निर्भया के आरोपियों की क्यूरेटिव याचिका सुप्रीम कोर्ट ने की खारिज

सर्वोच्च न्यायालय ने निर्भया केस के आरोपियों की क्यूरेटिव पिटिशन खारिज कर दी है। साथ ही फांसी पर रोक लगाने के लिए किए गए आवेदन को भी अस्वीकार कर दिया है।
सर्वोच्च न्यायालय ने निर्भया के आरोपियों की क्यूरेटिव पिटिशन खारिज कर दी है
सर्वोच्च न्यायालय ने निर्भया के आरोपियों की क्यूरेटिव पिटिशन खारिज कर दी हैSocial Media

राज एक्सप्रेस। मंगलवार, 14 जनवरी 2020 को सर्वोच्च न्यायालय ने निर्भया केस के आरोपियों की क्यूरेटिव याचिका खारिज कर दी। निर्भया के चारों आरोपियों को दिल्ली की निचली अदालत ने मृत्युदंड दिया है, जिसे दिल्ली उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय ने बरकरार रखा था।

सात साल पहले 16 दिसंबर की रात राजधानी दिल्ली में चलती बस में एक 23 वर्षीय मेडिकल छात्रा का सामूहिक बलात्कार कर सड़क पर फेंक दिया गया था। उसे इलाज के लिए सिंगापुर रिफर किया गया जहां 29 दिसंबर 2012 को माउंट एलिज़ाबेथ अस्पताल में उसने दम तोड़ दिया। पीड़ित को बाद में निर्भया नाम से जाना गया।

इस मामले में 6 आरोपी थे। उनमें से एक आरोपी राम सिंह ने मुकदमे के दौरान जेल में आत्महत्या कर ली थी। इस मामले में एक किशोर की विशेष अदालत में सुनवाई हुई और वह सुधार गृह में तीन साल पहले ही सेवा दे चुका है। बाकी चार आरोपियों मुकेश सिंह, अक्षय ठाकुर, विनय शर्मा और पवन गुप्ता को 7 जनवरी 2020 को दिल्ली की अदालत ने डेथ वॉरेंट(फांसी का आदेश) जारी किया।

जिसके बाद दो आरोपियों मुकेश और विनय ने भारतीय सर्वोच्च न्यायालय में क्यूरेटिव याचिका दायर की थी। जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया है। न्यायाधीश एनवी रमन्ना, अरुण मिश्रा, आरएफ नरीमन, आर भानुमती और अशोक भूषण की बेंच ने दोनों दोषियों की क्यूरेटिव पिटिशन को खारिज कर दिया। अदालत ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि, "मौखिक सुनवाई (खुली अदालत की सुनवाई) के लिए किया गया आवेदन खारिज किया जाता है। इसके साथ ही मौत की सजा पर रोक के लिए दायर किया आवेदन भी खारिज किया जाता है।"

"हमने क्यूरेटिव याचिकाओं और संबंधित दस्तावेजों को अच्छे से देख लिया है। हमारी राय में, इस मामले में रूपा अशोक हुर्रा बनाम अशोक हुर्रा और एक और जो कि 2002 (4) एससीसी 388 में रिपोर्ट किया गया था, पर लिए गए अदालत के फैसलों के भीतर कोई मामला नहीं बनता है; इसलिए क्यूरेटिव याचिकाएं खारिज की जाती हैं।"

सर्वोच्च न्यायालय, भारत

आरोपी विनय ने क्यूरेटिव याचिका में अपनी युवावस्था का हवाला देते हुए कहा था कि कोर्ट ने इस पहलू को त्रुटिवश अस्वीकार कर दिया है। साथ ही याचिकाकर्ता की सामाजिक-आर्थिक परिस्थितयों, उसके बीमार माता-पिता सहित परिवार के आश्रितों और जेल में उसके अच्छे आचरण और उसमें सुधार की गुंजाइश के बिंदुओं पर पर्याप्त विचार नहीं किया गया है, जिसकी वजह से उसके साथ न्याय नहीं हुआ। इन दलीलों को अदालत ने अस्वीकार करते हुए खारिज कर दिया है।

अब आरोपियों के पास केवल राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर करने का विकल्प बचा है। जिसे आरोपी मुकेश ने इस्तेमाल कर लिया। सर्वोच्च अदालत से क्यूरेटिव याचिका खारिज होने के बाद मुकेश ने राष्ट्रपति को दया याचिका भेजी है। भारत के राष्ट्रपति को भेजी गई इस याचिका के ज़रिए उनकी फांसी की सज़ा को आजीवन कारावास में बदला जा सकता है। राष्ट्रपति के पास यह अधिकार है कि वो दया याचिका पर फैसला ले।

यह याचिका अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने मुकेश की ओर से दायर की है। याचिका में कहा गया है कि मुकेश ने उपराज्यपाल व राष्ट्रपति को दया याचिका भेजी है। इसलिये डेथ वारंट को रद्द किया जाये। इस वारंट के अमल पर रोक लगायी जाये, अन्यथा याची का संवैधानिक अधिकार प्रभावित होगा।

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