकि झूठी खबरों से बचने के लिए मोबाइल पर ताला जड़ लें।

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