Karnataka Election 2023
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Karnataka Election 2023: क्या मतदान से पहले ही भाजपा की हार हो गई सुनिश्चित?

Karnataka Election 2023: क्या भाजपा ने मतदान से पहले ही हार मान ली है और अगर ऐसा है तो क्यों? चलिए जानते है कुछ ऐसे कारण...

राज एक्सप्रेस। कर्नाटक में मतदान का समय जितनी तीव्र गति से पास आते जा रहा है, उतनी ही तेज़ी से भाजपा की चुनाव जीतने की उम्मीदें भी समाप्त होती हुई नजर आ रही है। पार्टी के बड़े और कद्दावर नेता, पार्टी को बीच मझधार में छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम रहे है। भारतीय जनता पार्टी की छवि दिन प्रति दिन अलग-अलग कारणों की वजह से धूमिल होती हुई दिखाई पड़ रही है जिसे अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) का मैजिक भी बचा नही पा रहा है। यह सब घटनाएं कोई हालही में होने वाली नही है, इससे पहले जनवरी–फरवरी माह में भी एक खबर सामने आई थी जिसमे बताया गया था कि भाजपा के 500 से ज्यादा कार्यकर्ताओं ने भाजपा छोड़ कांग्रेस (Congress) में शामिल हो गए थे। भाजपा की यह दशा देख उत्तर में बैठे भाजपा के समर्थक और अन्य आम जन के मन में यह सवाल आ रहा है कि क्या भाजपा ने मतदान से पहले ही हार मान ली है और अगर ऐसा है तो क्यों? चलिए जानते है कुछ ऐसे कारण:

लिंगायत समाज की नाराज़गी:

भाजपा लगभग दो दशकों से लिंगायत (Lingayat) समुदाय समर्थन का फायदा हर चुनाव में उठा रही थी लेकिन चुनाव से पहले लिंगायत समाज उनसे खफा नजर आ रहा है। भाजपा ने अपने उत्तर कर्नाटक के दो प्रमुख लिंगायत नेता पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार ( Jagdish Shettar) और पूर्व उप मुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी (Laxman Savadi) को भी खो दिया है। भाजपा, पंचमसाली लिंगायत समुदाय (Panchamasali Lingayat Community) की आरक्षण मांग को संभालने में भी सफल नहीं रही थी। बताया जा रहा है की राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के लिए लिंगायत समाज से सबसे बड़े नेता बी.एस येदियुरप्पा (BS Yeddyurappa) का सक्रिय राजनीति से संन्यास लेना भाजपा के खिलाफ लिंगायत विरोध का कारण बना है।

2018 बॉम्बे-कर्नाटक क्षेत्र (Bombay-Karnataka Region) में मजबूत प्रदर्शन के साथ वापसी करने वाली भाजपा को अब इस क्षेत्र से भी झटका मिल सकता है। विशेष रूप से बेलगावी, हुबली-धारवाड़, बागलकोट, विजयपुरा और हावेरी जिलों में भाजपा अपनी मौजूदा सीटों पर कमजोर है। भाजपा छोड़ कांग्रेस में जाने वाले जगदीश शेट्टार इस क्षेत्र की हुबली–धारवाड़ विधानसभा सीट (Hubbali-Dharwad Legislative Assembly Seat) से लगातार 6 बार से भाजपा विधायक थे। यही नहीं अथानी विधानसभा सीट (Athani Legislative Assembly seat) से भाजपा को 2008 और 2013 के चुनाव में जीत दिलाने वाले और पूर्व मुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी ने भी भाजपा छोड़ पार्टी को झटका दे दिया है। ऐसे में भाजपा के पास बस अब एक ही बड़ा लिंगायत बचा है जो की खुद मुख्यमंत्री बोम्मई (CM Bommai) है।

स्थानीय नेताओं से होता है दक्षिण भारत की जनता का खास जुड़ाव :

दक्षिण भारत की जनता उत्तर की जनता से भिन्न होती है। दक्षिण भारत में जनता का जुड़ाव स्थानीय नेताओं से ज्यादा होता है जो उनके लिए सालों से काम करते हुए आ रहे है, लेकिन भाजपा की राजनीति आज के समय में दिल्ली से की जाती हैं। राज्य में हो रहे चुनाव की रणनीति में भी दिल्ली के बड़े नेता जैसे पीएम मोदी और अमित शाह (Amit Shah) का पलड़ा भारी रहता है ना की स्थानीय नेताओं का।

कर्नाटक की जनता इस बात से खफा है कि कर्नाटक के चुनाव में भाजपा का चेहरा इस बार भी प्रधानमंत्री मोदी का क्यों है? कर्नाटक की मीडिया खबरों के अनुसार कर्नाटक की जनता को कर्नाटक की राजनीति में दिल्ली के नेताओं का दखल पसंद नहीं आ रहा है। जनता की मुख्यमंत्री बोम्मई से नाराजगी और भाजपा का विरोध का सबसे बड़ा कारण भाजपा का उनके बड़े स्थानीय नेताओं को नज़रअंदाज़ कर नए और दिल्ली के करीबी नेताओं का लाना है। कर्नाटक के चुनाव में पार्टी के बड़े नेता जैसे येदियुरप्पा और इश्वरप्पा का चुनाव से पहले अचानक सक्रिय राजनीति से संन्यास लेना भी भाजपा को कर्नाटक की जनता के शक के घेरे में ला खड़ा करता है।

उम्मीदवार सूची पर हुआ विवाद :

कर्नाटक राज्य की 224 सीटों पर भाजपा ने जैसे ही अपने उम्मीदवारों की लिस्ट को जारी किया वैसे ही कुछ नामों को लेकर विरोध शुरू हो गया था। भाजपा ने इस बार गुजरात और हिमाचल की तरह पुराने चेहरों को हटाकर, 52 नए चेहरों को मौका दिया, लेकिन अपने कुछ वर्तमान विधायकों की टिकट भी काट दी। भाजपा ने अपने 16 से ज्यादा सिटिंग विधायको की टिकट काटकर पार्टी के भीतर ही विरोधी लहर को शुरू कर दिया था। उम्मीदवार सूची के आने से पहले ही कुछ नेताओं को यह भनक लग गई थी कि उन्हें या उनके करीबियों को टिकट नहीं दिया जाएगा जिसके बाद उन्होंने कांग्रेस में शामिल होना ठीक समझा था।

सूत्रों के अनुसार पार्टी में रहकर भी जिन लोगों के टिकट काटे गए वे भाजपा से बगावत कर सकते है। यही नहीं, पार्टी छोड़कर जाने वाले नेताओं ने संघठन से पार्टी के महासचिव बने बीएल संतोष (BL Santosh) पर भी आरोप लगाए है कि उन्होंने पार्टी के प्रारंपरिक प्रक्रिया को बदला है। पार्टी छोड़ रहे नेताओं ने यह भी बताया कि कर्नाटक भाजपा की कमान पहली बार अब किसी एक नेता के हाथ में आ चुकी है और उन्होंने वर्तमान विधायकों के खिलाफ मिस-इनफार्मेशन अभियान (Mis-information Campaign) भी चलाया था जिसमे उन्होंने अपने ही लोगों से बड़े नेताओं तक यह सूचना पहुचाई की उन्हें हाई कमान ने टिकट देने से मना कर दिया है। बाघी नेताओं का यह भी कहना है कि संतोष ने सिर्फ अपने वफादार लोगों को टिकट दिया है।

भ्रष्टाचार के आरोप:

भाजपा जो आम तौर पर भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बेबाकी से कांग्रेस और अन्य पार्टियों पर निशाना साधती है वह अपनी पार्टी से भ्रष्ट विधायकों को निलंबित करने में विफल रही। इससे जनता के मन में यह संदेह उठा है कि प्रधानमंत्री द्वारा इतने दावों के बावजूद कर्नाटक में भ्रष्टाचार का एक बड़ा कवर-अप चल रहा है। कर्नाटक राज्य ठेकेदार संघ (KSCA) द्वारा बोम्मई सरकार के खिलाफ पहला भ्रष्टाचार आरोप लगाया था, जिसमे उन्होंने प्रधान मंत्री को एक शिकायत पत्र लिखा कि अनुबंधों और बिलों की निकासी के लिए 40 प्रतिशत कमीशन (40% Commission Scam) की मांग सरकार में बैठे नेताओं ने की है। निष्पक्ष जांच का आदेश देने के बजाय, संघ के अध्यक्ष डी केम्पन्ना (D Kempanna) और अन्य पदाधिकारियों को मानहानि के आरोप में आधी रात को गिरफ्तार कर लिया गया।

एक प्रमुख लिंगायत संत डिंगलेश्वर स्वामीजी (Saint Dingleswara Swamiji) ने बताया कि सरकारी अधिकारी धार्मिक संस्थानों को धन जारी करने के लिए 30 प्रतिशत की कटौती की मांग कर रहे थे। एक भाजपा कार्यकर्ता और ठेकेदार ने आत्महत्या कर ली और अपने पीछे एक नोट छोड़ा, जिसमें उसने तत्कालीन ग्रामीण विकास और पंचायत राज मंत्री के.एस ईश्वरप्पा (K. S. Eshwarappa) पर उनके द्वारा किए गए नागरिक कार्यों के भुगतान को जारी करने के लिए 40 प्रतिशत कमीशन की मांग करने का आरोप लगाया गया था। ईश्वरप्पा को बाद में बरी कर दिया गया था। यही नहीं, पार्टी के प्रचार के लिए जिस तेलंगाना भाजपा अध्यक्ष बंदी संजय को बुलाया गया उन्हें भी एसएससी पेपर लीक (SSC Question Paper Leak Case) के मामले में दोषी पाया गया।

इन सभी बिंदुओं की वजह से भाजपा की छवि दिन प्रति दिन कर्नाटक में खराब होती जा रही है। भाजपा का हाई कमान किसी भी प्रकार की बड़ी हरकत नहीं कर रहा है। इन सब कारणों की वजह से क्या अब भाजपा अपनी चुनावी रणनीति को बदलेगी या वह हार को स्वीकार कर चुकी है यह तो 13 मई को कर्नाटक चुनाव के नतीजे बताएंगे।

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